एल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च, 1879 को जर्मनी के उल्म में हुआ था. वह 20वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली फिजिसिस्ट में से एक थे. 09 नवंबर, 1922 को, उन्हें 'सैद्धांतिक भौतिकी' में उनकी सेवाओं के लिए, और विशेष रूप से फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट की खोज के लिए 'फिजिक्स में 1921 का नोबेल पुरस्कार' दिया गया. उनका दिमाग औरों से बहुत अलग और तेज था. उनका दिमाग इतना खास था, कि जब 18 अप्रैल, 1955 को प्रिंसटन अस्पताल में उनकी मृत्यु हुई, तो पैथोलॉजिस्ट थॉमस हार्वे ने इसे चुरा लिया.
अपना अंतिम संस्कार चाहते थे आइंस्टीन
आइंस्टीन नहीं चाहते थे कि उनके मस्तिष्क या शरीर का अध्ययन किया जाए. वह अपनी पूजा नहीं कराना चाहते थे. ब्रायन ब्यूरेल की 2005 की किताब, पोस्टकार्ड्स फ्रॉम द ब्रेन म्यूज़ियम के अनुसार, उन्होंने अपने अवशेषों के बारे में खास निर्देश पहले से लिखकर छोड़े थे. वह चाहते थे उनका अंतिम संस्कार हो और उनकी राख को गुप्त रूप से कहीं बिखेर दिया जाए.
आइंस्टीन या उनके परिवार की अनुमति के बिना ही हार्वे ने उनका दिमाग ले लिया. "जब कुछ दिनों बाद तथ्य सामने आया, तो हार्वे आइंस्टीन के बेटे, हंस एल्बर्ट से दिमाग अपने पास रखने की अनुमति पाने मांगने में कामयाब रहे. शर्त ये थी कि दिमाग की जांच पूरी तरह से और केवल विज्ञान के हित में की जाएगी.
छिपाकर की दिमाग की स्टडी
हार्वे ने जल्द ही प्रिंसटन अस्पताल में अपनी नौकरी खो दी और दिमाग को फिलाडेल्फिया ले गए. यहां इन्होंने दिमाग के 240 टुकड़े किए और उसे सेलोइडिन में संरक्षित किया. उन्होंने दिमाग के टुकड़ों को दो जार में विभाजित किया और उन्हें अपने तहखाने में रख दिया.
हार्वे की पत्नी को यह बात पसंद नहीं आई और वह दिमाग नष्ट करने की धमकी देने लगी. ऐसे में हार्वे दिमाग को अपने साथ मिडवेस्ट ले गए. कुछ समय के लिए उन्होंने विचिटा, कंसास में एक बायो लेब्रोरेट्री में एक मेडिकल सुपरवाइज़र के तौर में काम किया. उन्होंने दिमाग को एक बियर कूलर के नीचे रखे साइडर बॉक्स में रखा.
वह फिर से वेस्टन, मिसौरी चले गए, और अपने खाली समय में मस्तिष्क का अध्ययन करने की कोशिश करने लगे. 1988 में उन्होंने अपना मेडिकल लाइसेंस खो दिया. फिर वह लॉरेंस, कैनसस चले गए और एक प्लास्टिक-एक्सट्रूज़न फैक्ट्री में असेंबली-लाइन की नौकरी करने लगे.
1985 में छपी पहली स्टडी
कैलिफोर्निया में हार्वे और उनके सहयोगियों ने 1985 में आइंस्टीन के मस्तिष्क का पहला अध्ययन प्रकाशित किया. इसमें दावा किया गया कि इसमें दो प्रकार की कोशिकाओं, न्यूरॉन्स और ग्लिया का असामान्य अनुपात था. उस अध्ययन के बाद पांच अन्य स्टडी प्रकाशित हुईं. इन अध्ययनों के पीछे शोधकर्ताओं का कहना है कि आइंस्टीन के मस्तिष्क का अध्ययन करने से बुद्धि के तंत्रिका संबंधी आधारों को उजागर करने में मदद मिल सकती है.
माना जाता है कि आइंस्टीन ने प्रिंसटन कार्यालय में एक ब्लैकबोर्ड पर लिखा था, 'जो कुछ भी मायने रखता है उसे हमेशा गिना नहीं जा सकता, और वह सब कुछ नहीं जो गिना जा सकता है, जरूरी नहीं वह मायने रखता हो.'