कार्तिक आर्यन और कियारा आडवाणी हाल ही में पाकिस्तान के आइकॉनिक सॉन्ग पसूरी के री-क्रिएशन सॉन्ग में नजर आए थे. गाने को दर्शकों ने सिरे से खारिज कर दिया. गाने के रिलीज होते ही फैंस के निगेटिव कमेंट्स की बौछार सी लग गई थी. हमने खुद पसूरी सॉन्ग में फीचर हुई सीमा किरमानी जी से इस रिक्रिएशन पर राय ली है, साथ ही पसूरी की मेकिंग पर भी ढेर सारी बातचीत की है.
पसूरी गाने की शूटिंग कैसे हुई थी?
-पसूरी गाने की शूटिंग बहुत ही मजेदार थी. उन नौजवानों की तैयारी कमाल की थी. बहुत ही डेडिकेशन के साथ काम पूरा किया है.गाने की शूटिंग एक सेट स्थित स्टूडियो में हुई थी.सेट भव्य होने के साथ-साथ बहुत खूबसूरत भी था.
अली सेठी और उनकी टीम ने आपको इस वीडियो के लिए कैसे राजी किया था?
-यह बहुत ही दिलचस्प कहानी है. दरअसल मैं इस वीडियो के लिए बिलकुल भी राजी नहीं थी. मैं नहीं चाहती थी कि किसी म्यूजिक वीडियो में नजर आऊं, दरअसल मैं इस मामले में थोड़ी ओल्ड स्कूल ही हूं. मैं प्योर क्लासिकल डांस पर यकीन रखने वाली आर्टिस्ट हूं. साथ ही में मैं सोशल एक्टिविस्ट भी हूं, तो हमेशा से मल्टीनैशनल कंपनी के अगेंस्ट ही रही हूं.मैं समझती हूं कि कोको कोला जो है, वो भी अच्छी चीज नहीं है. इन्होंने काफी मिन्नतें कीं, मैं तो यह भी कह रही थी कि मेरे बजाए इस वीडियो में किसी यंग लड़की को भी रखा जाए, तो खास फर्क नहीं पड़ने वाला है. अली सेठी, जिसकी वालिदैन(मां) को मैं जानती हूं, उसे बचपन से देखती आ रही हूं. बस वो जिद पर अड़ गया, काफी समय तक मेरे पीछे लगा रहा.अली ने कहा कि आपको करना ही है. फिर उसने म्यूजिक भेजी, जो मेरी समझ से परे था. वो गाना पंजाबी में था, हालांकि उसकी धुन बहुत अच्छी लगी थी. उन्होंने प्रोड्यूसर और डायरेक्टर से भी मेरी बात करवाई थी. जब मुझे कॉन्सेप्ट समझाया, तब जाकर मैं राजी हुई थी.
शूटिंग के दौरान का कोई दिलचस्प किस्सा, जिसे शेयर कर सकें?
- वैसे तो कई किस्से रहे हैं. मेरा मेकअप जो खातून कर रही थीं, उनसे मेकअप के दौरान लंबी बातचीत चली थी. मैंने उन्हें बताया कि किस किस्म का मेकअप शूट करेगा. जिस तरह का सेट लगाया था, उसका कॉन्सेप्ट यही था कि ये मॉर्डन और ट्रडिशनल का एक मिलन सा हो. मेकअप भी उसी के अनुसार था, हमने ब्रेनस्ट्रोमिंग की, किस तरह का रंग मुझे पहनना चाहिए. बाल और मेकअप कैसा होना चाहिए, जो इस गाने की थीम से मेल खाए.
क्या कभी ऐसी उम्मीद रखी थी कि पसूरी को ग्लोबली इतना पसंद किया जाएगा?
नहीं, मुझे बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि इस गाने की पॉप्युलैरिटी इस कदर सिर चढ़कर बोलेगी. हालांकि उस वक्त तो मेरे जेहन में यही चल रहा था कि पता नहीं ये गाना बनने के बाद लोगों के सामने कैसे दिखेगा. मेरा डांस ये लोग कितना इस्तेमाल करेंगे. कई दफा मैंने डांस के रिपीट शॉट्स दिए.जो हिस्सा मेरे लिए रखा गया था, उसे मैंने दो तीन दफा रिकॉर्ड कर दे दिया था. अब सोचकर गर्व होता है कि मैं इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनी. गाने का विजुअल बहुत अच्छा लगा था. एक खास कशिश है इसमें यकीनन. इसलिए शायद लोगों ने इसे बहुत पसंद किया है. हालांकि इससे पहले मैं कभी कोक-स्टूडियो की इतनी मुरीद नहीं रही. मैंने कभी इसके गाने फॉलो नहीं किए थे.
इंडिया में पसूरी की रीमेक बनी है. आपने सुनी? रीमेक गानों को लेकर आपका क्या नजरिया है. पाकिस्तान के कई आइकॉनिक गानें यहां रीमेक बनते रहे हैं?
-इसे तो मैंने तक नहीं देखा है, इसलिए कमेंट नहीं कर सकती हूं. रीमेक गानों को लेकर मेरी फीलिंग हमेशा से मिक्स्ड रही हैं. अव्वल जो पॉप्युलर होते हैं, वही रीमेक किए जाते हैं. सबसे पहला मेरा रिएक्शन यही होता है कि नहीं भई ओरिजनल जो है, वो ही बेहतरीन है. कंपोजिशन इतना खूबसूरत है, तो उसे रीमेक करने की क्या जरूरत है. मुझे बहुत ज्यादा रीमेक कल्चर पसंद नहीं है. हालांकि एक तरीके से देखा जाए, जो फायदा यही है कि यंग लोग भी पुराने आइकॉनिक सॉन्ग को सुन रहे हैं. यह अच्छी बात है. निजी तौर पर मैं इसके खिलाफ हूं.
आपकी जर्नी बड़ी दिलचस्प रही है. अपने डांस के वजूद की लड़ाईयां लड़ी हैं. आज पीछे मुड़कर कैसा लगता है?
-वाकई में मेरी डांस करने की जर्नी बहुत ही यूनिक रही है. पाकिस्तान में कोई भी क्लासिकल डांसर्स नहीं होते थे. मैं दस साल अकेले ही इस डांस के जुनून के लिए सियासत वालों से लड़ती रही. बहुत ही मुश्किल हालात रहे थे. डर और खौफ भी था. हालांकि मुझे अपने फन में इतनी सच्चाई दिखती है, मैंने ठान लिया था कि कोई मेरे इस टैलेंट को जबरदस्ती नहीं रोक सकता है. मैं जबतक जिंदा रहूंगी, इस मुल्क में रहूंगी, तबतक डांस करती रहूंगी. अब भी स्ट्रगल जारी है. इस वक्त भी मजहबी इंतेहा पसंदी पूरे सरजमीं में बढ़ गई है, जिसे हम कटटरवादी कहते हैं, वो इतना बढ़ गया है. लोगों के दिमागों में ऐसा भर गया है, डांस, म्यूजिक परफॉर्मिंग आर्ट्स को लेकर एक गलत सोच इनके अंदर आ चुकी है.
ये लोग कहते हैं कि डांस और म्यूजिक इस्लामी मजहब के खिलाफ है. जबकि हमने इसपर बहुत गहरी रिसर्च की है. मोहनजोदाड़ो देखें, जो वहीं से प्रमाण मिले हैं कि हमारा कल्चर इन डांस और संगीत से लबरेज था. हमारा समाज हिप्रोक्रेट्स से भरा हुआ है, वो सच सुनना ही नहीं चाहते हैं. उनके अंदर इतना मेटेरियलिज्म बढ़ गया है, झूठ बढ़ा है, हम लोगों को आपस में बांट दिया गया है. हालांकि बराबरी तो रही नहीं. इकोनॉमिक सिस्टम एक सा नहीं है. गरीबी है, गुरबत है. मैं समझती हूं कि ये उलझनें जब खत्म होंगी, तब ही हम आर्ट और कल्चर को सही तरह से एक्सप्लोर कर पाएंगे. जब तक जिंदगी है जद्दोजहद जारी रहनी है.
उस दौर में डांस और थिएटर को गुनाह माना जाता था. लेकिन आप डंटी रहीं. किस तरह के मुश्किलात रहे हैं?
मुश्किलात तो अब भी रही हैं. मैं जिस माशरे में रहती हूं इन चीजों को अभी भी बुरा समझते हैं. मैं कराची में रहती हूं, यहां ले देकर केवल एक ऑडिटोरियम है, यहां परफॉर्मेंस करना भी आसान नहीं होता है. हमारी रियासत हमें सपोर्ट नहीं करती है. वो हमारा साथ नहीं देना चाहते हैं. इन्हीं मुश्किलों में आर्ट पलता-बढ़ता है. हम रुकने वाले नहीं है. यह बहुत ही खूबसूरत फन है, इसे खत्म होने नहीं देना है. जब तक सांस हैं, जिस्म में धड़कन है, तब तक लगे रहेंगे, डांस करते रहेंगे.
अभी वर्कफ्रंट पर आपकी मसरूफियत क्या है?
मैं थिएटर आज भी करती रहती हूं. जिसे स्ट्रीट थिएटर कहते हैं, हम सोशल और पॉलिटिकल थिएटर बहुत करते हैं. हम औरतों की हुकूक की बात करते हैं. अपने नाटक के जरिए सड़कों, गलियों और पार्क में जाकर लोगों को अवेयर करते हैं. माइनॉरिटी राइट्स के लिए लड़ती रहती हूं. इसके अलावा मैं किताबें बहुत पढ़ती हूं, बुक रिव्यूज भी करती रहती हूं. गाने लिखती हूं और उसे कंपोज, कोरियोग्राफ करती रहती हूं. अभी हमारे ग्रुप ने 35 साल के मौके पर एक भव्य इवेंट किया था.
इन दो मुल्कों में आर्ट को लेकर जो बंदिशे लगाई जाती हैं. वो कितनी वाजिब हैं. आपका नजरिया?
मैं ये समझती हूं कि आर्ट जो है, वो नफरतों को कम करते हैं. वो अच्छा इंसान को अच्छा बनाते हैं. वो लोगों को आपस में जोड़ते हैं. रक्श हो, मौसिकी हो, क्लासिकल डांस हो या म्यूजिक हो.. ये सब चीजें लोगों को प्यार और मोहब्बत की ओर लेकर जाती है. नफरतों से दूर करती है. जहां तक हिंदोस्तान और पाकिस्तान के ताल्लुक की बात है, तो मेरा मानना है कि एक्सचेंज परफॉर्मेंस कर हम एक दूसरे के करीब आएं. मैं तो कई दफा हिंदोस्तान में जाकर परफॉर्मेंस दी हैं. कोलकाता, पंजाब, लखनऊ, दिल्ली यहां मैंने कई थिएटर शोज किए हैं. मैं मानती हूं कि यही हमें एक दूसरे से कनेक्ट करता है. जो बनाई हुई आर्टिफिसियल बाउंड्रीज है, उसे खत्म करता है. ये बात जरूरी है कि हमें बोलने की आजादी हो, एक्सप्रेशन की आजादी हो. एक आर्टिस्ट को अपनी बात व राय का इजहार कर सके. मुझे फ्रीडम ऑफ आर्टिस्टिक एक्सप्रेशन जरूरी है. हमने बहुत मुश्किल वक्त गुजारा है. सबको पता है कि पाकिस्तान में इतने साल मिलिट्री रेजिम रही हैं. जाहिर है, वो अपना पॉइंट ऑफ व्यू रखती हैं. ऐसे वक्त में फ्रीडम और एक्सप्रेशन पर लगाम लग जाता है. वैसे भी बहुत सी चीजों सेंसरशिप है, जो हटनी चाहिए. आर्ट को उभारना चाहिए, उसे पेट्रोनाइज करना चाहिए, बल्कि इसे बहुत ज्यादा आगे लाना चाहिए. क्योंकि जीतना हम इस पर फोकस करेंगे, उतना अपने लोगों को जोड़ सकेंगे. मोहब्बत कायम कर सकेंगे. ये जो जंग और नफरतें हैं, वो खत्म हो जाएंगी. हर इंसान बराबर है, चाहे वो किसी भी मजहब का हो. हम सभी को मिलजुलकर एक आर्ट की दुनिया कायम करें, बगैर मरने के खौफ के.