असम की जोरहाट लोकसभा सीट पर बीजेपी की जीत हुई है. यहां से बीजेपी प्रत्याशी तपन कुमार गोगोई ने कांग्रेस के उम्मीदवार सुशांत बोरगोहेन को हराया. गोगोई की जीत 82653 वोटों से हुई है. असम में कुल 14 लोकसभा सीटें हैं. पिछली बार बीजेपी प्रत्याशी कामाख्या प्रसाद तासा ने 102420 वोटों से जीत हासिल की थी. तपन कुमार 17वीं लोकसभा के लिए चुने गए हैं.
कब और कितनी हुई वोटिंग
इस सीट पर वोटिंग पहले चरण में 11 अप्रैल को हुई थी जिसमें क्षेत्र के कुल 13,60,328 वोटरों में से 10,54,126 यानी 77.49 फीसदी लोगों ने वोट डाले.
कौन-कौन प्रमुख उम्मीदवार
सामान्य वर्ग वाली यह सीट फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है. बीजेपी ने 2019 चुनाव में वर्तमान सांसद कामाख्या प्रसाद का टिकट काटकर तपन कुमार गोगोई को मैदान में उतारा, जबकि सुशांत बोरगोहेन कांग्रेस प्रत्याशी थे. वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) से कनक गोगोई उम्मीदवार थे. जोरहाट लोकसभा सीट से कुल 8 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे.
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2014 का चुनाव
पिछले चुनाव में इस सीट पर 75.45 फीसदी वोटिंग हुई थी. 2014 में इस सीट पर मोदी लहर का साफ असर दिखा. पिछले लगातार 6 बार से चुनाव जीतते आ रहे कांग्रेस प्रत्याशी बिजॉय कृष्ण हांडिक को मोदी वेव में हार का मुंह देखना पड़ा. उन्हें बीजेपी प्रत्याशी कामाख्या प्रसाद ने एक लाख 2 हजार 420 मतों के अंतर से पराजित किया. हांडिक को जहां 3 लाख 54 हजार वोट मिले, वहीं कामाख्या प्रसाद को कुल 4 लाख 56 हजार 420 मत मिले. तीसरे नंबर पर असम गण परिषद के प्रदीप हजारिका रहे. 2014 के चुनाव में 14 हजार 648 लोगों ने नोटा का बटन दबाया.
सामाजिक ताना-बाना
2011 की जनगणना के अनुसार जोरहाट लोकसभा सीट में 84.08 फीसदी आबादी ग्रामीण जबकि 15.92 फीसदी आबादी शहरी है. यहां 4.57 फीसदी लोग एससी और 4.75 फीसदी आबादी एसटी है. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर वोट प्रतिशत 64.58 फीसदी और 2014 के चुनाव में 78.32 फीसदी है.
इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 11 लाख 89 हजार 486 है. इसमें से पुरुष मतदाताओं की संख्या 6 लाख 11 हजार 283 और महिला मतदाताओं की संख्या पांच लाख 78 हजार 203 है.
सीट का इतिहास
इस सीट पर शुरू से ही कांग्रेस पूरी तरह से काबिज रही है. 1952 और 57 में इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. 1962 के चुनाव में पीएसपी के टिकट पर लड़े राजेंद्र नाथ बरुआ ने जीत हासिल की. हालांकि अगले चुनाव में वे कांग्रेस के टिकट से लड़े और फिर जीते. इसके बाद 1971 और 77 में कांग्रेस प्रत्याशी तरुण गोगोई ने जीत दर्ज की. 1985 में असम गण परिषद के प्रत्याशी पराग छलीहा ने जीत हासिल की. लेकिन इसके बाद कांग्रेस ने इस सीट पर ऐसा कब्जा जमाया कि अगले दो दशक से भी ज्यादा समय तक उसके प्रत्याशी बिजॉय कृष्ण हांडिक जनता की उम्मीदों पर उतरते रहे. 2014 के चुनाव में उन्हें भी मोदी लहर का शिकार होना पड़ा.
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