लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक बार फिर वोटर लिस्ट में धांधली होने का आरोप लगाया है. राहुल गांधी का आरोप है कि पिछले साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में डाले गए हर आठ में से एक वोट फर्जी था. उन्होंने एक महिला की तस्वीर दिखाते हुए दावा किया कि इस महिला ने हरियाणा के 10 बूथों पर 22 वोट डाले हैं. इसके बाद वोटर आईडी कार्ड बनने और BLO के काम की चर्चा हो रही है कि आखिर किन कारणों से ऐसी गलतियां हो जाती हैं. तो BLO से ही समझते हैं कि वोटर आईडी बनने का प्रोसेस क्या है और इस पूरे प्रोसेस में बीएलओ का क्या काम है?
वोटर आईडी बनाने में धांधली होने के आरोपों के बीच हमने राजस्थान, हरियाणा के बीएलओ से बात की, जिन्होंने बताया कि आखिर वोटर आईडी बनाने में सिस्टम कैसे काम करता है...
BLO का क्या काम होता है?
राजस्थान में विद्याधर नगर विधानसभा क्षेत्र के एक बीएलओ ने बताया कि वोटरआई डी कार्ड बनाने में बीएलओ का सबसे अहम काम वेरिफिकेशन का होता है. बीएलओ सिर्फ नए वोटर को वेरिफाई करने, जानकारी अपडेट करने और वोटर लिस्ट में किसी का नाम हटाने का काम करता है. एक तरह से कहा जाता है कि बीएलओ वो कड़ी है, जो वोटर लिस्ट में किसी के नाम को जोड़ने, अपडेट करने और हटाने का इजाजत देने वाला ऑफिसर है. बीएलओ या तो मतदान केंद्र पर शिविर आदि के माध्यम से या फिर घर-घर जाकर अपने क्षेत्र की वोटर लिस्ट को अपडेट रखता है. इसके साथ ही वोटर आईडी कार्ड बनकर आने पर उसे मतदाता को देने का काम करता है.
BLO के काम का प्रोसेस क्या है?
BLO के काम के प्रोसेस की बात करें तो सबसे पहले सरकार के लिए काम कर रहे किसी कर्मचारी को बीएलओ नियुक्त किया जाता है और जिला चुनाव अधिकारी के कार्यालय से तय होता है. इसके बाद बीएलओ को कुछ भाग संख्या का कार्य सौंपा जाता है और उन्हें उस इलाके की वोटर लिस्ट दी जाती है. इसके बाद बीएलओ समय समय पर उसे अपडेट करता है कि कौन उस क्षेत्र में नया रहने आया है, कौन चला गया है, क्या किसी की मृत्यु हुई है या कोई शिफ्ट हो गया है या कौन 18 साल के ऊपर हो गया है.
इस काम में दो तरह से काम होता है. एक होता है ऑनलाइन और एक ऑफलाइन. ऑनलाइन माध्यम से जब कोई नाम जोड़ता है या फिर अपडेट करता है तो बीएलओ को उनकी बीएलओ ऐप पर इसका नोटिफिकेशन मिलता है कि आपके क्षेत्र में किसी ने ये अर्जी डाली है. इसके बाद बीएलओ उसे वेरिफाई करता है कि वो कितना सही है. वोटर आईडी में अपडेशन की स्थिति में भी बीएलओ ऑनलाइन माध्यम से अप्रूव करता है.
अगर ऑफलाइन माध्यम से प्रोसेस होता है तो बीएलओ फॉर्म-6 आदि को भरकर जिला चुनाव कार्यालय में जमा करता है. उसके साथ जरूरी दस्तावेज जमा करता है और उसके बाद निवार्चन अधिकारी आगे की प्रोसेस करते हैं.
क्या इसके अलग से पैसे मिलते हैं?
हरियाणा और राजस्थान दोनों राज्यों के बीएलओ ने बताया कि इस काम के लिए बीएलओ को हर साल के 6000 रुपये मिलते हैं. उन्होंने ये भी बताया कि कुछ दिनों से इसे बढ़ाए जाने की बात की जा रही है और इसे 12000 किए जाने के लिए कहा जा रहा है.
कैसे हो जाती है फोटो में गड़बड़ी?
जब बीएलओ से फोटो में होने वाली गड़बड़ी के बारे में पूछा गया तो बीएलओ ने बताया कि ऐसा एक तो टेक्निकल गलतियों की वजह से हो सकता है या फोटो गलत अपलोड हो गई हो. इसके अलावा एक कारण ये भी हो सकता है कि जब कोई ऑनलाइन माध्यम से वोटर आईडी के लिए अप्लाई करता है तो एक तय सीमा में उसका वोटर आईडी बनना होता है. उस तय सीमा में ही बीएलओ को भी रिपोर्ट देनी होती है.
ऐसे में ऑनलाइन माध्यम से अप्लाई करते हैं तो सेंट्रल सिस्टम से राज्य और फिर जिले तक रिपोर्ट आती है. इसके बाद बीएलओ के पास वेरिफाई के लिए रिपोर्ट आती है और उसे 3-4 दिन में वेरिफाई करके आगे भेजना होता है. लेकिन, अगर कोई बीएलओ उस पर कोई कमेंट नहीं करता है तो वो ऑटो वेरिफाई मोड में आकर वेरिफाई हो जाता है. इस स्थिति में भी गलत फोटो आदि अपलोड हो सकती है. हालांकि बीएलओ ने ये भी बताया कि फोटो वेरिफाई करने का काम भी उनका ही होता है.
SIR में BLO को क्या-क्या करना है?
चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया था कि एसआईआर के वक्त सबसे पहले BLO हर मतदाता को उसके घर पर यूनीक इनूमेरेशन फॉर्म (Enumeration Forms) देने जाएंगे. इस फॉर्म में मतदाता की हर डिटेल होगी. उसके बाद जिनका भी नाम है, उन्हें ये देखना होगा कि उनका नाम 2003 की लिस्ट में था तो उन्हें कोई कागज नहीं देना होगा. अगर उनके माता-पिता का नाम भी उसमें था तो उन्हें कोई कागज नहीं देना होगा. इस दौरान बीएलओ का अहम काम मतदाता को 2003 की लिस्ट से लिंक करवाना होगा. पहले बीएलओ लिंक करके और फिर ड्राफ्ट लिस्ट आएगी और उस लिस्ट में जब किसी का नाम नहीं होगा तो उसे कागज देने होंगे.
फिर BLA का क्या काम है?
BLA बूथ लेवल एजेंट होते हैं, जो किसी पार्टी की ओर से बनाए गए प्रतिनिधि होते हैं. ये एजेंट बीएलओ की मदद करने का काम करते हैं और ये राजनीतिक पार्टियों के एजेंट होते हैं, जो सरकार की ओर से नियुक्त नहीं किए जाते हैं.