जया प्रदा और आजम खान की अदावत काफी पुरानी है और अब उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट से दोनों नेताओं के चुनावी रण में आमने-सामने आने के बाद इसे और हवा मिल गई है. समाजवादी पार्टी ने आजम खान को रामपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है, जिसके बाद मंगलवार को बीजेपी ने यूपी के 29 प्रत्याशियों की अपनी सूची में जया प्रदा को रामपुर से टिकट देने की घोषणा की. यानी नवाबों के शहर रामपुर में मौजूदा चुनाव में काफी गर्मी देखने को मिल सकती है.
अतीत में ऐसा देखने को मिला है, जब नेताओं ने एक-दूसरे के लिए न सिर्फ तल्ख टिप्पणियां की हैं, बल्कि शब्दों की सीमा भी पार की है. साल 2018 में जब पद्मावत फिल्म को लेकर पूरे देश में शोर मचा हुआ था, तो जया प्रदा ने आजम खान की तुलना पद्मावत के किरदार खिलजी से की थी, जिसे फिल्म में बहुत ही क्रूर दर्शाया गया था. जया प्रदा के इस बयान का आजम खान ने भी अपने ही अंदाज में जवाब दिया था. आजम खान ने जया प्रदा कौन है पूछते हुए यहां तक कह दिया था कि वह नाचने-गाने वालों के मुंह नहीं लगा करते. दोनों नेताओं की यह दुश्मनी 2009 के लोकसभा चुनाव में खुलकर सामने आई थी. भरी सभा में मंच से जया प्रदा के आंसू भी हर तरफ सुर्खियां बने थे. हालांकि, इससे पहले वो भी एक वक्त था जब आजम खान ने उनके लिए जमकर प्रचार किया था.
अमर सिंह के कहने पर आजम खान ने ही 2004 में जया प्रदा को रामपुर से चुनाव लड़वाया और उनकी जीत भी सुनिश्चित की. लेकिन जल्द ही दोस्ती की दावत अदावत में बदल गई. यहां तक कि 2009 में आजम खान ने जया प्रदा की समाजवादी पार्टी से उम्मीदवारी का भी विरोध किया लेकिन उन्हें टिकट मिल गया. चुनाव में आजम खान ने उनका पुरजोर विरोध किया, बावजूद इसके जया प्रदा जीत गईं.
यहां से दोनों नेताओं की दूरियां और बढ़ गईं. यहां तक कि आजम खान ने खुद को समाजवादी पार्टी से भी अलग कर लिया और 17 मई 2009 को पार्टी के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, जल्द ही उनकी वापसी हो गई और 4 दिसंबर 2010 को पार्टी ने उनका निष्कासन रद्द करते हुए वापस बुला लिया. इसके बाद वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि जया प्रदा को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और 2014 का लोकसभा चुनाव उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल से टिकट पर बिजनौर सीट से लड़ा, जिसमें वो हार गईं. अब जया प्रदा ने चुनाव से ठीक पहले बीजेपी का दामन थाम लिया है और वह रामपुर सीट से बीजेपी के टिकट पर सपा प्रत्याशी आजम खान के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं.
फाइल फोटो
हालांकि, रामपुर कभी भी बीजेपी के लिए आसान सीट नहीं रही है. 2014 में रामपुर सीट पर बीजेपी ने नेपाल सिंह को लड़ाया था जिन्होंने मोदी लहर में जीत तो हासिल कर ली, लेकिन उनकी खराब सेहत और 75 पार की उम्र के कारण पार्टी किसी नए चेहरे के तलाश में थी. बताया जा रहा है कि जया प्रदा के गॉड फादर माने जाने वाले अमर सिंह की पहल पर ही जया प्रदा की एंट्री बीजेपी में हुई और शर्त ये कि वो रामपुर में चुनाव लड़ेंगी, ताकि अपने पुराने विरोधी आजम खान से सीधी टक्कर ले सकें.
मंगलवार को बीजेपी ने जब प्रत्याशियों की 10वीं सूची जारी की तो जया प्रदा को रामपुर से ही प्रत्याशी घोषित किया गया. यानी कभी एक ही पार्टी की छत्रछाया में रहे आजम खान और जया प्रदा 2009 की खटास के बाद एक बार फिर राजनीतिक बिसात पर आमने-सामने आ गए हैं. ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प होगा कि सपा के टिकट पर आजम खान को 2009 में नैतिक शिकस्त देने वाली जया प्रदा क्या इस बार आजम खान को उनके ही गढ़ में बीजेपी के रथ पर सवार होकर हरा पाएंगी या रामपुर के बेताज बादशाह माने जाने वाले आजम खान अपना किला बचाने में कामयाब रहेंगे.