पश्चिम बंगाल में चुनावी बिगुल बज चुका है. सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने-अपने पाले में लाने की कोशिशों में लग गए हैं. तमाम स्थानीय मुद्दों के बीच राजनीतिक दलों की नजर ऐसे बड़े समुदायों पर भी है जो चुनावी समीकरण बदलने में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं. पश्चिम बंगाल में ऐसा ही एक समुदाय है, मतुआ समुदाय.
मतुआ समुदाय के बारे में कहा जाता है कि बंगाल का सियासी गणित काफी हद तक मतुआ मतों पर टिका रहता है. माना जाता है कि मतुआ वोट जिधर भी खिसका उसका पलड़ा भारी पड़ जाता है. आपको बता दें कि बंगाल में लगभग एक करोड़ अस्सी लाख मतुआ मतदाता हैं. उत्तर 24 परगना का ठाकुर नगर इनका गढ़ है. इस वक्त टीएमसी और बीजेपी दोनों दलों की नजर मतुआ वोटर्स पर टिकी हैं और दोनों ही पार्टियां इन्हें लुभाने की भरसक कोशिश कर रही हैं.
इन जिलों की सीटों पर रहता है खास प्रभाव
चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही अमित शाह और ममता बनर्जी के अलावा अभिषेक बनर्जी यहां जनसभा कर चुके हैं. इसकी वजह भी साफ है. बंगाल की 294 विधान सभा सीटों में से लगभग 40 सीट पर मतुआ समुदाय का प्रत्यक्ष प्रभाव है. ये सीट उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण 24 परगना में केंद्रित हैं. इसके अलावा 20 ऐसी सीट हैं जहां मतुआ समुदाय का अप्रत्यक्ष प्रभाव है. ये सीट हुगली जिले के अलावा उत्तर बंगाल के कूचबिहार और आसपास के इलाकों में हैं.
ममता की जीत में था मतुआ समुदाय का भी रोल
15 मार्च 2010 को बीनापनी देवी यानी बोड़ो मां ने ममता बनर्जी को मतुआ समुदाय का संरक्षक घोषित कर दिया था. 2011 में बंगाल की सत्ता से वाम को उखाड़ने और ममता को मुख्यमंत्री बनाने में मतुआ समुदाय का साथ बहुत महत्वपूर्ण था.
ममता बनर्जी ने ठाकुर परिवार की सदस्य ममता बाला ठाकुर को टीएमसी से टिकट दिया और ममता बाला ठाकुर बोनगांव से चुनाव जीत भी गईं. लेकिन 2019 में बीजेपी ने मतुआ समुदाय पर ध्यान केन्द्रित किया. चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ठाकुर नगर पहुंचे जनसभा की और बीनापनी देवी का आशीर्वाद लिया.
सीएए से सीधा जुड़ा है मतुआ समुदाय
नागरिकता संशोधन बिल के मुद्दे पर बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बनगांव और रानाघाट सीट जीत ली. दरअसल सीएए का मुद्दा मतुआ समुदाय के लिए अहम है. इस अहमियत को समझने के लिए मतुआ समुदाय के इतिहास को जानना जरूरी है. मतुआ समाज पूर्वी बंगाल और अब बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थी हैं. जातियों की श्रेणी में इन्हें एससी के तौर पर रखा गया है और नामशूद्र कहा जाता है. यह एक अनुसूचित जाति है और बंगाल की जनसंख्या में इनकी भागीदारी 17% के आसपास है.
धर्म हिंदू लेकिन करते हैं इनकी पूजा
इनके पूर्वज हरिचंद ठाकुर ने समाज में इनको सम्मान दिलाने और छूत के तौर पर देखे जाने वाले मतुआ लोगों के सामाजिक उद्धार का बीड़ा उठाया था. हरिचंद ठाकुर के बेटे गुरुचंद ठाकुर ने इस काम को और आगे बढ़ाया और मतुआ संप्रदाय को समाज में स्थापित करने का काम किया. इनका धर्म हिंदू है लेकिन इनके भगवान हरिचंद ठाकुर और गुरुचंद ठाकुर हैं. मंदिरों में इन्हीं की मूर्ति है और इन्हीं की पूजा होती है.
सीएए को लेकर बंटा हुआ है मतुआ समुदाय
सालों से इन पर रिफ्यूजी का तगमा लगा हुआ है. जबकि इनके पास वोटर आईडी कार्ड से लेकर आधार कार्ड और तमाम तरह के भारतीय पहचान पत्र हैं. पहचान की इसी असमंजस वाली स्थिति को बीजेपी और टीएमसी दोनों भुनाने की कोशिश में लगे हुए हैं.
खुद मतुआ समुदाय के कई लोगों का कहना है कि हमारे पास सभी तरह के पहचान पत्र हैं फिर हमें किसी तरह की नागरिकता पत्र की जरूरत नहीं है. वहीं मतुआ समुदाय के कुछ लोगों का मानना है कि सीएए की वजह से उनके पास पुख्ता पहचान पत्र और नागरिकता का प्रमाण पत्र होगा.
पांचवें और छठे चरण की सीटों पर होगा असर
नदिया और उत्तर 24 परगना में पांचवे और छठे चरण में चुनाव होना है. यही दोनों जिले मतुआ समुदाय के गढ़ के रूप में जाने जाते हैं. इस तरह से अगर हम देखें तो पश्चिम बंगाल चुनाव के पांचवें और छठे चरण में मतुआ समुदाय का वोट बंगाल की सत्ता में अहम भूमिका निभाएगा.