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Do You Know: क्यों गुलाबी होते हैं बबल गम? जानिए किसने किया था इसका अविष्कार

आज के वक्त में लोग च्यूइंगम को ही बबल गम कहते हैं. हालांकि, आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दोनों में फर्क है. वहीं, बबल गम के गुलाबी रंगे के पीछे भी एक कहानी है. आइए जानते हैं कैसे हुआ था बबल गम का अविष्कार और क्यों गुलाबी ही होते थे बबल गम.

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गुलाबी क्यों होते हैं बबल गम (Representational Image)
गुलाबी क्यों होते हैं बबल गम (Representational Image)

बबल गम खाना और उसे खाने के बाद फुलाना लगभग हर किसे के बचपन का हिस्सा रहा होगा. बचपन में हम अक्सर अपने दोस्तों के साथ बबल गम खाकर उसे फुलाने का कॉम्पिटिशन किया करते थे. आज भले ही मार्केट में बबल गम के बहुत से फ्लेवर और रंग आ गए हों, लेकिन पहले के समय में ज्यादातर बबल गम का रंग गुलाबी हुआ करता था. मार्केट में पहले सिर्फ गुलाबी रंग के बबल गम मिलते थे. क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों बबल गम का रंग गुलाबी होता था और इसका अविष्कार कैसे हुआ. 

बबल गम और च्यूइंगम में फर्क
आज ज्यादातर लोग च्यूइंगम को ही बबल गम कहते हैं. हालांकि, च्यूइंगम और बबल गम में मामूली फर्क है. दरअसल, बबल गम को खाने के बाद फुला सकते हैं. जबकि, च्यूइंगम के साथ ऐसा नहीं हो पाता. सभी च्यूइंगम बबल गम नहीं होते हैं. आइए जानते हैं कब बनाया गया पहला बबल गम. 

किसने बनाया बबल गम? 
साल 1906 में पहला बबल गम बनाने का आइडिया आया. फ्लेयर कॉर्पोरेशन, फिलाडेल्फिया के संस्थापक फ्रैंक एच. फ्लेयर ने पहली बार बबल गम को बनाया. उन्होंने अपने इस अविष्कार को ब्लिबर-ब्लबर कहा. फ्लेयर एक ऐसा प्रोडक्ट बनाना चाहते थे, जिसे लेकर कस्टमर्स के बीच उत्साह रहे. यही वजह थी कि वो ऐसा बबल गम बनाना चाहते थे, जिसे खाने के बाद लोग उसे फुला सकें. हालांकि, फ्लेयर का पहला प्रयास असफल रहा. उन्होंने जो बबल गम बनाया वो बहुत ज्यादा चिपचिपा था. खाते वक्त वो बहुत ज्यादा चिपकता था और उसे फुलाना मुश्किल होता था. 

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साल 1928 में पहला सफल बबल गम बनाया गया. बीबीसी हिस्ट्री में छपे एक आर्टिकल के मुताबिक, फ्लेयर के एक एकाउंटेंट, वाल्टर डायमर अपना खाली समय नई-नई रेसिपी बनाने में लगाते थे. एक रोज वो ब्लिबर-ब्लबर के साथ लैब में प्रयोग कर रहे थे. एक्सपेरिमेंट के दौरान उन्होंने गलती से एक ऐसा पदार्थ बनाया जो चबाने में अच्छा लगता था और उसे फुला पाना भी आसान था. ऐसे ही पहले बबल गम का अविष्कार हुआ. उन्होंने इसका नाम डबबल बबल रखा.

फ्लेयर ने इस बबल गम का एक बैच 1928 में एक लोकल शॉप पर भेजा. एक ही दिन में पूरा बैच बिक गया. बबल गम की बिक्री बढ़ाने के लिए डायमर ने सेल्समैन को खुद बबल गम फुलाने का तरीका सिखाया ताकि ग्राहक भी ये सीख पाएं और इसे खरीदने के लिए उत्साहित रहें. 

गुलाबी ही क्यों होता है बबल गम?
बबल गम का रंग गुलाबी होना कोई विकल्प नहीं था. दरअसल, डायमर ने जो बबल गम बनाया था वो हल्के ग्रे रंग का था. उसके रंग को देखकर शायद ही कोई उसे खरीदता, इस ख्याल से डायमर ने उसे थोड़ा अच्छा दिखने के लिए रंगीन बनाने का प्लान किया. उस वक्त फैक्ट्री में केवल लाल रंग की डाई उपलब्ध थी. जब लाल रंग की डाई को ग्रे रंग में मिलाया गया तो उसका रंग गुलाबी हो गया. तब से, बबल गम का रंग हर जगह गुलाबी बन गया. 

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