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CUET Result से पहले DU वीसी से मांगे गए सीटों के आंकड़े, आरक्षित सीटों पर भेदभाव का आरोप

फोरम ऑफ एकेडमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने वीसी और रजिस्ट्रार को लेटर लिखकर डीयू एडमिशन (DU Admission 2022) शुरू होने से पहले पिछले वर्षों में कैटेगरी, सब्जेक्ट, स्ट्रीम वाइज सीटों की डिटेल मांगी है. फोरम का कहना है कि कॉलेज स्वीकृत सीटों की एवज में आरक्षित सीटों को नहीं भरते हैं.

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DU Admission 2022
DU Admission 2022

अंडर ग्रेजुएट कोर्सेज के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET UG) 2022 दे चुके उम्मीदवारों को अपने रिजल्ट (CUET Result 2022) का इंतजार है. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) अगले सप्ताह सीयूईटी यूजी के नतीजे घोषित कर सकता है. नतीजे जारी होने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के कॉलेजों में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. एडमिशन प्रक्रिया से पहले फोरम ऑफ एकेडमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर योगेश कुमार सिंह व कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता को पत्र लिखकर डीयू कॉलेजों में सीटों को ब्यौरा मांगा है.

फोरम ऑफ एकेडमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने वीसी और रजिस्ट्रार को लेटर लिखकर डीयू एडमिशन (DU Admission 2022) शुरू होने से पहले पिछले वर्षों में कैटेगरी, सब्जेक्ट, स्ट्रीम वाइज सीटों की डिटेल मांगी है. लेटर में यूजी, पीजी, पीएचडी कोर्सेज में एससी, एसटी, ओबीसी कोटे के एडमिशन प्रक्रिया शुरू करने से पहले पिछले पांच वर्षों के सब्जेक्ट वाइज, साइंस, कॉमर्स, और ह्यूमैनिटीज विषयों के आंकड़े मंगवाकर उनकी जांच करवाने की मांग की है.

12 सितंबर को जारी हो सकता है एडमिशन शेड्यूल

फोरम का कहना है कि पिछले साल कॉलेजों ने अपने यहां स्वीकृत सीटों से ज्यादा एडमिशन दिया हुआ था जबकि उसकी एवज में आरक्षित सीटों को नहीं भरा. ये कॉलेज यूजीसी गाइडलाइंस और शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी आरक्षण संबंधी सर्कुलर/निर्देशों का पालन नहीं करते. बता दें कि डीयू में इस बार दाखिले कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी ) स्कोर के माध्यम से हो रहे हैं. साथ ही अंडरग्रेजुएट कोर्सेज के लिए दाखिले का शेड्यूल सोमवार 12 सितंबर को जारी किया जा सकता है. वहीं पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज का सेशन अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में और पीएचडी में एडमिशन की प्रक्रिया नवंबर से शुरू होने की उम्मीद है.

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हर साल 70 हजार से ज्यादा लेते हैं दाखिला

फोरम ने पत्र में लिखा है कि आपके संज्ञान में बहुत ही महत्वपूर्ण विषयों की ओर ध्यान आकर्षित कराना चाहता है. इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत लगभग 80 विभाग जहां स्नातकोत्तर डिग्री, पीएचडी, सर्टिफिकेट कोर्स, डिग्री कोर्स आदि कराए जाते हैं. इसी तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में तकरीबन 79 कॉलेज हैं, जिनमें स्नातक, स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती है. इन कॉलेजों व विभागों में हर साल स्नातक स्तर पर विज्ञान, वाणिज्य व मानविकी विषयों में 70 हजार से अधिक छात्र-छात्राओं का एडमिशन होता है. पत्र में लिखकर बताया है कि भारत सरकार की आरक्षण नीति के अनुसार, अनुसूचित जाति-15% ,अनुसूचित जनजाति-7:5% , अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) -27 % और पीडब्ल्यूडी, ईडब्ल्यूएस, ईसीए, स्पोर्ट्स आदि का कोटा होता है.

इस साल  75 हजार से ज्यादा सीटों का अनुमान

फोरम के चेयरमैन और दिल्ली यूनिवर्सिटी की एकेडमिक काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. हंसराज सुमन ने पत्र में लिखा है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में 70 हजार सीटों के अलावा कॉलेज अपने स्तर पर हर साल 10 फीसदी सीटें बढ़ा लेते हैं. बढ़ी हुई सीटों पर अधिकांश कॉलेज आरक्षित वर्गों की सीटें नहीं भरते. उन्होंने यह भी बताया है कि सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है, जो इस साल बढ़कर 25 फीसदी सीटों का इजाफा होगा. इस तरह से विश्वविद्यालय के आंकड़ों की मानें तो लगभग 75 हजार से ज्यादा सीटों पर इस वर्ष एडमिशन होना चाहिए. 

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स्पेशल कट-ऑफ के बाद कैसे खाली रह जाती है सीटें?

उन्होंने बताया है कि प्रत्येक कॉलेज एडमिशन के समय हाई कट ऑफ लिस्ट जारी करते हैं, जिससे आरक्षित श्रेणी की सीटें हर साल खाली रह जाती है. इसके अलावा ये भी बताया कि डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर आरक्षित सीटों को भरने के लिए पांचवी कट ऑफ लिस्ट के बाद स्पेशल ड्राइव चलाते हैं. इसमें भी जो कट-ऑफ जारी की जाती है और मामूली छूट दी जाती है जिससे एससी, एसटी, ओबीसी कोटे की सीटें कभी पूरी नहीं भरी जाती. ये सीटें हर साल खाली रह जाती हैं. कॉलेज यह कहकर कि इन सीटों पर छात्र उपलब्ध नहीं है बाद में इन सीटों को सामान्य वर्गों के छात्रों में तब्दील कर देते हैं जबकि छात्र उपलब्ध रहते हैं, लेकिन कॉलेज अपनी कट-ऑफ डाउन नहीं करते. कॉलेज प्रशासन को अगर आरक्षित वर्गों के छात्रों की सीटों को भरने की मंशा होती तो कट-ऑफ कम कर सीट भर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं होता.

एससी, एसटी और ओबीसी सेल

डॉ. सुमन ने बताया है कि यूजीसी के सख्त निर्देश है कि प्रत्येक विश्वविद्यालय/कॉलेज/ संस्थान  में एससी, एसटी और ओबीसी सेल की स्थापना की जाए. इनको चलाने के लिए आरक्षित वर्गों के शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है लेकिन ये सेल कोई काम नहीं करते हैं. सेल में नियुक्त गए शिक्षकों का कहना है कि उन्हें किसी तरह की कोई पावर नहीं दी गई जिसके आधार पर विश्वविद्यालय को लिखा जाए. साथ ही सेल में प्रिंसिपलों द्वारा ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है जो उनके चहेते होते हैं. 

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ग्रीवेंस सेल

उन्होंने आगे यह भी बताया है कि प्रत्येक कॉलेज में आरक्षित वर्गो के शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों के लिए ग्रीवेंस सेल बनाया गया है. इस सेल का काम आरक्षित वर्ग के लोगों के साथ होने वाले जातीय भेदभाव, नियुक्ति, पदोन्नति व प्रवेश आदि समस्याओं का समाधान समय पर कराना है. साथ ही समय-समय पर यूजीसी को आरक्षित शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों की रिपोर्ट तैयार कर यूजीसी, शिक्षा मंत्रालय को उनके आंकड़े भेजना आदि है. उनका कहना है कि अगर ग्रीवेंस सेल सही ढंग से अपनी भूमिका का निर्वाह करे तो कॉलेजों में होने वाली छात्रों के एडमिशन, शिक्षकों की अपॉइंटमेंट और प्रमोशन संबंधी कोई समस्या न हो लेकिन ये सेल प्रिंसिपलों के इशारों पर काम करते हैं.
                 
कॉलेजों की मॉनिटरिंग कमेटी की मांग 

डॉ. सुमन ने कुलपति को लिखे पत्र में उन्हें बताया है कि हर साल कॉलेजों द्वारा सबसे ज्यादा नियमों का उल्लंघन यहां किया जाता है. इसलिए फोरम आपसे अनुरोध और मांग करता है कि एडमिशन प्रक्रिया शुरू होने से पहले छात्रों के कॉलेजों/विभागों से आंकड़े मंगवाएं. उनका कहना है कि यदि संभव हो तो डीयू कॉलेजों के लिए एक मॉनिटरिंग कमेटी गठित करे जिसमें वर्तमान विद्वत परिषद सदस्य व पूर्व सदस्यों के अलावा आरक्षित वर्ग के शिक्षकों को इस कमेटी में रखा जाए. कमेटी इन कॉलेजों का दौरा कर शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों से उनकी समस्याओं पर बातचीत करे. 

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उन्होंने बताया है कि इन कॉलेजों में सबसे ज्यादा समस्या शिक्षकों के रोस्टर, स्थायी नियुक्ति, पदोन्नति के अलावा कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति, पेंशन के अतिरिक्त छात्रों के प्रवेश संबंधी समस्या, छात्रवृत्ति का समय पर ना मिलना, रिमेडियल क्लॉसेज न लगना, सर्विस के लिए स्पेशल क्लास, एससी, एसटी के छात्रों  के लिए स्पेशल कोचिंग व इनकी समस्याओं पर बातचीत करे. साथ ही कॉलेजों में जिन सुविधाओं का अभाव है उस पर एक रिपोर्ट तैयार करे. मॉनिटरिंग कमेटी इस रिपोर्ट को यूजीसी, शिक्षा मंत्रालय एससी, एसटी कमीशन, संसदीय समिति को भेजे. इसके अलावा इस रिपोर्ट को मीडिया में सार्वजनिक करे ताकि आम आदमी को पता चल सके कि विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में किस तरह से इन वर्गों के साथ भेदभाव की नीति अपनाई जाती है.

उन्होंने पत्र में लिखा है कि फोरम आपसे यह भी मांग करता है कि यूजीसी/ शिक्षा मंत्रालय द्वारा समय-समय पर  केंद्र सरकार की आरक्षण नीति संबंधी सर्कुलर जारी करती है ताकि इन सुविधाओं का लाभ आरक्षित वर्गों के शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों को मिल सके. उसे विश्वविद्यालय/कॉलेज/संस्थान को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना होता है लेकिन कोई भी कॉलेज रोस्टर, छात्रों के प्रवेश संबंधी आंकड़े, शिक्षकों के खाली पदों की संख्या, बैकलॉग पदों का ब्यौरा आदि को वेबसाइट पर नहीं डालते जबकि यूजीसी हर साल आरक्षण संबंधी जानकारी को वेबसाइट पर अपलोड़ के लिए सर्कुलर जारी करता है. यूजीसी के इन सर्कुलर को कॉलेज द्वारा अनिवार्य किया जाए ताकि इसका लाभ सभी शिक्षक, कर्मचारी और छात्र उठा सके.

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