विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने या फेलोशिप लेने के लिए कैंडिडेट्स को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा आयोजित UGC-NET(JRF) परीक्षा को पास करनी होती है. इस साल भी 18 जून को लाखों कैंडिडेट्स ने इस उम्मीद ने यह एग्जाम दिया था कि अच्छे अंक लाने पर उन्हें किसी नामी संस्थान में असिसटेंट प्रोफेसर का पद मिलेगा या सरकार की तरफ से जूनियर रिसर्च फेलोशिप की सुविधा मिलेगी. फिर एग्जाम के अगले दिन ही खबर आई कि परीक्षा रद्द कर दी गई है. इससे छात्रों का हौसला तो टूटा ही है साथ ही परीक्षा आयोजित कराने वाली एजेंसी एनटीए से भरोसा भी उठा है. सात बार नेट क्लियर कर चुके शिक्षाविद अमित कुमार ने नेट परीक्षा कराने वाली एजेंसी एनटीए की कार्यप्रणाली पर कई सवाल उठाए हैं. जानिए- क्या हैं उनके तर्क?
क्या हड़बड़ी में कराई परीक्षा?
एनटीए ने दो महीने पहले नोटिफिकेशन निकाला कि पेपर ओएमआर शीट पर होना है. यह पहले भी तय किया जा सकता था. अचानक से एनटीए ने अपना डिसिजन लिया, इससे लगता है कि ये परीक्षा बहुत हड़बड़ी में कराई गई. अमित कुमार ने इस साल हुए यूजीसी नेट एग्जाम में खराब और हल्की ओएमआर शीट दिए जाने का भी सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि पहले नेट की परीक्षा सीबीटी मोड में होती थी, ऐसे में पेपर तुरंत लॉक हो जाता था. इस साल एग्जाम पेन और पेपर मोड में हुआ है. छात्रों की ओएमआर शीट इतनी पतली थी कि अगर उसपर थोड़ा जोर डाला जाता तो वह तुरंत फट जाती. लकड़ी की बेंच पर शीट रखकर स्टूडेंट्स उसे भर रहे हैं. अंत में कई छात्रों की ओएमआर शीट इनवैलिड हो सकती थी. एनटीए को इन छोटी गलतियों पर भी ध्यान देना चाहिए था.
UGC NET पेपर में आया सिलेबस से बाहर का सवाल?
अमित कुमार ने कहा कि नेट पेपर लीक में यूजीसी नहीं बल्कि एनटीए का हाथ कहा जा सकता है. अमित ने बताया कि पेपर वन में छात्रों से नेफ्रोलॉजी का सवाल पूछा गया था, जो कि जनरल स्टडीज का सवाल है. जब आप सिलेबस को देखेंगे तो पता चलेगा कि उसमें जनरल स्टडीज का कोई विषय है ही नहीं. अगर सवाल देना था को पहले यह बताना चाहिए था कि हम करेंट अफेयर्स के सवाल पूछेंगे. पेपर 1 के सिलेबस में करेंट अफेयर्स है ही नहीं.
अमित कुमार ने आगे बताया कि नेट क्लियर करने के लिए कैंडिडेट्स को पेपर 1 और पेपर 2 देना होता है. यह दोनों पेपर कंबाइन होकर आते हैं, जिन्हें तीन घंटे में पूरा करना होता है. पेपर वन में 50 प्रश्न और पेपर 2 में 100 प्रश्न होते हैं. हर सवाल 2 अंकों का होता है. इसे पास करने के लिए कैंडिडेट्स को न्यूनतम 35 प्रतिशत अंक लाना जरूरी है. इसके बाद जेआरएफ देना सेंट्रल के फंड पर निर्भर करता है. अगर सेंट्रल की तरफ से 10 लोगों को जेआरएफ दिया जा रहा है तो टॉप 10 स्टूडेंट्स को फैलोशिप मिल जाएगी. इसके बाद बाकि स्टूडेंट्स के लिए यूनिवर्सिटीज फॉर्म निकालती हैं, कैंडिडेट्स इन फॉर्म को फिल करके नेट स्कोर के आधार पर एडमिशन लेते हैं. जब पीएचडी शुरू हो जाती है, तब जेआरएफ के छात्रों का पैसा आने लगता है.
एग्जाम कैंसिल होने से समय की कैसे हुई बर्बादी?
अमित कुमार ने बताया कि अगर 8 जून को हुई नेट परीक्षा में कोई गड़बड़ी नहीं हुई होती तो बच्चे समय पर अपना एग्जाम खत्म करते और समय पर उनका एडमिशन हो जाता. अमित ने आगे कहा कि दिसंबर तक सभी एलिजिबल छात्रों की पीएचडी शुरू भी होती और कैंडिडेट्स का जेआरएफ भी आने लगता. कैंडिडेट्स दूर-दूर से खर्चा करके एग्जाम देने आते हैं, हर किसी की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं होती है. कैंडिडेट्स टैक्सी आदि का किराया देकर सेंटर पर पहुंचते हैं. इन गड़बड़ियों के चलते बच्चों का काफी आर्थिक नुकसान भी हुआ है.
एग्जाम सेंटर थे दूर, कई छात्रों का छूटा पेपर
एग्जाम सेंटर को लेकर भी अमित ने एनटीए पर सवाल उठाए हैं, उन्होंने कहा कि पहले परीक्षाएं यूनिवर्सिटी में हुआ करती थीं, विश्वविद्यालय की निगरानी में पूरी परीक्षा होती थी. अमित ने आगे कहा कि आप सोच भी नहीं सकते हैं कि इस बार कहां-कहां एग्जाम सेंटर था. मैं अपने एग्जाम सेंटर की बताऊं तो मेरा सेंटर ऐसा था कि वहां गूगल मैप भी काम नहीं कर रहा था. कई लोगों का पेपर इसीलिए छूटा है क्योंकि एग्जाम सेंटर तक पहुंचने के लिए कोई वाहन ही नहीं था, ना तो कोई ई-रिक्शा ना ही कोई बस. मुख्य इलाके के 7 किलोमीटर दूर पतली सी रोड में मेरा सेंटर था. अगर खुद का वाहन ना हो तो वहां पहुंचना काफी मश्किल है.
समय और पेपर की बर्बादी
अमित ने आगे बताया कि अगर ऐसी जगह सेंटर होगा तो परीक्षा के बाद ओएमआर शीट को मुख्य सेंटर तक पहुंचाने में समय लग जाएगा. ऐसे में कोई भी परीक्षक अपने पसंदीदा कैंडिडेट को यह भी कह सकता है कि ओएमआर शीट ब्लैंक छोड़ दो. अगर सारे सवाल पता हों तो कुछ ही देर में ओएमआर शीट भरकर पेपर भिजवाया जा सकता है और किसी को शक भी नहीं होगा क्योंकि सेंटर इतनी दूर है तो यह कह सकते हैं कि आने में काफी देरी हुई. नेट परीक्षा को लेकर एनटीए पर ऐसे तमाम सवाल खड़े होते हैं. ओएमआर शीट भरने से पहले कैंडिडेट्स को तीन बार अपना वेरिफिकेशन करना पड़ा, ऐसे में उनका काफी समय बर्बाद हुआ है. कंप्यूटर पर ऐसा नहीं होता था, एक ही बार फेस स्कैन करके एंट्री मिल जाती थी, इसमें ना ओएमआर फटने-खोने का कोई डर नहीं था. इससे पेपर की बर्बादी भी हुई है.
इस साल करीबन 11 लाख से अधिक छात्रों ने यूजीसी नेट की परीक्षा में हिस्सा लिया था. महीनों तैयारी करने के बाद 18 तारीख को सभी ने एग्जाम दिया लेकिन अब इनकी परीक्षा कैंसिल कर दी गई है साथ ही यह भी नहीं पता कि दोबारा एग्जाम कब होगा? मंत्रालय ने कहा है कि यूजीसी नेट का एग्जाम दोबारा कराया जाएगा लेकिन सवाल तो यह भी उठता है कि क्या री-एग्जाम करवाने से छात्रों का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई हो जाएगी? जून का महीना ऐसा महीना है जब सभी स्टूडेंट्स के सेमेस्टर खत्म होते हैं. अगर आप एग्जाम फिर से करवाओगे तो वह अभ्यर्थियों की अन्य परीक्षाओं के साथ क्लैश करेगा.