वेनेजुएला में लोकतंत्र की बहाली के लिए अपने अथक संघर्ष के लिए, मारिया कोरिना मचाडो को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. नोबेल कमेटी ने वेनेजुएला में तानाशाही से लोकतंत्र की ओर बढ़ाने के लिए उनके नेतृत्व और संघर्ष को विशेष रूप से रेखांकित किया है.
नोबेल शांति पुरस्कार दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक है. इसके पीछे का पहला कारण यह है कि यह पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की एक बड़ी और प्रेरणादायक सोच का प्रतीक है. नोबेल वही व्यक्ति थे जिन्होंने डायनामाइट जैसी शक्तिशाली चीज़ का आविष्कार किया था, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि इंसानियत के लिए असली ताकत विनाश में नहीं, बल्कि शांति में है. इसलिए उन्होंने अपनी वसीयत में कहा कि यह सम्मान उन लोगों को दिया जाए जो देशों और समाजों के बीच शांति, भाईचारे और सहयोग को बढ़ावा देते हैं. वे नॉर्वे को एक शांति प्रिय देश मानते थे.
जब यह सम्मान नेल्सन मंडेला, मदर टेरेसा, मलाला यूसुफ़ज़ई या मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे लोगों को मिलता है, तो पूरी दुनिया का ध्यान उनके काम की ओर जाता है. इससे उनके मिशन को अंतरराष्ट्रीय पहचान, समर्थन और नई ऊर्जा मिलती है. तीसरा कारण यह है कि यह पुरस्कार पूरी तरह निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से दिया जाता है. नॉर्वे की समिति इसे तय करती है और यह किसी राजनीतिक दबाव या देश के हितों से प्रभावित नहीं होती. यही बात इस पुरस्कार को और ज्यादा भरोसेमंद और सम्मानजनक बनाती है.

पुरस्कार देने के लिए नॉर्वे ही क्यों चुना गया?
नोबेल शांति पुरस्कार उन व्यक्तियों या संगठनों को दिया जाता है जिन्होंने शांति को बढ़ावा देने, संघर्षों को सुलझाने और मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. नोबेल शांति पुरस्कार हर साल नॉर्वे की राजधानी ऑस्लो (Oslo) में दिया जाता है. इस बीच लोगों के मन में सवाल है कि नॉर्वे तो एक छोटा सा देश है फिर इतने बड़े पुरस्कार को देने के लिए नॉर्वे को ही क्यों चुना गया? आइए आपको इसका कारण बताते हैं.
अपनी वसीयत में नॉर्वो का नाम लिख गए थे नोबेल
इसका कारण है कि नोबेल पुरस्कार के संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में लिखा था कि शांति पुरस्कार का आयोजन अलग से किया जाए. बाकी विज्ञान, साहित्य आदि के पुरस्कार स्वीडन में दिए जाते हैं, लेकिन शांति पुरस्कार नॉर्वे को सौंपा गया. हालांकि इसका कारण कोई नहीं जानता कि अल्फ्रेड नोबेल शांति पुरस्कार विशेष रूप से नॉर्वे की एक समिति द्वारा क्यों प्रदान करवाना चाहते थे या उन्हें नॉर्वे को नोबेल पुरस्कार प्रक्रिया में शामिल करने के लिए किस बात ने प्रेरित किया.
Nobelpeaceprize.org के अनुसार, नॉर्वेजियन नोबेल समिति के पूर्व सचिव और नोबेल संस्थान के निदेशक गेइर लुंडेस्टैड ने अपने लेख में बताया है कि क्यों अल्फ्रेड नोबेल ने नॉर्वेजियन स्टॉर्टिंग (नॉर्वे की संसद) को नोबेल शांति पुरस्कार समिति के सदस्यों को चुनने का काम सौंपा.
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नॉर्वे की समिति द्वारा ही क्यों दिया जाता है पीस प्राइज
नोबेल ने इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि शांति पुरस्कार नॉर्वे की एक समिति द्वारा क्यों दिया जाना था जबकि अन्य चार पुरस्कार स्वीडिश समितियों द्वारा दिए जाने थे. हालांकि, कुछ रिर्सचर्स का कहना है कि नोबेल, जिन्होंने अपना अधिकांश जीवन विदेश में बिताया और जिन्होंने पेरिस के स्वीडिश-नॉर्वेजियन क्लब में अपनी वसीयत लिखी, वे इस बात से प्रभावित थे कि 1905 तक नॉर्वे स्वीडन के साथ एकता में था.
नॉर्वे को शांति प्रिय देश मानते थे
अल्फ्रेड नोबेल चाहते थे कि वैज्ञानिक पुरस्कार सबसे योग्य समितियों, यानी स्वीडिश समितियों, द्वारा दिए जाएं. इसलिए उन्होंने सोचा कि शांति पुरस्कार भी किसी नॉर्वेजियन समिति द्वारा दिया जाना चाहिए. 1890 के दशक में, नॉर्वेजियन संसद (स्टॉर्टिंग) को अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांति से सुलझाने में गहरी रुचि थी. नोबेल शायद नॉर्वे को स्वीडन की तुलना में ज्यादा शांति‑प्रिय और लोकतांत्रिक देश मानते थे.
इसके अलावा, नोबेल नॉर्वेजियन साहित्य और खासकर लेखक ब्योर्नस्टर्न के बहुत प्रेमी थे, जो उस समय शांति के कार्यकर्ता भी थे. नोबेल शायद इसी वजह से भी प्रभावित थे. या हो सकता है कि यह सब कारण मिलकर उनका निर्णय बन गए.