दीपक डोबरियाल अपने करियर की सही दिशा में हैं. उनकी हालिया रिलीज फिल्मों में अपने विविधरंगी किरदारों से उन्होंने सुर्खियां बटोरी हैं. हालांकि एक वक्त ऐसा भी था, जब दीपक एक छोटे से कमरे में 6 लोगों संग स्ट्रगल किया करते थे. अपनी जर्नी और पहले प्रोजेक्ट्स पर दीपक हमसे बातचीत करते हैं.
कमरे की हालत देख पापा हो गए थे गुस्से से लाल
दीपक आगे बताते हैं, एक बार अचानक से पापा मेरी स्थिती का जायजा लेने मुंबई पहुंच गए थे. कमरे में आते ही उनके होश उड़ गए थे. हमारा कमरा अंधेरी के चार बंगला म्हाडा में था, उन्होंने देखा कि मैं एक छोटे से कमरे में 6 लोगों के साथ रहता हूं. हालत उस कमरे की यह थी कि दरवाजा तक बंद नहीं हो पाता था. आप ठीक से करवट बदलो, तो आपके साथ सभी को करवट बदलने पड़ते थे. पापा ने जब यह मंजर देखा, तो उनका पारा हाई हो गया. वो कहने लगे कि जिस घर का दरवाजा बंद न हो, वहां बरकत कैसे आएगी. उन्होंने गुस्से में मुझसे कहा कि ये करने आया है तू.. बोरिया बिस्तर बांध और दिल्ली वापस चल. वहां काम करना.
पीयूष मिश्रा ने ली थी गारंटी
पापा के इन बातों से मैं घबरा गया था. मुझे वापस नहीं जाना था. उस वक्त पीयूष मिश्रा भाई मेरे घर के पास रहते थे. मैं उनके पास दौड़ता हुआ गया, और उनसे पापा से मिलने की दरख्वास्त करने लगा. उनसे कहा कि आप कुछ करो, वरना पिताजी वापस ट्रेन पकड़वा लेकर चले जाएंगे. तब पीयूष भाई ने पापा से कहा कि मैंने यहां बहुत से एक्टर्स देखे हैं, जो बहुत बड़ी-बड़ी मुगालतों में रहते हैं. लेकिन दीपक में सच में पोटेंशियल है. वो जब काम करने लगेगा, तो आपको अच्छा लगेगा. वो एक अलग एक्टर है. वैसे मैं इसकी कोई गारंटी नहीं देता, लेकिन मेरे कहने पर एक और साल मौका दें, अगर कुछ नहीं हुआ, तो वो खुद वापस आ जाएगा. पापा पीयूष भाई की बड़ी इज्जत करते थे. वो इसी शर्त पर राजी भी हुए थे. अगर उस दिन उन्होंने पापा को नहीं समझाया होता, तो मैं कब का बोरिया बिस्तर लेकर दिल्ली चला गया होता.
तीन फिल्मों में इंट्रोड्यूसिंग एक्टर बना
दीपक आगे बताते हैं, पीयूष भाई उन दिनों एक स्क्रिप्ट लिख रहे थे. इसी एक साल में उन्होंने मुझे एक फिल्म 1971 में मौका दिया था. वे मुझे फिल्म के डायरेक्टर के पास ले गए और कहा देख लो. मेरे ऑडिशन से डायरेक्टर भी खुश हो गया और उसने कास्ट कर लिया. फिर अनुराग कश्यप की गुलाल और विशाल भाई के ओमकारा में मौका मिला. ये तीनों बैक टू बैक शूट किया. ओमकारा सबसे पहले रिलीज हो गई. यकीन मानों इन तीनों फिल्मों में मेरी किस्मत ऐसी रही कि मुझे इंट्रोड्यूसिंग एक्टर के रूप में प्रेजेंट किया गया. मैं तीनों में ही डेब्यू कर रहा था. यह अपने आप में अनोखी बात है.
अब पापा को होता है गर्व
दीपक आगे कहते हैं, उस फिल्म के बाद पापा का मिजाज ऐसा बदला कि पूछा मत. वो दिन रात परिवार के बीच मेरा गुनगान करते. किसी भी रिलेटिव को फोन लगाकर देते और कहते कि मेरे हीरो बेटे से बात करो. हद तो तब हो गई, जब उन्होंने ओमकारा की डीवीडी खरीद ली थी, वो डीवीडी सुबह नौ बजे से शुरू होता और रात के बारह बजे बंद करते. लोगों को बुला बुलाकर वो फिल्म दिखाते थे. मैं कोने में सोफे पर बैठकर शर्म से पानी-पानी हो जाता था.