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Film review: सोचने पर विवश करती है 'गौर हरी दास्तान'

लंदन, पेरिस और अन्य कई फिल्म समारोहों में दिखाए जाने के बाद अब रिलीज होने को तैयार है, फिल्म गौर हरी दास्तान : द फ्रीडम फाइल. वैसे तो ये फिल्म लगभग 3 साल पहले ही बनकर तैयार हो गई थी लेकिन किन्ही कारणों से इसे रिलीज होने में इतना वक्त लग गया. आइए इस फिल्म की समीक्षा करते हैं.

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फिल्म 'गौर हरी दास्तान : द फ्रीडम फाइल'
फिल्म 'गौर हरी दास्तान : द फ्रीडम फाइल'

फिल्म का नाम: गौर हरी दास्तान : द फ्रीडम फाइल
डायरेक्टर: अनंत महादेवन
स्टार कास्ट: विनय पाठक, कोंकणा सेन शर्मा , रणवीर शोरी , सौरभ शुक्ला,विक्रम गोखले
अवधि:
112 मिनट
सर्टिफिकेट: U
रेटिंग: 3.5 स्टार

लंदन, पेरिस और अन्य कई फिल्म समारोहों में दिखाए जाने के बाद अब रिलीज होने को तैयार है, फिल्म गौर हरी दास्तान : द फ्रीडम फाइल. वैसे तो ये फिल्म लगभग 3 साल पहले ही बनकर तैयार हो गई थी लेकिन किन्ही कारणों से इसे रिलीज होने में इतना वक्त लग गया. आइए इस फिल्म की समीक्षा करते हैं.

कहानी
यह फिल्म कहानी है ओडिशा के स्वतंत्रता सेनानी गौर हरी दास (विनय पाठक) की ,जो आजादी के बाद परिवार के साथ मुंबई शिफ्ट हो गया है, और खादी कमीशन में काम करता हैं. वो अपनी पत्नी लक्ष्मी दास (कोंकणा सेन शर्मा) और बेटे अलोक के साथ रहते हैं. एक दिन जब गौर हरी दास का बेटा कॉलेज में 'स्वतन्त्रता सेनानी सर्टिफिकेट' के अभाव में एडमिशन पाने में असमर्थ हो जाता है, तब गौर हरी दास अपनी पहचान के बारे में सोचने लगते हैं. सिर्फ एक पन्ने का सर्टिफिकेट न होने की वजह से उनका बेटा और आस पास के लोग सवाल पूछने लगते हैं, और उस सवाल का जवाब देने के लिए गौर हरी दास अपनी यात्रा शुरू करते हैं जिसमें लगभग उनकी पूरी जिंदगी बीत जाती है जिसके दौरान ऑफिस के चक्कर काटते हुए 32 साल से भी ज्यादा का वक्त लग जाता है. गौर हरी दास को अपनी ही सरकार के सामने इस बात का प्रमाण हासिल करना होता है कि उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हिस्सा लिया था. इस पूरे वाकये के दौरान गौर हरी दास की मदद एक पत्रकार राजीव सिंघल (रणवीर शोरी) और उसकी दोस्त अनीता (तनिष्ठा मुखर्जी) भी करते हैं.

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स्क्रिप्ट, अभिनय,संगीत
स्वतन्त्रता सेनानी गौर हरी दास अभी भी जीवित हैं और मुंबई के दहिसर इलाके में रहते हैं. उनकी असल जिंदगी से प्रेरित कहानी को फिल्म के रूप में बदलने में राइटर सी पी सुरेंद्रन का काम दिखाई पड़ता है, वहीं डायरेक्टर अनंत महादेवन का निर्देशन भी फिल्म के मूड को बनाये रखता है. एक पिता अपना बचपन भारत की स्वतन्त्रता की लड़ाई में और बाकी की उम्र अपने ही पुत्र और समाज को यह सिद्ध करने में गुजार देता है की उसने देश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभायी थी. अनंत महादेवन ने अलग अलग सालों के मद्देनजर छोटी छोटी बारीकियों पर विशेष ध्यान दिया है. कभी 1945 का गुलाम भारत, तो कभी 1975 का आजाद भारत. फिल्म के डायलाग भी मर्मस्पर्शी हैं, जैसे -'ब्रिटिश राज में कम से कम ये तो पता था की आखिर दुश्मन कौन है' इत्यादि.

गौर हरी दास का रोल निभाते हुए विनय पाठक ने बेहतरीन काम किया है, और उन्हें देखकर तो यही लगता है की सच में गौर हरी दास ऐसे ही अपनी खुद की लड़ाई सरकार से लड़े होंगे. वहीं पत्नी के रूप में कोंकणा सेन शर्मा ने अद्भुत कार्य क्रिया है. पति के संघर्ष में पत्नी का विशेष रोल दिखाई देता है. साथ ही रणवीर शोरी, विक्रम गोखले, रजित कपूर, सौरभ शुक्ला और तनिष्ठा चटर्जी ने भी अपने अपने किरदारों को जीवंत किया है.

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फिल्म का संगीत स्क्रिप्ट के हिसाब से ही चलता है और डॉक्टर एल सुब्रमण्यम ने बढ़िया संगीत दिया है खासतौर से 'वैष्णव जान तो' वाला गीत ,वहीं रसूल पोकुट्टी का बैकग्राउंड स्कोर भी कहानी से बिल्कुल इत्तेफाक रखता है.

क्यों देखें
सच को साबित करना अत्यंत मुश्किल कार्य है, और जीवन की आपाधापी में कभी कभी हमें वो बात भी सिद्ध करनी पड़ती है जिसके बारे में हम कभी सोचते भी नहीं हैं. अगर आप एक सच्ची दास्तान में यकीन रखते हैं तो आपको यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए.

क्यों ना देखें
अगर आप कॉमर्शियल, मनोरंजन से भरपूर, लटके झटके , आइटम सांग वाले सिनेमा की तलाश में हैं तो यह फिल्म आपके लिए नहीं बनी है.

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