आजतक के विकसित उत्तरप्रदेश समिट 2025 में कई सितारों ने शिरकत की. इसमें लोक गायिका मालिनी अवस्थी को सेशन विकसित यूपी की वीरांगनाएं के दौरान महिलाओं और उनके विकास को लेकर बात करते देखा गया. इस सेशन में मालिनी के साथ फैशन डिजाइनर तन्मया मनीष, एशियन गेम्स गोल्डन मेडलिस्ट सुधा सिंह और बिजनेसपर्सन जूली देवी भी थीं. सभी महिलाओं ने अपने करियर और महिलाओं के समाज में आगे बढ़ने और बड़े आयामों को पाने पर अपने विचार रखे. साथ ही अपनी कहानियां भी सुनाईं.
दिल्ली-यूपी की महिलाओं में है फर्क?
इस सेशन के दौरान मालिनी अवस्थी से पूछा गया कि यूपी और दिल्ली की महिलाओं में क्या फर्क है? मालिनी ने नवरात्रि की सभी को बधाई दी. उन्होंने कहा, 'बहुत खुशी हो रही है देखकर कि नवरात्रि में नारी शक्ति का ऐसा प्रदर्शन, और ये सब ऐसी नारियां हैं जिन्होंने अपने बलबूते पर बहुत कुछ नाम-यश सब कमाया है. मुझे लगता है कि हर औरत की संघर्ष की कहानियां सब जगह एक है, वो दुनिया के किसी कोने में हो. क्योंकि कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं. औरत की जिम्मेदारियां, जिसमें उसको परिवार और हर-बार दोनों देखना होता. लेकिन जिन दुर्गा मां की हम पूजा करते हैं इस नवरात्रि में एक कारण है कि उनकी आठ भुजाएं दिखाई गई हैं, जिसको आज हम मल्टी टास्किंग कहते हैं. मुझे लगता है कि हमारे पूर्वज भी जानते थे कि पुरुष भी वो साध नहीं सकते, जो स्त्रियां साध सकती हैं. तो यहां वो बैठी हैं जिन्होंने परिवार के संग-संग बाहर भी पहचान बनाई है, तमाम दुश्वारियों के बावजूद.'
सिंगर ने आगे कहा, 'मुझे लगता है कि कोई खास परिस्थिति तो नहीं बदलती. ये जरूर है कि उत्तरप्रदेश में बहुत समय पहले जो कहीं न कहीं जो दक्षिण भारत है, गुजरात में महाराष्ट्र में हम देखते थे कि महिलाएं जो हैं बाहर निकलती हैं, काम करती हैं. तब हम बहुत छोटे थे, तो मुझे याद है कि उस समय ऐसी परिस्थिति नहीं थी. कहीं न कहीं उत्तरप्रदेश में, बिहार में, स्त्रियों का बाहर निकलना और अपने सपनों की उड़ान, उनको पंख देना थोड़ा-सा श्रमसाध्य था. लेकिन वक्त बदला है, सोच बदली है, माहौल बदला है और तभी हम लोग यहां पर हैं. मुझे अपने बचपन का दौर याद है, किशोरअवस्था का दौर भी याद है, जिसमें समाज फब्तियां भी कसता था. और मैं तो गाती थी, तो गाना सन 70-80 के जमाने में, मंच पर एक लड़की का गाना गरिमामय हो सकता है या उसमें भी पहचान बन सकती है, उसकी बहुत सहज स्वीकार्यता नहीं थी. वहां से आज आना. मुझे बड़ा सुख मिलता है, माता-पिता अपने घर से बेटियों को लेकर आते हैं और कहते हैं...'
मंच पर महिलाओं का होना है बड़ी बात
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मालिनी ने कहा, 'आपने जो सवाल पूछा उसका लंबा उत्तर ये होगा कि आपको जो मंच पर दिखता है, दरअसल संघर्ष उसके पीछे का है. जैसे कि आपकी यात्रा है, वो यात्रा आपको अकेले करनी है. वो यात्रा ट्रेन से भी है, गाड़ियों से भी है, बस से है. और पुरुषों के बीच में वहां पर सुरक्षा-रक्षा, वहां से मंच पर जाना, अनजाने शहर में रुकना, अनजानों के बीच में रुकना, ये एक आसान काम नहीं है, स्त्रियों के लिए. तो कलाकार की जिंदगी में, एक स्त्री होना और बहुत सुरकक्षित और मान के साथ गाना... शायद असुरक्षा पहले रही हो उसके कारण लोगों के मन में संशय रहता था. लेकिन आज हम लोगों बैठे ही यहां इसीलिए हैं क्योंकि उत्तरप्रदेश वाकई में शायद पूरी दुनिया के सामने मिसाल रख रहा है, सुरक्षा के मामले में. और जब सुरक्षा पूरे प्रदेश की है, तो सबसे पहले इस प्रदेश में औरत सुरक्षित है, अपनी बेटी के लिए सुरक्षा का भाव रखती है तो समझिए कि उस प्रदेश को आगे बढ़ने से फिर कोई नहीं रोक सकता.'
इस सेशन में बातचीत के दौरान बिजनेसपर्सन जूली देवी ने अपने बिजनेस और ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि हम लोग घरेलू महिलाएं हैं और घर में ही सिमट पर रह जाती हैं. लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन तहत उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिला है. जूली देवी, विदुर स्वयं सहायता समूह में काम करती हैं. उनके साथ 15 हजार महिलाएं जुड़ी हुई हैं, जो मिलकर हैंडमेड साबुन से लेकर कई स्कूटी तक बनाती हैं. उनकी कंपनी का तीन महीने का टर्नओवर 6 करोड़ रुपये है, जिससे उनके इलाके समेत कई ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक रूप से बड़ी मदद हुई है.
सरकार का साथ आम जनता को भी देना होगा
जूली देवी की कहानी से प्रेरित होकर और उन्हें सरकार के साथ मिलकर काम करते देख मालिनी अवस्थी काफी इम्प्रेस थीं. उन्होंने कहा, 'मैं यही कहना चाह रही थी कि कई बार हम सोच बना लेते हैं. उत्तरप्रदेश किसी देश से कम नहीं है, इतनी बड़ी आबादी है. मुझे लगता है कि कई बार सरकारी बहुत सारी योजनाएं चलती हैं, जो धरातल पर उतर नहीं पातीं. जनता के मन में बहुत 'टेकन फॉर ग्रानटेड' एटीट्यूड रहता है कि सरकार है तो सरकार करेगी. लेकिन सरकार यदि कोई योजना दिल से चलाना चाहे और वो आम जन तक पहुंचे, उसका पूरा लाभ कैसे उठाया जा सकता है, ये विदुर स्वयं सहायता समूह उसका प्रमाण है.'
मालिनी अवस्थी ने कहा कि फिल्म से जुड़े सितारे, संगीत और ग्लैमर से जुड़े लोगों से प्रेरणा ली जाती हैं. उन्हें अपना रोल मॉडल बनाया जाता है, जो होना भी चाहिए. लेकिन एक आम स्त्री, जो घरेलू महिलाएं भी दायरों से बाहर निकलकर, आत्मसम्मान से न सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं. मालिनी ने बताया कि इंडियन स्टेट रेवेन्यू सरप्लस में इस बार उत्तरप्रदेश नंबर 1 पर है. सिंगर ने कहा, 'बीमारू कहा जाना वाला उत्तरप्रदेश, वहां कभी महिलाएं भी इस प्रकार से आर्थिक उन्नति में सहारा बनेंगी, ये सोच ही नहीं सकते थे.'
मालिनी ने बताया कि वो एक बार गाड़ी से सफर कर रही थीं. ऐसे में टोल पर आधी रात को नाइट ड्यूटी के लिए दो महिलाएं आई थीं. सिंगर ने कहा कि वो तब मान गई थीं कि उत्तरप्रदेश में सही में बदलाव आ गया है. साथ ही उन्होंने बताया कि उत्तरप्रदेश के बड़े सितारे पंडित बिरजू महाराज जी, सोनू निगम, सुनिधि चौहान संग अन्य को जाना जाता है. लेकिन अब उत्तरप्रदेश के मंचों पर स्थानीय कलाकारों को भी जगह दी जाने लगी है. पहले यहां सिर्फ बाहर के कलाकार आते थे. ऐसे में स्थानीय कलाकारों के बच्चों ने खेती करनी शुरू कर दी थी, पान की दुकान खोल ली थी. लेकिन अब जनपद स्तर पर कलाकारों को काम दिया जा रहा है और उत्तरप्रदेश की लोक कलाओं का प्रदर्शन हो रहा है. जिस प्रदेश का संस्कृति का बजट बढ़ रहा है, उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है.
उन्होंने आगे कहा, '2016 में मुझे पद्मश्री मिला था. तब 24 साल बाद उत्तरप्रदेश में कोई पद्मश्री आया था. ऐसा नहीं है कि कलाकार नहीं थे. अपने बच्चों को हम ही नहीं अच्छा कहेंगे, तो बाहर वाला कौन कहने वाला है. आज यहां से नाम भेजे जा रहे हैं, बताया जा रहा है दिल्ली में कि देखिए ये हमारे यहां का लड़का है. घर मेरा मुंबई में है, मुझे गर्व है कि जबतक मैं हूं, तब तक यहां से जुड़ी हूं. अब लगता है कि जिस संस्कृति का गुणगान मैं बचपन से करती रही, उसको समझने वाली, उसको आगे बढ़ावा देने वाली सरकार इस समय आई है उत्तरप्रदेश में.'
राम मंदिर को लेकर कहा ये
अयोध्या के राम मंदिर के बारे में भी मालिनी अवस्थी ने बात की. उन्होंने कहा कि मंदिर बनने के बाद से मीडिया, सरकार क्या पूरा देश अयोध्या जाने लगा है. उन्होंने कहा, 'अयोध्या कोई पहले आता ही कहां था, जैसे श्रापित हो अयोध्या. हम लोगों ने तो देखा है. मेरे पति देव 1997 में वहां जिला अधिकारी थे. हमने राम लला को टेंट में देखा है. हमने देखा है कि कोई स्कीम बनती थी तो वो आगे नहीं बढ़ती थीं सरकार द्वारा. हमने देखा है कोई प्रधानमंत्री अयोध्या नहीं आना चाहता था, कोई मुख्यमंत्री अयोध्या नहीं आना चाहता था. वो समय हमने देखा है. मैं फिर कह रही हूं अपनी संस्कृति, अपने देवता, अपने इष्ट, अपनी धरोहर पर हम अभिमान नहीं करेंगे तो बाहर वाला कभी नहीं करेगा.'