डिप्रेशन इंसान को भीतर ही भीतर खोखला करता है. हर छोटी से छोटी बात को लेकर सोचते रहना, कभी गम, हताशा तो कभी निराशा में डूबते जाना. वहीं कई तरह के डिप्रेशन इंसान को कभी बहुत खुश तो कभी एकदम निराश कर देते हैं. लेकिन एंटी डिप्रेंशेट लेने से उसके भीतर हार्मोंस का उलटफेर उनके भीतर बदलाव लाता है. दुनिया भर में सालों की रिसर्च के बाद एंटी डिप्रेंशेंट मेडिसिन खोजी गईं जो डिप्रेशन के मरीजों को ठीक करती हैं.
लेकिन हर दवा के साइड इफेक्ट से भी मुंह नहीं मोड़ा जाता. इसी तरह एंटी डिप्रेंशेंट के साइड इफेक्ट के बारें में अब तक हुए शोधों में सामने आया है कि लंबे समय तक एंटी डिप्रेशन दवाएं लेने वाले लोग एकदम कूल हो जाते हैं. उन पर नेगेटिव या पॉजिटिव किसी इमोशन का असर नहीं पड़ता. वो भावनाओं के मामले में एकदम उदासीन से हो जाते हैं. हाल ही में नई रिसर्च में इसकी वजह तलाशी गई है कि आखिर क्यों एंटी डिप्रेशेंट लेने पर यह दुष्प्रभाव सामने आता है.
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की प्रो बारबरा सहकियान कहती हैं कि एंटी डिप्रेशेंट लेने वाले लोग ज्यादा महसूस नहीं करने के बारे में बताते हैं. वहीं देखा जाए तो खुद डिप्रेशन भी अक्सर उन एक्टिविटीज में मरीज के इंट्रेस्ट को घटा देता है जिनमें पहले उसे खुशी मिलती थी. बता दें कि प्रो सहकियान और उनके सहयोगियों ने मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के बिना लोगों में एसएसआरआई के इस्तेमाल से भावनाओं को कम करने वाले प्रभाव की जांच की है.
वो बताती हैं कि एंटीडिप्रेसेंट के तौर पर सबसे अधिक सेलेक्टिव सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (SSRI) इस्तेमाल होते हैं. ऐसा माना जाता है कि ये मस्तिष्क में मौजूद केमिकल सेरोटोनिन के लेवल को बढ़ाकर काम करते हैं, हालांकि इससे हमारे मूड में सुधार क्यों होता है यह स्पष्ट नहीं है. लेकिन यह तो तय है कि एंटीडिप्रेसेंट लेने वाले आधे से अधिक लोग सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की भावनाओं में एक अवांछित कमी का अनुभव करते हैं.
ऐसे हुई रिसर्च
रिसर्चर्स ने बिना डिप्रेशन वाले 66 लोगों को एस्सिटालोप्राम (escitalopram) या प्लेसीबो (placebo) नाम से प्रचलित एसएसआरआई वर्ग की टेबलेट्स दीं. तीन हफ्ते बाद, प्रतिभागियों ने मेमोरी और लर्निंग से जुड़े कई टास्क किए. जिन प्रतिभागियों ने एंटीडिप्रेसेंट लिया, वे प्लेसीबो लेने वालों की तुलना में एक्टिव होने के मामले में 23 प्रतिशत कम सेंसेटिव थे. वहीं अन्य परीक्षणों से पता चला कि दवा ने अन्य तरीकों से उनकी संज्ञानात्मक क्षमताओं को कम नहीं किया. इस रिसर्च के बारे में आप यहां पढ़ सकते हैं.
प्रो सहकियान कहती हैं कि इस रिसर्च से पता चलता है कि SSRI का दुष्प्रभाव रिवार्ड या दूसरे सुखद अनुभवों के प्रति लोगों की संवेदनशीलता को कम करते हैं. इसका दूसरा अच्छा पहलू यह है कि ये दवाएं नकारात्मक भावनाओं की तीव्रता को भी कम करती हैं, जो डिप्रेशन में मददगार हैं.
वो आगे कहती हैं कि मुझे उम्मीद है कि यह रिसर्च डॉक्टरों को एंटीडिप्रेसेंट निर्धारित करने के बारे में अधिक सतर्क नहीं करेगी क्योंकि वे बेहद जरूरी दवाएं हैं. मुझे उम्मीद यह है कि इससे डॉक्टरों को रोगियों के साथ संभावित दुष्प्रभावों के बारे में चर्चा करने में मदद मिलेगी.
दुष्प्रभाव से ज्यादा जरूरी है एंटीडिप्रेसेंट का सकारात्मक प्रभाव
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की कैथरीन हार्मर इस रिसर्च के बारे में newscientist.com से कहती हैं कि मुझे नहीं लगता कि ये रिसर्च डॉक्टरों को अधिक सतर्क कर पाती है कि क्यों एंटीडिप्रेसेंट लोगों के एक सबसेट में इमोशनल ब्लंटिंग का कारण बनते है, यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण सवाल है. मुझे नहीं लगता कि यह परिणाम बताता है कि लोगों पर ये प्रभाव क्यों होता है, लेकिन यह इसका एक मार्कर हो सकता है, जो तब उपयोगी हो सकता है जब हम ऐसे नए ट्रीटमेंट विकसित करने के लिए आते हैं जिनमें इस तरह के दुष्प्रभाव नहीं हैं. हार्मर का कहना है कि से स्टडी अधिक उपयोगी होती अगर प्रतिभागियों से यह भी पूछा जाता कि क्या एंटीडिप्रेसेंट लेने के दौरान वे इमोशंस का अनुभव करते हैं क्योंकि वे अत्यंत महत्वपूर्ण दवाएं हैं.
भारतीय मनोचिकित्सक डॉ अनिल शेखावत कहते हैं कि एंटी डिप्रेंसेंट बहुत जरूरी दवाएं हैं, इनके दुष्प्रभाव की तुलना में इसके अच्छे प्रभाव ज्यादा हैं. एंटी डिप्रेशन लेने वाले के लिए कहीं ज्यादा जरूरी है कि वो इसे डॉक्टर की सलाह पर नियमित तौर पर लेते रहें.