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गिलास में नहीं... क्यों 'गैंडे के सींग' में शराब पीते थे पुराने राजा-रानी?

इंग्लैंड और यूरोप में कई ऐसे राजा-रानी हुए जो गैंडे के सींग और व्हेल मछली के दांत से बने प्यालों में पानी या शराब पीते थे. कई तो इसे रत्नों और पन्नों से जड़वा कर राजदंड की तरह भी अपने नजदीक रखते थे. आखिर ऐसा करने के पीछे क्या वजह थी, जानते हैं पूरी कहानी.

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पुराने जमाने में राजा-रानी गैंडे की सींग में इस वजह से शराब पीते थे (Photo - AI Generated)
पुराने जमाने में राजा-रानी गैंडे की सींग में इस वजह से शराब पीते थे (Photo - AI Generated)

इतिहास में कई ऐसे राजा-रानी हुए जो 'यूनिकॉर्न के सींग' में पानी या शराब पीते थे. असल में ये यूनिकॉर्न के सींग नहीं थे, बल्कि ये गैंडे के सींग होते थे. राजा-रानियों के इस अजीब व्यवहार के पीछे की वजह भी काफी अजीबोगरीब थी. 

हिस्ट्री.कॉम के मुताबिक,  राजघरानों में राजा-रानियों को कपटी दरबारियों और परिवार के विश्वासघाती सदस्यों से हमेशा जान का खतरा बना रहता था. कई राजघराने इस वजह से सुरक्षा के लिए अंधविश्वास और कीमियागीरों पर भरोसा करते थे. इस वजह से कई जादुई चीजों के लिए भारी रकम चुकाते थे.

क्यों सींगों में शराब पीते थे राजा
रॉयल आर्ट ऑफ पॉइजन की लेखिका एलेनोर हरमन के अनुसार जानबूझकर जहर दिए जाने से बचने के लिए यूनिकॉर्न के सींग का इस्तेमाल करते थे. हरमन बताती हैं कि राजा-रानियों का मानना ​​था कि ऐसी चीजें उनकी रक्षा करेंगी. क्योंकि उस समय के सबसे विद्वान लोग और कीमियागर लोग उन्हें यही बताते थे.

ऊंची कीमत देकर खरीदते थे ऐसी चीजें
आजकल के नेताओं के पास सीक्रेट सर्विस एजेंट होते हैं. वहीं उस जमाने में उनके पास फूड टेस्टर हुआ करते थे. इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम भी इस पर विश्वास करती थीं. 10,000 पाउंड की ऊंची कीमत देखर उन्होंने एक शानदार सर्पिल गेंडे का सींग खरीदा था. 

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हरमन कहती हैं कि वह गेंडे के सींग के प्याले से पानी पीने के लिए भी जानी जाती थीं, क्योंकि उनका मानना ​​था कि अगर जहर उस पर लग जाए, तो वह फट जाएगा. 

इसे कहा जाता था "यूनिकॉर्न का सींग"
गैंडे के सींग को ही "यूनिकॉर्न का सींग" बताया जाता था. गैंडे की सींग की जगह नार व्हेल के दांतों का भी प्रयोग किया जाता था और इसी को "यूनिकॉर्न का सींग" बता दिया जाता था. नार व्हेल एक आर्कटिक व्हेल है जिसके शानदार सर्पिल दांत नौ फीट तक लंबे हो सकते हैं.

इन जीवों के दांत या सींग को "यूनिकॉर्न का सींग" का नाम शायद वाइकिंग व्यापारी ने दिया. लगभग 1000 ई.  में ग्रीनलैंड जैसे स्थानों के समुद्र तट पर बहकर आए नार व्हेल के दांत ढूंढ़ने शुरू किए और उन्हें यूरोपीय लोगों को बेचना शुरू किया.

कहां से आया "यूनिकॉर्न का सींग"
मध्य युग के दौरान यह व्यापार और मजबूत हुआ. जब गेंडा ईसा मसीह का प्रतीक बन गया और इस प्रकार लगभग एक पवित्र पशु बन गया. यूरोपीय शासकों में गेंडा के सींगों के मालिक बनने का जुनून सवार हो गया. यह एक  राजकीय उपहार के रूप में लोकप्रिय हो गए.

कभी शाही उपहार बन गई थी ये चीज 
1533 में पोप क्लेमेंट VII ने फ्रांस के राजा फ्रांसिस I को ठोस सोने से जड़ा एक शानदार सींग भेंट किया. इसी तरह रूस के जार इवान द टेरिबल के पास इससे बना एक डंडा था. स्पेन के फिलिप II के पास संभवतः ऐसे  12 सींगों के प्याले थे.

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शाही हैब्सबर्ग परिवार ने अपने एक दांत से बने प्याले को रत्नजड़ित करवा रखा था. 1600 के दशक के अंत में, डेनमार्क के क्रिश्चियन V गेंडे के सींगों से बने सिंहासन पर बैठते थे. जिसका उपयोग सदियों तक राज्याभिषेक समारोहों में किया जाता रहा.

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