कहा जाता है कि अगर कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो, तो उम्र केवल एक संख्या बनकर रह जाती है. इस कहावत को खूंटी जिले के कालामाटी गांव निवासी गंगा उरांव ने सच कर दिखाया है. 56 वर्ष की उम्र में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास कर यह साबित कर दिया कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती .
गंगा उरांव वर्तमान में डीएसई कार्यालय, खूंटी में दैनिक वेतनभोगी पियून के रूप में पिछले 16 वर्षों से कार्यरत हैं. उन्होंने बिरसा उच्च विद्यालय, चलागी से दसवीं की परीक्षा दी और 47.2 प्रतिशत अंक हासिल करते हुए सेकेंड डिवीजन से सफल हुए हैं.
गरीबी बनी थी पढ़ाई में बाधा
गंगा उरांव ने बताया कि गरीबी के कारण वह समय पर मैट्रिक की परीक्षा नहीं दे सके. जब वे नौवीं कक्षा में थे, तब परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वे महज 40 रुपये की रजिस्ट्रेशन फीस भी नहीं भर पाए. इस वजह से उनका नाम बोर्ड परीक्षा के लिए दर्ज नहीं हो सका .
नौकरी की स्थायित्व के लिए जरूरी थी परीक्षा
गंगा उरांव डीएसई कार्यालय में वर्षों से कार्य कर रहे हैं, लेकिन उनकी नौकरी अब तक स्थायी नहीं हो सकी है. अधिकारियों का तर्क था कि वे मैट्रिक पास नहीं हैं, इसलिए उन्हें स्थायी नहीं किया जा सकता. यही बात गंगा को चुभ गई और उन्होंने ठान लिया कि अब परीक्षा पास करनी ही है. कड़ी मेहनत और लगन के बाद उन्होंने यह मुकाम हासिल किया. अब उन्हें उम्मीद है कि उनकी नौकरी स्थायी हो जाएगी .
परिवार में खुशी की लहर
गंगा उरांव के परिवार में उनकी 80 वर्षीय मां हीरामनी देवी, पत्नी चारी उरांव और चार बेटियां हैं. खास बात यह है कि सभी बेटियों की शादी हो चुकी है. उनके मैट्रिक पास होने की खबर से पूरा परिवार बेहद खुश है. उनकी वृद्ध मां, जो न तो ठीक से बोल पाती हैं और न चल पाती हैं, लेकिन बेटे की सफलता से इतनी खुश हैं कि उनकी आंखों में गर्व और संतोष साफ झलक रहा था. बेटियों ने भी पिता की इस उपलब्धि को लेकर खास उत्साह दिखाया .
गंगा उरांव ने कहा, “मैट्रिक पास करना मेरे लिए सिर्फ एक परीक्षा नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान और भविष्य की जरूरत थी.” उन्होंने यह भी बताया कि वे अब और भी पढ़ाई करना चाहते हैं और युवाओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती .