
ऋषभ शेट्टी फिर से बड़े पर्दे पर लौट रहे हैं और उनके साथ ही लौट रहा है ‘कांतारा’ का संसार. 2022 में आई उनकी फिल्म ने लोगों को इतना तो सिखा दिया था कि कांतारा का अर्थ होता है एक रहस्यमयी जंगल. पहली फिल्म में ऋषभ ने इस रहस्यमयी जंगल की एक शक्ति से परिचय करवाया था. अब वो इस शक्ति की ही महागाथा लेकर आ रहे हैं जिसका नाम है ‘कांतारा चैप्टर 1’. ट्रेलर आ चुका है, जिसे देखने के बाद लोग उसी तरह चकित हैं, जैसे तीन साल पहले ‘कांतारा’ देखने के बाद थे.
ट्रेलर बता रहा है कि फिल्म में जिस शक्ति की कहानी है, उनका नाम है गुलिगा. जिस दक्षिण कर्नाटक इलाके से ऋषभ आते हैं, वहां इन गुलिगा ‘दैव’ की दंतकथा पाई जाती है. मगर गुलिगा की कहानी का कनेक्शन भगवान शिव, माता पार्वती से और भगवान विष्णु से बहुत गहरा है. चलिए बताते हैं क्या है गुलिगा की वो कहानी, जो अब ‘कांतारा चैप्टर 1’ में बड़े पर्दे पर आने वाली है.
पिछली फिल्म से आगे कहां मुड़ेगी 'कांतारा चैप्टर 1'?
'कांतारा' (2022) कहानी लगभग आज के दौर की थी. जंगल के बीच एक गांव के लोगों की जमीन छिनने पर बात आती है, तो उनके बीच एक लड़का शिवा, हीरो बनकर खड़ा हो जाता है. शिवा का बैकग्राउंड ये था कि उसका परिवार पीढ़ियों से भूत-कोला करता आ रहा था. भूत-कोला में ‘दैव’ का आवाह्न किया जाता है.

यहां समझने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ‘दैव’ का अर्थ देवता नहीं है. ये जीवात्माएं हैं, अंग्रेजी में जिन्हें ‘स्पिरिट’ कहा जाता है. इन्हें देवताओं का सहयोगी या उपदेवता माना जाता है. माइथोलॉजी में इन्हें भी बहुत शक्तिशाली बताया गया है. भूत-कोला में दैवों के आह्वान-पूजन की रहस्यमयी और गोपनीय विधियां होती हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी उन परिवारों में आगे बढ़ती रहती हैं, जिनका एकदम शुरुआत में दैव से कुछ कनेक्शन रहा होता है. मान्यता है कि भूत-कोला कर रहे व्यक्ति में दैव उतर आते हैं.
‘कांतारा’ में शिवा के पिता भूत-कोला करने के बाद, जंगल के बीच एक रहस्यमयी जगह पर पहुंचकर गायब हो गए थे. इस ट्रॉमा की वजह से शिवा इससे दूर रहता है और उसकी जगह उसका कजिन, परिवार की इस परंपरा को आगे बढ़ाता है. मगर गांववालों की जमीन कब्जाने निकले लोग उसकी हत्या कर देते हैं.
जमीन छीनने वालों से लड़ने उतरा शिवा जब कमजोर पड़ता है तो दैव उसमें उतर आते हैं और दुश्मनों का भयानक संहार करते हैं. इस क्लाइमेक्स ने ही दर्शकों के रोंगटे खड़े कर दिए थे. 'कांतारा' का अंत शिवा की भूत-कोला परफॉरमेंस पर हुआ था, जिसके बाद शिवा भी, अपने पिता की तरह उसी रहस्यमयी जगह पर आकर गायब हो जाता है. पूरी फिल्म में आपको ‘दैव’ के दो नाम मिले थे― पंजुरली और गुलिगा.

दरअसल, 'कांतारा' की शुरुआत में शिवा के पिता पर जो दैव आए थे, वो पंजुरली थे. अंत में शिवा जब भूत-कोला कर रहा है, तब उसपर भी पंजुरली ही सवार हैं. मगर शिवा पर संकट के समय आए देव थे गुलिगा. अब 'कांतारा चैप्टर 1' उस जगह की कहानी है, जहां आकर भूत-कोला करने वाले शिवा के पिता और खुद शिवा, गायब हुए थे. अब ये शिवा नहीं, गुलिगा की कहानी है. मगर गुलिगा को अकेले नहीं समझा जा सकता. उन्हें समझने के लिए पंजुरली को समझना अनिवार्य है.
कौन हैं गुलिगा और माइथोलॉजी में उनका रोल क्या है?
सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि उपदेवताओं में से कुछ की शक्तियां विध्वंसकारी होती हैं, कुछ की सृजनकारी. मतलब कुछ क्रिएटिव होते हैं, कुछ डिस्ट्रक्टिव. गुलिगा, विध्वंसकारी दैव हैं. संहार करने वाले, हिंसक और उनकी प्रवृत्ति राक्षसी है.
क्षेत्रीय संस्कृतियों में लोक हितों की रक्षा करने वाले उपदेवताओं को पूजने के कई उदाहरण मिलते हैं. उत्तर भारत में भी कहीं ये ग्राम देवता हैं, तो कहीं क्षेत्रीय देवता. दंतकथाओं में अक्सर ऐसे उपदेवताओं को भगवान शिव से जोड़ा जाता है, उनका गण माना जाता है. इसी तरह गुलिगा देव, दक्षिण भारत की कई ऐसी संस्कृतियों में खूब पूजे जाते हैं जो प्रकृति पर निर्भर रही हैं. गुलिगा को क्षेत्रपाल भी माना जाता है, यानी वो एक खास इलाके के रक्षक हैं और इसीलिए उनके स्थान अक्सर उन इलाकों की बाउंड्री पर होते हैं.
कौन हैं पंजुरली देव?
‘कांतारा’ का गाना ‘वराहरूपम’ सुनकर बहुत लोग पंजुरली दैव को, भगवान विष्णु के वराह अवतार से जोड़कर देखने लगे थे. मगर दक्षिण कर्नाटक या टुलूनाडु इलाके की इस दंतकथा का कनेक्शन असल में भगवान शिव से है.

वाचिक परंपराओं, यानी जुबानी किस्सा कहने के माध्यम से चलती आ रहीं इन कथाओं में पंजुरली के जन्म की कहानी एक जंगली सूअर से शुरू होती है. कहा जाता है कि भगवान शिव की वाटिका में एक जंगली सूअर की मौत के बाद, मां पार्वती ने उसके बच्चे को अपनी संतान की तरह पाला. मगर ये बड़ा होकर बहुत उत्पाती होता गया और इसने वाटिका में तबाही मचानी शुरू कर दी.
शिव को क्रोध आया तो वो इसे मारने दौड़े मगर पार्वती को इससे प्रेम था, इसलिए उन्होंने इसे जान से नहीं मारा. बल्कि उसे धरती पर भेज दिया और उसे लोगों की रक्षा करने का जिम्मा दिया. लोगों ने अपनी फसलों की रक्षा करने वाले इस शिव गण को पंजुरली का नाम दिया.
क्षेत्रीय कथाओं में ही गुलिगा को पंजुरली या राहू (दंतकथाओं में दोनों अलग-अलग हैं) जैसे दूसरे देवताओं के साथ भी जोड़कर पूजा जाता है. मान्यता ये है कि पंजुरली समृद्धि के देवता हैं और प्रकृति के रक्षक हैं. अगर पंजुरली की पूजा करने वालों को कोई दुख देता है, उनके जंगल-जमीन से छेड़छाड़ करता है, तो उन्हें बहुत कष्ट होता है. और तब वो गुलिगा को भेजते हैं.

चूंकि गुलिगा या उन जैसे दूसरे उपदेवताओं की शक्तियां डिस्ट्रक्टिव होती हैं, इसलिए इनका पूजन और ध्यान हमेशा नहीं किया जाता. इनका उस समय ही आह्वान किया जाता है, जब इस तरह की विध्वंसक शक्तियों की जरूरत होती है.
ध्यान से 'कांतारा' देखने पर आपको क्लाइमेक्स के सीन में चौकोर से आकार का एक पत्थर दिखेगा, जिसपर भगवान शिव के त्रिशूल जैसा प्रतीक बना है. इससे टकराने के बाद ही लगभग मर चुका शिवा, नई शक्ति के साथ उठ खड़ा होता है. ये पत्थर ही गुलिगा का प्रतीक माना जाता है. इस पत्थर से ही गुलिगा के संसार में आने की कहानी जुड़ी है.
कैसे हुआ गुलिगा देव का जन्म?
भगवान शिव को भस्म का श्रृंगार कितना प्रिय है, ये तो सभी जानते हैं. दक्षिण कर्नाटक की लोक संस्कृति से जुड़े तमाम ब्लॉग और किताबें गुलिगा के जन्म को भगवान शिव और उनकी भस्म से जुड़ा बताती हैं. दंतकथाओं में कहा जाता है कि मां पार्वती को एक दिन भस्म में एक विचित्र आकार वाला पत्थर दिखा. जब उन्होंने ये पत्थर शिव के हाथ में दिया तो उन्होंने इसे जोर से जमीन पर पटक दिया. तब इस पत्थर से गुलिगा का जन्म हुआ. उसे भगवान विष्णु की सेवा के लिए उनके लोक में भेज दिया गया.

मगर गुलिगा की प्रवृत्ति इतनी विध्वंसक थी कि उसने पूरे विष्णु लोक में उत्पात मचा दिया. कई कथाओं में कहा जाता है कि गुलिगा ने भगवान विष्णु की झील का पानी गटकना ऐसा शुरू किया कि वो सूखने लगी. उसके उत्पात से तंग आकर विष्णु ने उसे धरती लोक पर जन्म लेने का शाप दिया. दंतकथाओं में इसके बाद कई अलग-अलग वर्जन मिलते हैं. किसी में गुलिगा को एक रहस्यमयी मां ने जन्म दिया, तो किसी में वो बालक रूप में, जंगल में पड़े हुए मिले थे.

कहा जाता है कि धरती पर आते ही गुलिगा ने पंजुरली से एक ही क्षेत्र को लेकर भयानक युद्ध किया. मां दुर्गा ने आकर मामला सुलझाया और दोनों में मित्रता करवाई. तबसे गुलिगा खुद पंजुरली के प्रशंसक बन गए और उस क्षेत्र में साथ रहने लगे. तबसे दोनों को साथ में पूजा जाता है.
'कांतारा चैप्टर 1' के ट्रेलर में है इस बात के सबूत बिखरे पड़े हैं कि इस बार कहानी गुलिगा की है. ट्रेलर में पानी में वो पत्थर नजर आ रहा है, जिसपर त्रिशूल बना है. एक बच्चा जंगल की गोद में, पत्तों पर पड़ा है और शेर उसके चारों तरफ घूम रहा है. एक महिला उस बच्चे को पाकर भावुक हो रही है. लगता है कि एक संतान पाने की उसकी अधूरी आस इस बच्चे से पूरी हुई है.

आगे आप देखते हैं कि जंगल के लोगों और राजा में एक अरेंजमेंट है― जंगल में हुई फसल का एक तिहाई हिस्सा, बाउंड्री से बाहर रख दिया जाएगा. राजा और सेना जंगल से दूर रहें. मगर ये व्यवस्था टूटती है. जंगल वाले खुद बंदरगाह तक आकर व्यापार करने लगते हैं. राजा जंगल में घुसने लगता है. दैव कुपित होते हैं और फिर जो होता है, वही गाथा ‘कांतारा चैप्टर 1’ है.
अब देखने वाली बात ये है कि गुलिगा के मिथक को ऋषभ ने एक सिनेमेटिक कहानी में कैसे पिरोया है. क्या वो उस हाइप के साथ न्याय कर पाएंगे जो ट्रेलर से बनी है? जवाब थिएटर्स में मिलेगा, तारीख है- 2 अक्टूबर.