युद्ध में भले ही आप ताकतवर देश का हिस्सा हैं. आपको पता है कि आपके देश के पास संसाधनों की अधिकता है. आपमें अपने दुश्मन देश को लेकर गुस्सा है. आर-पार की लड़ाई चाहते हैं. लेकिन, युद्ध का अपना मनोवैज्ञानिक असर होता है. युवाओं से लेकर बच्चे तक इस असर से नहीं बच पाते. आइए, कुछ स्टडीज के जरिए समझें कि इन ताकतवर देशों में युद्ध ने बच्चों और युवाओं की सोच और पर्सनैलिटी को कैसे प्रभावित किया है. साथ ही ये भी जानें कि कैसे युद्ध की अति इच्छा आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है.
जब दो देशों में युद्ध या तनाव होता है तो उसका सबसे ज्यादा असर वहां के बच्चों और युवाओं पर पड़ता है. रूस-यूक्रेन और इस्राइल-फिलीस्तीन जैसे देशों में चल रहे संघर्षों ने मासूमों की जिंदगी को अंदर से तोड़ दिया है. भारत में भी जो पाकिस्तान से सैन्य और आर्थिक रूप से ज्यादा ताकतवर है, लोग इस ताकत पर गर्व करते हैं. लेकिन इस ताकत के बीच बच्चों और युवाओं का दर्द अक्सर अनदेखा रह जाता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध जहां दोनों तरफ पनपा डर और गुस्सा
रूस और यूक्रेन दोनों ही सैन्य ताकत के मामले में बड़े देश हैं. साल 2022 से चल रहे युद्ध ने दोनों देशों के बच्चों और युवाओं पर गहरा असर डाला है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट (UN Report on Ukraine Conflict, 2024, news.un.org) के मुताबिक 2024 तक यूक्रेन में इस युद्ध में 500 से ज्यादा बच्चे मारे गए और 1,100 से ज्यादा घायल हुए. यूनिसेफ की एक स्टडी (UNICEF Report on Children in Conflict Zones, 2023) के अनुसार यूक्रेन के बच्चे हर दिन बमबारी की आवाज सुनते हैं. 8-12 साल के बच्चों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षण देखे गए हैं. एक मां ने बताया कि मेरा 9 साल का बेटा हर छोटी आवाज पर डर जाता है. उसे लगता है कि बम गिरने वाला है.
रूस में भी हालात अच्छे नहीं हैं. रूस के सीमावर्ती इलाकों जैसे बेलगोरोद में रहने वाले बच्चों और युवाओं पर इस युद्ध का गहरा असर पड़ा है. रूसी एकेडमी ऑफ साइंसेज की एक स्टडी (Russian Academy of Sciences Study on Border Regions, 2023) में पाया गया कि रूस के इन इलाकों में 10-14 साल के बच्चों में चिंता और अनिद्रा की शिकायतें बढ़ी हैं. उन्हें डर रहता है कि युद्ध उनके घर तक पहुंच सकता है. रूस के युवाओं में गुस्सा और अनिश्चितता बढ़ रही है. एक 16 साल के रूसी लड़के ने कह कि हमें नहीं पता कि ये युद्ध कब खत्म होगा. हमारा भविष्य अंधेरे में है.
इस्राइल में भी बच्चों की मेंटल हेल्थ हो रही प्रभावित
इस्राइल जैसा देश जो सैन्य ताकत और तकनीक के मामले में बेहद मजबूत है. वहां भी दशकों से संघर्ष चल रहा है. हाइफा यूनिवर्सिटी की एक स्टडी (Haifa University Study on Operation Pillar of Defense, 2013) के अनुसार इस्राइल के उन इलाकों में जहां 2012 में ऑपरेशन पिलर ऑफ डिफेंस हुआ था. वहां के बच्चों में PTSD के लक्षण देखे गए. 12 से 14 साल के बच्चों पर की गई इस स्टडी में पाया गया कि बमबारी और रॉकेट हमलों के गवाह बने बच्चों में डर, चिंता और गुस्सा बढ़ गया. एक 13 साल की लड़की ने बताया कि मुझे हर रात बम की आवाज सुनाई देती है, मैं सो नहीं पाती.
यही नहीं, इस्राइल के युवाओं में भी आक्रामकता बढ़ रही है. स्टडी में देखा गया कि लगातार हिंसा का माहौल उनकी पर्सनैलिटी को बदल रहा है. वो अपनी भावनाओं को काबू नहीं कर पाते और गुस्से में हिंसक व्यवहार करने लगते हैं. इस्राइल में मां-बाप अपने बच्चों को लेकर चिंतित हैं, लेकिन हालात ऐसे हैं कि वो उन्हें पूरी तरह सुरक्षित नहीं रख पाते.
बॉर्डर एरिया के इलाकों में रहता है डर का माहौल
ठीक इसी तरह भारत जो सैन्य और आर्थिक रूप से पाकिस्तान से कहीं ज्यादा ताकतवर है. यहां भी तनाव का असर कश्मीर समेत सीमावर्ती इलाकों के बच्चों और युवाओं पर साफ दिखता है. हाल ही में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया. इसके साथ ही भारत ने कई और सख्त कदम उठाए हैं जैसे सिंधु जल संधि की समीक्षा और पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना लेकिन इस तनाव का सबसे बुरा असर सीमावर्ती क्षेत्र के बच्चों और युवाओं पर पड़ रहा है.
मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि युद्ध की आशंका मन में भय पैदा करती है. हाल ही में मेरे पास भी 10-16 साल के बच्चों के ऐसे केस आए हैं जिनके पेरेंट्स बच्चों में चिंता और अनिद्रा की शिकायत करते हैं. एक 14 साल के लड़के ने बताया कि कई दिनों से मुझे रात को नींद नहीं आती. हर समय मन में रहता है कि कुछ बुरा होगा. एक पेरेंट्स के तौर पर भी आप टीनेजर्स को अपनी तरह से सब नहीं समझा सकते. आजकल बच्चों के पास सूचनाओं का भंडार है. टीवी से लेकर सोशल मीडिया तक उनकी पहुंच है.
बच्चों को आत्मविश्वास दें
डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि कई बार सामाजिक और वैश्विक स्थितियां ऐसी होती हैं जिन्हें पेरेंट्स के तौर पर हम बदल नहीं सकते, लेकिन हमें अपने बच्चों को ये आत्मविश्वास देना चाहिए कि वो सुरक्षित हैं. साथ ही उन्हें ये बताएं कि कोई भी देश युद्ध नहीं चाहता, युद्ध का संकट जल्द ही टल जाएगा और उन्हें अलग अलग सोर्स से सूचनाएं न लेने के लिए समझाएं.