लोकसभा चुनाव 2019 के दूसरे चरण में 12 राज्यों की 95 सीटों पर 18 अप्रैल को मतदान किया गया. ताजा आंकड़ों के अनुसार, इन 12 राज्यों में से एक कर्नाटक की 14 सीटों पर औसत 68.55 फीसदी मतदान दर्ज किया गया. वहीं प्रदेश की मैसूर लोकसभा संसदीय सीट पर 68.72 फीसदी मतदान किया गया. यहां पर 2014 में 67.30 फीसदी मतदान हुआ था.
लोकसभा चुनाव 2019 के दूसरे चरण के फेज में 97 सीटों पर चुनाव होना था, लेकिन 2 सीटों पर चुनाव निरस्त होने के बाद 95 सीटों पर चुनाव हुआ. दूसरे चरण में 15.52 करोड़ वोटर्स हैं जिनमें से पुरुष वोटर्स की संख्या 7.89 करोड़, महिला वोटर्स की संख्या 7.63 करोड़ और थर्ड जेंडर के 11, 030 वोटर्स हैं. इस चरण में 1,611 उम्मीदवारों का भविष्य दांव पर लगा है. मतदान के लिए कुल 1, 76, 441 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं.
कर्नाटक की 28 सीटों में से 14 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ. दूसरे चरण में कुल 2, 63, 38, 277 वोटर्स हैं. इन 14 सीटों को जीतने के लिए 241 उम्मीदवार चुनाव मैदान पर हैं. मतदान के लिए 30,410 पोलिंग स्टेशन बनाए गए.
बहरहाल, मैसूर सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला है. बीजेपी ने प्रताप सिम्हा को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस के टिकट पर सी. एच. विजयशंकर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने डॉ. बी. चंद्रगौड़ा को टिकट दिया है. कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस गठबंधन में चुनाव लड़ रही हैं. इसलिए इस सीट पर जेडीएस कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन दे रही है.
कर्नाटक की अहम लोकसभा सीटों में से एक मैसूर सीट पर बीजेपी और कांग्रेस में कड़ी टक्कर होती है. वोडेयार-मैसूर जिले में फैली इस सीट पर अभी बीजेपी के प्रताप सिम्हा काबिज है. उन्होंने कांग्रेस के सांसद अब्बगोरू एच विश्वनाथ को करीब 30 हजार मतों से मात दी थी. इस सीट पर 18 अप्रैल को मतदान होगा.
टीपू सुल्तान ने साल 1799 तक इस शहर पर राज किया. श्रीरंगपट्टनम के युद्ध में टीपू सुल्तान की मौत हो गई और फिर मैसूर पर अंग्रेजों ने शासन किया. टीपू सुल्तान के मैसूर पैलेस यानी अम्बा विलास महल के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध मैसूर कावेरी और काबीनी नदी के किनारे बसा है. नदियों के किनारे होने के कारण है कि इस इलाके की मुख्य आजीविका खेती पर निर्भर है. इसके अलावा मैसूर में हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक घूमने जाते हैं.
वर्ष 1977 में वजूद में आई मैसूर लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है. 1977 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के एचडी तुलसीदास जीते थे. इसके बाद 1980 में इस सीट से एम. राजशेखरामुर्थी जीते. 1984 और 1989 का चुनाव कांग्रेस के ही श्रीकांतादत्ता नरसिंहाराज वाडियर जीते. 1991 में कांग्रेस के चंद्रप्रभा जीतीं. 1996 में एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर श्रीकांतादत्ता नरसिंहाराज वाडियर जीतने में कामयाब रहे.
वर्ष 1996 में इस सीट पर पहली बार बीजेपी का खाता खुला और सीएच विजयशंकर जीते. 1999 में कांग्रेस ने फिर वापसी की. कांग्रेस के टिकट पर श्रीकांतादत्ता नरसिंहाराज वाडियर चौथी बार संसद पहुंचे. इसके बाद 2004 के चुनाव में एक बार फिर बीजेपी के सीएच विजयशंकर जीतने में कामयाब हुए. हालांकि, 2009 का चुनाव वह हार गए और कांग्रेस के टिकट पर अब्बगोरू एच विश्वनाथ जीते. 2014 के चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के प्रताप सिम्हा ने जीत दर्ज की.
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