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क्या भविष्य में इंसान हो जाएंगे अमर? आखिर कुछ वैज्ञानिक ऐसा क्यों कहते हैं

आपकी चेतना टाइमलाइन बदलकर एक दूसरी टाइमलाइन में पहुंच जाती है जहां आप जिंदा रहते है. क्वांटम इम्मौर्टैलिटी का विचार 1980 के दशक में उतपन्न हुआ था.

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क्वांटम इम्मौर्टैलिटी थ्योरी कहती है कि इंसान हमेशा के लिए अमर हो सकते हैं. (फोटो- A.I. Generated)
क्वांटम इम्मौर्टैलिटी थ्योरी कहती है कि इंसान हमेशा के लिए अमर हो सकते हैं. (फोटो- A.I. Generated)

क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप पैदल सड़क पार कर रहे थे और अचानक आपके सामने एक गाड़ी आ गई, जिससे आप टकराते-टकराते बचे या फिर आप इतनी बुरी तरह बीमार हुए कि आपको लगा अब आप मरने वाले हैं.

क्या है क्वांटम इम्मौर्टैलिटी?

क्वांटम फिजिक्स पैरेलल यूनिवर्स और एक अन्य टाइमलाइन की बात करती है. असल में आप उस जानलेवा एक्सिडेंट या बीमारी से इस टाइमलाइन में बचे हैं, लेकिन दूसरी टाइमलाइम में आप मर चुके हैं. बस जब ये हुआ तब आपकी चेतना उस टाइमलाइन में पहुंच गई जिसमें आप जिंदा रहे. इस संभावना को क्वांटम इम्मौर्टैलिटी कहा जाता है. इसे आसान भाषा में समझते हैं...

क्वांटम इम्मौर्टैलिटी का विचार 1980 के दशक में उपजा था. बाद में मैक्स टेगमार्क ने इसका विस्तार किया. मैक्स के अनुसार हम अपने जीवनकाल में कई बार मरते हैं, बस हर बार हमारी चेतना अगली टाइमलाइन में शिफ्ट हो जाती है, जो पिछली टाइमलाइन से जुड़ी है. मतलब हम मरने के बाद भी अगली टाइमलाइन में जिंदा रह सकते हैं.

कोपनहागन इंटरप्रिटेशन बनाम मैनी वर्ल्ड्स इंटरप्रिटेशन

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क्वांटम फिजिक्स के दो नियम, जिन्हें नील्स बोहर और वर्नर हाइजनबर्ग ने बनाया था. कहते हैं कि फोटोन और बाकी पार्टिकल्स एक समय पर कईं स्थितियों में पाए जा सकते हैं. जब हम उनका नेचर और ऊर्जा मापते हैं, तब हम उन्हे प्रभावित करते हैं जिससे वो हमारी देखी हुई किसी एक स्थिति में बदल जाते हैं. बाकी सभी अवस्थाएं हट जाती हैं और फिर कभी प्रकट नहीं होतीं.

जैसे आपके कमरे में एक बिल्ली आई. जब तक आप उसे नही देख रहे थे, वो शायद चल रही, बैठी या लेटी होगी. लेकिन जब आपने उसे देखा, वो इनमें से किसी एक ही स्थिति में थी, और बाकी संभावनाएं हट गईं. इसे नाम दिया गया 'कोपनहागन इंटरप्रिटेशन'.

हालांकि साल 1957 में अमेरीकी वैज्ञानिक ह्यूग एवरेट ने कहा कि जब हम किसी फोटोन या पार्टिकल को देखते हैं, तो उस समय दुनिया दो संभावनाओं (टाइमलाइनों) में बंट जाती है. एक टाइमलाइन में वो फोटोन सीधे जाता है और दूसरी में लहर की तरह. हम संयोग से इन्ही में से किसी एक टाइमलाइन में पहुंच जाते हैं.

जैसे आपने सामान खरीदने के लिए स्टोर जाने का फैसला किया. इससे पहले आपके पास दो ऑप्शन थे- या तो आप जाएं या फिर ना जाएं. फिर जब आप स्टोर पहुंचे, तो दो नईं संभावनाएं उत्पन्न हुईं- या तो कुछ खरीदें या फिर ना खरीदें, और इसी तरह यूनिवर्स में अनगिनत संभावनाएं हैं. ये थी 'मैनी वर्ल्ड्स इंटरप्रिटेशन'.

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क्वांटम इम्मौर्टैलिटी मैनी वर्ल्ड्स इंटरप्रिटेशन का हिस्सा है, जिसके अनुसार आपके हर फैसले (संभावना) के लिए एक अलग यूनिवर्स बन जाता है, जिसमें हर संभावना का अलग परिणाम होता है.

अगर क्वांटम इम्मौर्टैलिटी सच है तो...

साल 1997 में मैक्स टेगमार्क ने एक रिसर्च पेपर में कहा कि अगर क्वांटम इम्मौर्टैलिटी की बात सच हो जाए तो किसी के लिए जानलेवा एक्सिडेंट में भी जिंदा बचने की गुंजाइश है. उन्होने कहा कि मल्टीवर्स को पार करके इंसान एक ऐसे यूनिवर्स में पहुंच सकता है जहां ये संभव हो.

थ्योरी के साथ क्या समस्याएं है

क्वांटम इम्मौर्टैलिटी फिजिक्स के किसी नियम को नकारती नही है, लेकिन इसे लेकर कुछ विवाद है-
1.    ये थ्योरी एवरेट की मैनी वर्ल्ड्स इंटरप्रिटेशन को सही मानती है, क्योंकि कोपनहागन इंटरप्रिटेशन पैरेलल यूनिवर्स के अस्तित्व से इंकार करती है.
2.    थ्योरी के अनुसार किसी व्यक्ति को ऐसी परिस्थितियों और असंभावित घटनाओं का अनुभव करने के लिए मजबूर किया जाएगा, जहां वो मरता हुआ प्रतीत होगा, लेकिन असल में जीवित रहेगा.

क्या हम वाकई अमर हो सकते हैं?

मैक्स इससे इंकार करते हैं. उनका कहना है कि ये सिर्फ एक थ्योरी है जो वृद्धावस्था और शरीर के सड़ने पर बात नहीं करती. इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नही है. आप केवल उन्हीं यूनिवर्सेज का अनुभव करेंगे जिनमें आप जीवित हैं. बाकी लोगों के लिए आप सामान्य रूप से मर जाएंगे. इसलिए क्वांटम इम्मौर्टैलिटी के जरिए अमर होना असंभव है.

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