बिहार में शुरुआती दौर से ही जनसंघ की ओर से पांव जमाने की कोशिश शुरू हो गई थी. बिहार विधानसभा के पहले दो चुनावों में जनसंघ को कोई सफलता नहीं मिली. तकरीबन एक दशक बाद 1962 के विधानसभा चुनाव में जनसंघ के 3 उम्मीदवार चुनाव जीत गए. पहली बार बिहार के नवादा, सीवान और हिलसा सीट पर जनसंघ की जीत हुई. इन तीनों ही सीटों पर कांग्रेसी उम्मीदवारों को हराकर जनसंघ के उम्मीदवार विजयी हुए थे.
सीवान से जनार्दन तिवारी, हिलसा से जगदीश प्रसाद और नवादा से गौरीशंकर केसरी चुनाव जीत गए. जनसंघ की तीन सीटों पर 1962 में जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वह बाद के वर्षों में भारतीय जनता पार्टी के रूप में बढ़ता गया. बीजेपी बिहार में तकरीबन 15 वर्षों से सरकार में है और एक बार फिर चुनाव की घोषणा के साथ ही तैयारी जोरों पर है. बिहार में बीजेपी का दायरा बढ़ा है लेकिन उन सीटों पर बीजेपी का क्या हाल है जिन पर पहली बार जनसंघ के उम्मीदवार जीते.
बीजेपी का सिवान सीट से नाता
1962 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जनसंघ के जनार्दन तिवारी ने कांग्रेस उम्मीदवार को हराकर इस सीट पर कब्जा जमा लिया. उसके बाद से 1980 तक इस सीट पर जनसंघ और कांग्रेस के बीच मुकाबला चलता रहा. 1980 के चुनाव में जनार्दन तिवारी ने अवध बिहारी चौधरी को हराकर यह सीट भाजपा के खाते में डाल दी. 1980 का चुनाव अवध बिहारी चौधरी ने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था और हार गए थे. हालांकि 1985 से लेकर 2005 तक इस सीट पर अवध बिहारी चौधरी का ही दबदबा रहा. 1985 में जेएनपी के टिकट पर चुनाव लड़कर अवध बिहारी विधानसभा पहुंचे और उसके बाद 90 और 95 में जनता दल के टिकट पर विजयी हुए. 2000 और 2005 के विधानसभा चुनाव में अवध बिहारी राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते. 85 से 2005 तक लगातार अवध बिहारी चौधरी सीवान सीट से विधायक चुने जाते रहे.
2005 के विधानसभा चुनाव में अवध बिहारी चौधरी को बीजेपी उम्मीदवार व्यासदेव ने मात दे दी. 20 साल के बाद अवध बिहारी चुनाव हार गए और इस सीट पर बीजेपी का कब्जा हो गया. 2005 से इस सीट से बीजेपी के व्यासदेव जीत हासिल कर रहे हैं. पिछले 15 वर्षों से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है.
नवादा सीट पर तीन दशक से दो परिवारों का कब्जा
1962 में जनसंघ से गौरीशंकर केसरी ने नवादा सीट पर कब्जा जमाया था लेकिन 2 साल बाद हुए चुनाव में कांग्रेस ने फिर इस सीट पर कब्जा कर लिया. 1969 में दोबारा से जनसंघ उम्मीदवार गौरीशंकर केसरी चुनाव जीते. उसके बाद के चुनावों में कभी कांग्रेस तो कभी सीपीएम उम्मीदवार की इस सीट पर जीत हुई. 1990 में बीजेपी के कृष्णा प्रसाद इस सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की. बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते कृष्णा प्रसाद बाद में आरजेडी में शामिल हो गए. कृष्णा प्रसाद के सड़क हादसे में निधन के बाद छोटे भाई राजबल्लभ यादव कृष्णा प्रसाद की विरासत को संभाला.
राजबल्लभ यादव ने 1995 का चुनाव निर्दलीय लड़कर जीत हासिल की. 2000 का चुनाव राजबल्लभ यादव ने आरजेडी से लड़ा और जीत हासिल की और सरकार में मंत्री भी बने. हालांकि इस चुनाव के बाद राजबल्लभ यादव की जीत पर कुछ वर्षों के लिए लगाम लग गया. अगले तीन चुनावों में पूर्णिमा यादव से राजबल्लभ यादव को शिकस्त खानी पड़ी. 2015 में जेडीयू आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन से राजबल्लभ एक बार फिर चुनाव जीत गए. 2018 में राजबल्लभ को उम्रकैद की सजा मिलने के बाद सदस्यता चली गई. 2019 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में जेडीयू से कौशल यादव को जीत मिली.
80 के बाद इस सीट पर नहीं खिल सका बीजेपी का कमल
नालंदा जिले की हिलसा विधानसभा सीट उन तीन सीटों में से एक सीट थी जिस पर पहली बार जनसंघ के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. 1962 में जनसंघ की ओर जगदीश प्रसाद ने इस सीट पर कब्जा जमाया था. हालांकि अगला चुनाव वो हार गए. 1967 के चुनाव में कांग्रेस के एके सिंह को जीत मिली जिन्होंने जगदीश प्रसाद को हराया. 1980 में बीजेपी के टिकट पर जगदीश प्रसाद इस सीट पर विजयी हुए. 1985 में कांग्रेस को इस सीट पर कब्जा जमाने का मौका मिला. 90,95 और 2000 के चुनाव में यहां निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की.
2005 में जेडीयू ने इस सीट पर कब्जा जमाया. जेडीयू को इस सीट से तीन बार लगातार जीत हासिल होती रही. 2010 में जेडीयू उम्मीदवार ने एलजेपी उम्मीदवार को मात दी. वर्तमान समय में इस सीट पर आरजेडी का कब्जा है. 2015 में महागठबंधन का हिस्सा होते हुए जेडीयू ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. 2015 के चुनाव में आरजेडी कैंडिडेट ने एलजेपी उम्मीदवार को मात दी थी.