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Baghpat district politics: चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि बागपत में जाट-मुस्लिम कॉम्बिनेशन का रहा दबदबा

बागपत की राजनीति (Baghpat) में चौधरी चरण सिंह और उनके परिवार का एकछत्र राज रहा है. चौधरी अजित सिंह यहां से लगातार सांसद बनते रहे. अब वो इस दुनिया में नहीं है तो बेटे जयंत पार्टी की बागडोर लेकर आगे बढ़ रहे हैं.

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RLD की एक जनसभा की तस्वीर
RLD की एक जनसभा की तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बागपत जिले में रहा है RLD का दबदबा
  • बागपत जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं
  • 2017 में सिर्फ एक सीट पर जीती थी RLD

पश्चिमी यूपी का बागपत वो नाम है, जो पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि रहा है. यहीं से चुनावी जीत हासिल कर किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह ने देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. और उनके बाद चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह ने भी पिता की राजनीतिक विरासत को इसी बागपत से आगे बढ़ाया और राष्ट्रीय लोकदल को कायम रखा. किसानों के नेता कहे जाने वाले ये दोनों ही नाम, आज इस दुनिया में नहीं हैं, अब इनकी विरासत को जयंत चौधरी आगे बढ़ा रहे हैं. 

जाट, गुर्जर, त्यागी, राजपूत, मुस्लिम और दलित मतदाताओं के प्रभाव वाले बागपत जनपद की स्थापना वर्ष 1997 में की गई थी. इससे पहले बागपत मेरठ जनपद की तहसील हुआ करती थी. यमुना नदी के नदी के तट पर बसा ये इलाका दिल्ली और हरियाणा से जुड़ता है. 

बागपत को पूर्वकाल में 'व्यागप्रस्थ' के नाम से जाना जाता था और पांडवों ने कौरवों से जिन पांच गांवों को मांगा था उनमें से एक यहां का सिनोला गांव भी है. महाभारत काल के प्रमाण भी सिनोली गांव की साइट से पुरातत्व विभाग को खुदाई के दौरान मिल चुके हैं. यहां तिरलोक धाम, पुरा महादेव मंदिर, गुफा वाले बाबा का मंदिर और लाक्षागृह जैसे धार्मिक स्थल भी हैं. 

चौधरी चरण सिंह ने कायम किया वर्चस्व

1967 में जब बागपत सीट पर पहला लोकसभा चुनाव हुआ तो यहां से भारतीय जनसंघ को जीत मिली. उसके बाद 1971 में पहली बार कंग्रेस को यहां का साथ मिला. इसके बाद यहां की सियासत बदल गई. 1977 में इस सीट पर सारे समीकरण बदले और भारतीय लोक दल यहां से पहली बार विजेता बनी. भारतीय लोकदल ने अपने टिकट पर चौधरी चरण सिंह को खड़ा किया, चौधरी चरण सिंह ने पहली ही बार में भारतीय लोक दल को जीत दिला दी. 

चौधरी चरण सिंह की जीत का सिलसिला यहीं नहीं रुका और वो 1977 के बाद 1980, 1984 में भी लगातार दो बार सांसद चुने गए. इसके बाद चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह ने मोर्चा संभाल लिया. 1989 में अजीत सिंह यहां से सांसद बने. 1991 में भी उन्होंने जनता दल उम्मीदवार के प्रत्याशी के रूप में जीत हासिल की. इसके बाद वर्ष 1996 में वह तीसरी बार सांसद चुने गए.

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चौधरी अजित ने विरासत को आगे बढ़ाया

1998 में पहली बार यहां कमल खिला. बीजेपी के टिकट पर सोमपाल सिंह शास्त्री ने इस सीट से पार्टी का खाता खोला. उन्होंने अजित सिंह को हराया था. लेकिन फिर बाजी पलटी और 1999 में अजीत सिंह एक बार फिर सांसद बन गए. 2004 और 2009 में भी यहां से अजीत सिंह ही जीते.

इस तरफ, समझा जा सकता है कि बागपत में राष्ट्रीय लोकदल का दबदबा कितना पुराना है. हालांकि, 2014 में मोदी लहर के चलते ये सीट उनसे छिन गई थी और बीजेपी के सत्यपाल सिंह 2014 और 2019 में लगातार जीते. 

सिर्फ लोकसभा सीट ही नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय लोकदल का दबदबा रहा है. बागपत सीट से आरएलडी के नवाब कोकब हमीद पांच बार विधायक रहे. वो कैबिनेट मंत्री भी रहे. उनकी इस जीत के पीछे हमेशा जाट और मुस्लिमों का गठजोड़ रहा.

बागपत में तीन विधानसभा सीटें 

बागपत जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं. इनमें बागपत, छपरौली और बड़ौत है. 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बागपत विधानसभा सीट से बीजेपी पार्टी से चुनाव लड़े योगेश धामा ने जीत दर्ज की. उन्होंने बसपा के अहमद हमीद को हराया था. जबकि आरएलडी प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना तीसरे नंबर पर खिसक गए थे. हालांकि, इस बार नवाब अहमद हमीद भी आरएलडी के साथ आ गए हैं. 

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बड़ौत विधानसभा सीट से बीजेपी से चुनाव लड़े केपी मलिक ने जीत दर्ज की थी जबकि आरएलडी से साहब सिंह दूसरे नंबर पर रहे थे. समाजवादी पार्टी के शोकेंद्र और बसपा के प्रत्याशी लोकेश दीक्षित तीसरे व चौथे नंबर पर रहे थे. बता दें कि ये सीट 2008 के परिसीमन के बाद दूसरी बार अस्तित्व में आई. इस लिहाज से यहां 2012 और 2017 के चुनाव हुए. दोनों ही चुनाव में लोकदल नहीं जीत सकी. 2012 में बसपा तो 2017 में भाजपा ने ये सीट जीती.

छपरौली विधानसभा सीट से आरएलडी के प्रत्याशी सहेंद्र सिंह रमाला ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने बीजेपी के सतेंद्र सिंह को हराया था. जबकि समाजवादी पार्टी से मनोज चौधरी तीसरे और बसपा से राजबाला चौधरी चौथे नंबर पर रहे थे. हालांकि, आरएलडी के टिकट पर जीतने के बाद सहेंद्र सिंह रमाला बीजेपी में शामिल हो गए थे. इस सीट पर 2002 से लगातार लोकदल जीतती रही है. 

बागपत जनपद में जाट, त्यागी, गुर्जर, मुस्लिम, दलित वोटों का प्रभाव है. ब्राह्मण वोट भी यहां है. जाट और मुस्लिमों का गठजोड़ यहां आरएलडी को जीत दिलाता रहा है. हालांकि, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद इस पड़ोसी जिले पर भी असर पड़ा था. लेकिन इस बार किसान आंदोलन के सहारे जाट-मुस्लिम एक मंच पर नजर आ रहे हैं और आरएलडी के जयंत चौधरी इस एकजुटता को और मजबूत करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं. 

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बागपत का उद्योग

मंदी के चलते बागपत का रिम धुरा उद्योग लगातार दम तोड़ता जा रहा है. उद्यमियों को सरकार से कोई सुविधा नहीं मिल रही है. गन्ने का भुगतान नहीं होने पर पूरे भारत में मांग भी घट गई है और उधारी में पड़ा पैसा भी नहीं मिल पा रहा है. 

बड़ौत में रिम-धुरा उद्योग वर्ष 1956 में शुरू हुआ था.  प्रेम नारायण शर्मा ने फूलसन के नाम से रिम-धुरा  बनाने की फैक्ट्री लगाई थी, वह भी अब बंद हो चुकी है. दिल्ली सहारनपुर हाइवे पर  रिम-धुरा उद्योग की फैक्ट्री स्थापित है, इस रिम-धुरे का इस्तेमाल ट्रालियों व भैसा बुग्गी में किया जाता है.

बड़ौत से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार, बंगाल, उड़ीसा समेत पूरे भारत में रिम-धुरे की सप्लाई होती थी. पहले यहां एक सौ के लगभग रिम-धुरे बनाने की फैक्ट्री थी, लेकिन समस्याओं के चलते अब मात्र 50 यूनिट ही चालू हैं, लेकिन वे भी मंदी की मार झेल रही हैं.  


 

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