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मिट्टी बन जाती है लावा! परमाणु बम टेस्ट में क्या होता है, जो अब ट्रंप करवा रहे हैं!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि अमेरिका के पास दुनिया में सबसे ज़्यादा परमाणु हथियार हैं. उन्होंने ट्रुथ सोशल पर लिखा कि ये उपलब्धि उनके पहले कार्यकाल में हासिल हुई, जब हथियारों को आधुनिक बनाया गया.

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अमेरिका ने अपना आखिरी परमाणु परीक्षण 23 सितंबर 1992 को किया था  (प्रतीकात्मक तस्वीर-Pixabay)
अमेरिका ने अपना आखिरी परमाणु परीक्षण 23 सितंबर 1992 को किया था (प्रतीकात्मक तस्वीर-Pixabay)

अमेरिका एक बार फिर दुनिया को अपनी परमाणु शक्ति दिखाने की तैयारी में है. यह कदम अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की योजना का हिस्सा है. ट्रंप ने कुछ समय पहले रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) को आदेश दिया था कि परमाणु परीक्षण जल्द से जल्द शुरू किए जाएं, ताकि अमेरिका की शक्ति चीन और रूस के बराबर दिखाई दे सके.

अमेरिका ने अपना आखिरी परमाणु परीक्षण 23 सितंबर 1992 को किया था. यह उसका 1,030वां टेस्ट था. इस परीक्षण का नाम रखा गया था ‘डिवाइडर’. इसे नेवादा रेगिस्तान की रेनियर मेसा पहाड़ियों के नीचे, लगभग 2,300 फीट की गहराई में किया गया था ताकि रेडिएशन बाहर न फैल सके.

विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि नीचे की चट्टानें पिघल गईं और जमीन की सतह करीब एक फुट ऊपर उठकर फिर नीचे धंस गई. आज भी उस जगह पर लगभग 150 मीटर चौड़ा और 10 मीटर गहरा गड्ढा मौजूद है, जो उस घटना की याद दिलाता है.

न्यूक्लियर टेस्ट सिर्फ जमीन पर ही किए जाते हैं?

न्यूक्लियर टेस्ट मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं – हवा में, जमीन के नीचे और समुद्र की गहराई में. 1996 में CTBT (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty) के बाद ज्यादातर देशों ने वायुमंडलीय और जलीय परीक्षण बंद कर दिए. अब केवल भूमिगत या सिमुलेशन टेस्ट ही किए जाते हैं.

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दुनिया भर में हुए हैं 2000 से ज्यादा परमाणु परीक्षण

1945 से अब तक दुनिया में 2000 से अधिक न्यूक्लियर टेस्ट हो चुके हैं. इनमें अमेरिका, सोवियत संघ (अब रूस), ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया जैसे देश शामिल हैं.

ये तस्वीर 1946 में हुए ऑपरेशन क्रॉसरोड्स परमाणु परीक्षण के दौरान की है. (Photo: Reuters)

न्यूक्लियर टेस्ट में होता क्या है?

परमाणु परीक्षण और परमाणु बम विस्फोट दोनों में परमाणु प्रतिक्रिया होती है, लेकिन दोनों का उद्देश्य और प्रक्रिया अलग होती है.
न्यूक्लियर टेस्ट एक नियंत्रित वैज्ञानिक प्रयोग होता है, जिसमें हथियार की डिजाइन, शक्ति, सुरक्षा और विश्वसनीयता की जांच की जाती है.

इसे ऐसे इलाकों में किया जाता है जो निर्जन या दूरदराज हों – जैसे रेगिस्तान, भूमिगत शाफ्ट या समुद्री द्वीप. इसमें रेडिएशन को सीमित रखने की पूरी कोशिश की जाती है. उदाहरण के लिए, भारत के पोखरण-II (1998) में किए गए पांच परीक्षणों से किसी की जान नहीं गई थी.

कैसे होती है तैयारी

टेस्ट से 24 से 48 घंटे पहले पूरा इलाका खाली कर दिया जाता है. वायुसेना गश्त करती है, रेडिएशन मॉनिटरिंग टीम तैनात की जाती है. सभी वैज्ञानिक और अधिकारी 5 से 10 किलोमीटर दूर कंक्रीट बंकरों में चले जाते हैं. वहां मोटी दीवारें, ऑक्सीजन सप्लाई और CCTV कैमरे लगे होते हैं.

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काउंटडाउन और विस्फोट

जब सब कुछ तैयार होता है, तो काउंटडाउन शुरू किया जाता है- इलेक्ट्रॉनिक ट्रिगर से हाई एक्सप्लोसिव फटते हैं. इससे प्लूटोनियम को संकुचित किया जाता है. जब यह क्रिटिकल मास तक पहुंचता है, तो चेन रिएक्शन शुरू होती है. लाखों डिग्री तापमान, तेज रोशनी और अरबों न्यूट्रॉन निकलते हैं.

क्योंकि यह भूमिगत होता है, इसलिए सतह पर सिर्फ हल्का कंपन महसूस होता है, जैसे 4.0 से 6.0 तीव्रता का छोटा भूकंप. ऊपर की मिट्टी गर्म होकर पिघल जाती है और अंदर एक गुहा बनती है, जो बाद में ढहकर क्रेटर (गड्ढा) बना देती है.


टेस्ट के बाद क्या होता है

विस्फोट के कुछ मिलीसेकंड बाद सभी सेंसर डेटा भेजते हैं, जिसे सुपरकंप्यूटर तुरंत प्रोसेस करते हैं और वैज्ञानिक उसी से हथियारों की ताकत का अंदाजा लगाते हैं.

विस्फोट के कुछ घंटे बाद रोबोट और ड्रोन साइट पर भेजे जाते हैं. वे मिट्टी और हवा के सैंपल लेते हैं. रेडियोधर्मी गैसों – जैसे क्रिप्टॉन और जेनॉन – की जांच की जाती है. इसके बाद उस क्षेत्र को सील कर दिया जाता है.

कई महीनों तक पर्यावरण मॉनिटरिंग की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रेडिएशन का कोई खतरा न रहे. अंत में वैज्ञानिक टीम रिपोर्ट तैयार करती है, जो गोपनीय रहती है. हालांकि, भूकंपीय झटकों के डेटा को दुनिया भर के सेंसर (CTBTO नेटवर्क) रिकॉर्ड करते हैं.
 

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