दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन एएडीटीए के एक्जीक्यूटिव और एकेडमिक काउंसिल के सदस्यों ने तदर्थ शिक्षकों के पक्ष में कुलपति को पत्र लिखा है. एक्जीक्यूटिव काउंसिल सदस्य सीमा दास और राजपाल सिंह पवार के साथ ही अकादमिक काउंसिल के पांच सदस्यों आशा जस्सल, कपिला मल्लाह, सुनील कुमार, आलोक रंजन पाण्डेय और सीएम नेगी की ओर से यह पत्र 23 जनवरी को भेजा गया है. भावुक शब्दों में लिखे इस पत्र में तदर्थ शिक्षकों के हालात और उन पर जो बीत रही है, उसे दर्शाते हुए कुलपति से उनके लिए न्याय करने की मांग की गई है.
पत्र में लिखा है कि अपने एडहॉक सहयोगियों के बड़े पैमाने पर हो रहे विस्थापन की अमानवीय प्रक्रिया को देख अत्यंत निराशा और असह्य पीड़ा की अनुभूति हो रही है. इसको रोकने के संबंध में हम आपको यह पत्र लिख रहें हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज बड़ी ही संवेदनशून्यता के साथ जिन एडहॉक साथियों को विस्थापित किया जा रहा है, उन्होंने अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय की सेवा में समर्पित किए हैं. अपने शताब्दी वर्ष में दिल्ली विश्वविद्यालय, अपनी जिन उपलब्धियों को लेकर गर्व कर रहा है, उन सभी की नींव में इन्हीं तदर्थ साथियों का परिश्रम घुला हुआ है.
जैसा कि आप जानते ही होंगे कि चल रही चयन प्रक्रिया के दौरान विभिन्न कॉलेजों के लगभग सभी विभागों में वर्षों से कार्यरत लगभग 75% तदर्थ शिक्षकों (425 में से लगभग 300) को विस्थापित कर दिया गया है. इनमें 27 साल तक के सेवारत मेधावी शिक्षक समेत स्वर्ण पदक विजेता भी शामिल हैं. यह न केवल कालांतर में किए गए वादों की अवहेलना है, बल्कि कोरा विश्वासघात और प्रतिबद्धता व निष्ठा के प्रति किया गया घोर अन्याय भी है.
उठाया वेंकटेश्वर कॉलेज का मुद्दा
पत्र में आगे लिखा कि जैसा कि आप अच्छी तरह जानते हैं, पिछली कार्यकारिणी परिषद की बैठक में हमने इस संबंध में कड़ा विरोध दर्ज कराया था. तदर्थ शिक्षकों ने इस विश्वविद्यालय के स्तर को निरंतर ऊंचा बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनमें से कुछ वर्षों से अपने पद पर कार्यरत हैं और उन्होंने अपने छात्रों के जीवन और विश्वविद्यालय की छवि को आकार देने में अपना सब कुछ झोंक दिया है. उदाहरण के लिए साउथ कैंपस के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज में, हाल ही में 34 तदर्थ शिक्षकों को विस्थापित किया गया है. कॉलेज के अर्थशास्त्र विभाग में सभी तदर्थ शिक्षक (100%) एक झटके में विस्थापित हो गए. AADTA सैद्धांतिक रूप से NAAC की मान्यता का विरोध करते हैं, लेकिन विश्वविद्यालय इसे महत्व देता है.
ऐसे में एक विचारणीय प्रश्न यह है कि अभी हाल ही में श्री वेंकटेश्वर कॉलेज को जो NAAC प्रत्यायन में A+ ग्रेड मिला है, वह क्या कॉलेज के अर्थशास्त्र और अन्य विभागों में कार्यरत तदर्थ शिक्षकों के योगदान के बिना संभव था? दौलतराम कॉलेज, हंसराज, रामजस, लक्ष्मीबाई, डीसीएसी, देशबंधु और इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के अन्य कॉलेजों में भी कुल मिलाकर कर यही स्थिति है. जाहिर है कि तदर्थ शिक्षकों को हटाकर विश्वविद्यालय उनके प्रति कृतघ्नता प्रदर्शित कर रहा है. यहां तक कि इस तथ्य के प्रति भी असंवेदनशील साबित हो रहा है कि उनमें से अधिकांश को अब विश्वविद्यालय की सेवा में अपना कीमती वर्ष देने के बाद, अब फिर से अपनी आजीविका प्राप्त करने के लिए नए रास्तों की तलाश करनी होगी.