Jyotiba Phule Jayanti 2025: भारत के अग्रणी समाज सुधारक, शिक्षक और विचारक महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को हुआ था. ज्योतिबा फुले को "डॉ. भीमराव अंबेडकर अंबेडकर के विचार बदलने वाला महात्मा" कहा जाता है क्योंकि उनकी विचारधारा, सामाजिक सुधार के प्रयास और शोषित वर्गों के उत्थान के लिए किए गए कार्यों ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन और चिंतन को गहराई से प्रभावित किया. फुले ने 19वीं सदी में जाति व्यवस्था, महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के क्षेत्र में जो क्रांतिकारी कदम उठाए, वे अंबेडकर के लिए प्रेरणा स्रोत बने.
तीन गुरुओं में शामिल
अंबेडकर ने ज्योतिबा फुले को अपने तीन गुरुओं में से एक माना, बाकी दो गौतम बुद्ध और कबीर थे. यह बात उन्होंने अपने भाषणों में कई बार कही, जैसे कि अपनी डायमंड जुबली समारोह (1954) में. अंबेडकर ने कहा था, "मैं गौतम बुद्ध, कबीर और महात्मा फुले का भक्त हूं और ज्ञान, आत्म-सम्मान और चरित्र का पूजक हूं."
'शूद्र कौन थे' का समर्पण
अंबेडकर ने अपनी किताब "Who Were the Shudras?" (1946) को फुले को समर्पित किया. इसमें उन्होंने फुले को "आधुनिक भारत का सबसे महान शूद्र" कहा और लिखा कि फुले ने निचली जातियों को यह अहसास दिलाया कि वे ऊँची जातियों के गुलाम नहीं हैं. यह समर्पण दर्शाता है कि फुले के विचारों ने अंबेडकर की जाति व्यवस्था की समझ को आकार दिया.
फुले की आलोचना
ज्योतिबा फुले ने अपनी किताब "गुलामगिरी" (1873) में वर्ण व्यवस्था और ब्राह्मणवाद की कड़ी आलोचना की. उनका मानना था कि आर्य आक्रमणकारी थे, जिन्होंने भारत के मूल निवासियों (शूद्रों और अतिशूद्रों) को दबाया और जाति व्यवस्था बनाई. उन्होंने वेदों को "झूठी चेतना" का साधन माना और ब्राह्मणों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया.
फुले और अंबेडकर के विचार
अंबेडकर ने भी "Who Were the Shudras?" और "Annihilation of Caste" (1936) में इसी तरह के तर्क दिए. हालांकि वे फुले की "आर्य आक्रमण" थ्योरी से पूरी तरह सहमत नहीं थे, लेकिन उन्होंने भी माना कि जाति व्यवस्था एक कृत्रिम ढांचा है, जो शोषण के लिए बनाया गया. फुले की यह सोच अंबेडकर के लिए आधार बनी, जिसे उन्होंने ऐतिहासिक और कानूनी तर्कों के साथ आगे बढ़ाया.
फुले का योगदान
फुले ने 1848 में पुणे में पहली लड़कियों की स्कूल खोली और अपनी पत्नी सावित्रीबाई को पढ़ाकर उन्हें शिक्षिका बनाया. उनका मानना था कि शिक्षा ही शोषित वर्गों और महिलाओं को आजादी दिला सकती है. उन्होंने सत्यशोधक समाज (1873) बनाकर सभी जातियों और धर्मों के लोगों को समानता का अधिकार देने की वकालत की.
अंबेडकर पर प्रभाव
अंबेडकर ने भी शिक्षा को सामाजिक क्रांति का सबसे बड़ा हथियार माना. उन्होंने 1927 में उदास वर्गों की महिलाओं से कहा, "मैं किसी समुदाय की प्रगति को उसकी महिलाओं की प्रगति से मापता हूं." यह विचार फुले से प्रेरित था. अंबेडकर ने अपने संगठनों जैसे बहिष्कृत हितकारिणी सभा के जरिए महिलाओं और दलितों की शिक्षा पर जोर दिया.
फुले की शुरुआत और अंबेडकर का विस्तार
ज्योतिबा फुले ने शूद्रों, अतिशूद्रों और महिलाओं के लिए सामाजिक जागरूकता का पहला संगठित आंदोलन शुरू किया. सत्यशोधक समाज ने ब्राह्मणवादी प्रथाओं (जैसे विधवा-विवाह पर रोक, बाल विवाह) का विरोध किया और "दलित" शब्द को नए अर्थ में प्रयोग किया. भीम राव अंबेडकर ने फुले के इस आंदोलन को आगे बढ़ाया. जहां फुले ने सामाजिक सुधार की नींव रखी, वहीं अंबेडकर ने इसे संवैधानिक और राजनीतिक स्तर पर ले गए. संविधान में समता और न्याय के प्रावधान, जैसे अनुच्छेद 15 और 17, फुले की सोच का ही परिणाम थे, जिसे अंबेडकर ने लागू किया.
व्यक्तिगत अनुभव और प्रेरणा
ऐसा माना जाता है कि अंबेडकर के पिता रामजी सकपाल फुले के प्रशंसक थे. अंबेडकर के बचपन में माली समुदाय के दोस्तों के जरिए भी उन्हें फुले के बारे में जानकारी मिली होगी. फुले की मृत्यु (1890) के बाद सत्यशोधक समाज कमजोर पड़ गया था, लेकिन अंबेडकर ने इसे पुनर्जनन देने की कोशिश की. उन्होंने कहा, "मैं ही वह इंसान हूं, जिसने फुले के साथ सबसे ईमानदारी से जुड़ाव रखा."