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फिर बस में आग... कैसे सड़क पर 'चिताओं' का कारण बन रहीं ये जुगाड़ वाली बसें!

Jaisalmer Bus Fire Incident: राजस्थान के जैसलमेर में एक चलती बस में आ लग गई और कई लोग बस में जिंदा जल गए. इससे पहले भी बस में आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं.

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जैसलमेर में बस में आग लगने के बाद बस पूरी तरह खाक हो गई. (Photo:PTI)
जैसलमेर में बस में आग लगने के बाद बस पूरी तरह खाक हो गई. (Photo:PTI)

राजस्थान के जैसलमेर से मंगलवार को एक चलती एसी स्लीपर बस में आग लगने की खबर आई. बाद में पता चला कि इस एक्सीडेंट में 20 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई और कई लोग बुरी तरह से झुलस गए. बस में आग लगने की घटना के बाद बड़े बड़े नेताओं के बयान, दौरे और राहत का सिलसिला जारी है. लेकिन, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. राजस्थान में इससे पहले भी बस में आग लगने की कई घटनाएं हुई हैं.

ऐसे में जानते हैं कि आखिर बसों में आग लगने का क्या कारण हो सकता है और किस वजह से नियमों को चकमा देकर बसों वाले मौत की वजह बन रहे हैं...

जैसलमेर में क्या हुआ?

दरअसल, 57 यात्रियों को लेकर ये बस जोधपुर की ओर जा रही थी और यह हादसा जैसलमेर-जोधपुर हाइवे पर हुआ. बताया जा रहा है कि हादसे वाली बस को नॉर्मल से AC में मॉडिफाई करवाया गया था और इसी सेंट्रल AC में शॉर्ट सर्किट हादसे का कारण बना. इसके बाद आग लगने से गेट बंद हो गया और लोग अंदर ही अटक गए और आग लगने से जिंदा जल गए. इसके बाद कुछ लोगों को कांच तोड़कर बचाया गया.

किन कागजों के बाद सड़क पर आती है बस?

बस बॉडी से जुड़े नियमों के बारे में मोटर व्हीकल ऑफिसर कैलाश शर्मा ने बताया कि AIS:052 के नियमों के अनुसार, स्लीपर बस टाइप-4 कैटेगरी में आती है, जिसे स्पेशल पर्सज बस कहते हैं. इनमें स्कूल बस, स्लीपर कोच, डबल डेकर बस, एंबुलेंस आदि शामिल हैं. इसमें स्लीपर बस को AIS:119 (REV 1) के तहत अप्रूवल मिलता है. एक सितंबर 2025 से अब सिटिंग बसों के लिए तो टाइप सिटिंग अप्रूवल लेना होगा, उसके बाद बस की बॉडी पर काम किया जा सकता है. लेकिन, अभी ये नियम सिटिंग बस के लिए ही है.

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अगर स्लीपर बसों की बात करें तो इसके लिए AIS:119 (REV 1) प्रोविजन के तहत बस बॉडी का निर्माण होता है. आम भाषा में समझें तो सबसे पहले बस का Chassis खरीदा जाता है, इसके बाद उन पर बॉडी का काम होता है. बॉडी बनाने के लिए कई नियमों का पालन करना होता है, जिसमें बस में लगने वाली सीटों की संख्या, बस की साइज आदि अहम है. इसके बाद Chassis के हिसाब से बॉडी का निर्माण होता है.

इसके बाद तीन जांच एजेंसियों से अप्रूवल लेना होता है, जिसमें यह तय होता है कि किस तरह की बस बनाई गई है. इसके बाद बस को फिटनेस आदि सर्टिफिकेट मिलते हैं. बस बनाने वाले बॉडी मेकर को ये सर्टिफिकेट लेना होता है. फिर बॉडी की जांच होती है और सर्टिफिकेट जारी होता है. इसके बाद बस सड़क पर चलने के लिए तैयार होती है.

फिर कैसे होता है खेल?

दरअसल, जो बड़े बॉडी मेकर हैं, वो समय पर सारे अप्रूवल ले लेते हैं, जो थोड़ा बड़ा और महंगा प्रोसेस है. ऐसे में जो बस वाले छोटे बॉडी मेकर से बस बनवाते हैं तो वे कागजों में बस की साइज, सीटों की संख्या कुछ और दिखाते हैं और हकीकत में बस की डिजाइन कुछ और होती है. आम तौर पर 13 मीटर बस की साइज का अप्रूवल आता है और फिर उसे 15 मीटर तक डिजाइन कर देते हैं. जैसे डबल एक्सल की साइज वाली बस को सिंगल एक्सल चेसिस में बना देते हैं. इस दौरान कई बसों में फायर एग्जिट जैसी व्यवस्था भी करनी होती है.

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कितना आता है खर्चा?

खर्च को लेकर आजतक डॉट इन को कई बॉडी मेकर ने बताया कि एक एसी स्लीपर बस को बनाने में करीब 26-27 लाख का खर्च आता है, जिसमें एसी का खर्च भी शामिल होता है. इसमें बस की चेसिस और टायर आदि शामिल नहीं होते है. अगर कोई बस मालिक एसी खुद देते है तो 4 लाख का खर्च कम हो जाता है और फिर सिर्फ बॉडी और सीट का निर्माण किया जाता है. इस क्वालिटी में ही सुरक्षा का नजरअंदाज कर दिया जाता है. बताया जाता है इस दौरान खराब वाइरिंग आदि की वजह से आग लगने की घटनाएं हो जाती है.

अरुणाचल, नागालैंड से करवाते हैं रजिस्ट्रेशन

कैलाश शर्मा ने बताया कि लोग अरुणाचल नागालैंड जैसे राज्यों से लाकर बसे इसलिए चलाते हैं, इससे उन्हें टैक्स में फायदा होता है. अगर कोई राजस्थान में रजिस्ट्रेशन करवाता है तो उसका करीब महीने का 48 हजार रुपये टैक्स लग जाता है और हर साल में करीब 5 लाख तक टैक्स देना होता है. लेकिन, नॉर्थ ईस्ट स्टेट से जब बस लाते हैं तो ये टैक्स 10 गुना तक कम पड़ जाता है. इसके बाद ये लोग नेशनल परमिट से हर दूसरे राज्यों में बस चलाते हैं.

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