श्रद्धा हत्याकांड मामले में आफताब के रोज हो रहे नए खुलासे पुलिस को और ज्यादा उलझाने का काम कर रहे हैं. जितने खुलासे हो रहे हैं, उतने सवाल भी उठ रहे हैं. ये सवाल आम लोगों के मन में भी इस खौफनाक जुर्म को लेकर दिलचस्पी पैदा कर रहे हैं. अब इसी दिलचस्पी में कुछ ऐसे स्कूली छात्र भी हैं जो आफताब के अपॉर्टमेंट तक पहुंच गए हैं. इस वजह से क्राइम सीन एक टूरिस्ट स्पॉट में तब्दील हो गया है जहां पर पुलिस का पेहरा सख्त नहीं है और लोग आरोपी के घर तक पहुंच गए हैं.
बच्चों से लेकर कॉलोनी की आंटियों तक, सभी के मन में सिर्फ एक सवाल चल रहा है- गली नंबर एक कहां है? असल में ये वहीं जगह है जहां पर आफताब का अपॉर्टमेंट स्थित है, ऐसे में सभी वहां जाने की कोशिश में लगे हुए हैं. बड़ी बात ये है कि दो दिन पहले तक पुलिस भी मौके पर मौजूद नहीं थी और आफताब के अपॉर्टमेंट की खिड़की भी खुली रहती थी. इस वजह से जो भी शख्स ताक झांक करने आता था, उसे पूरे कमरे का नजारा आसानी से देखने को मिल जाता था.
पूर्व IPS अधिकारी कुलबीर कृष्णन के मुताबिक बच्चों और नौजवानों को क्राइम सीन पर नहीं जाने दिया जाना चाहिए. इससे उनके मन में भी गलत विचार आएंगे. उनके मुताबिक इस समय क्योंकि मीडिया भी लगातार इस हत्याकांड को कवर कर रहा है, इस वजह से सभी के मन में इस मामले को लेकर ज्यादा जिज्ञासा जाग रही है. लेकिन जानकार इस ट्रेंड को ठीक नहीं मानते हैं. जोर देकर कहा जा रहा है कि क्राइम सीन पर बच्चों का जाना मन पर गलत असर डाल सकता है.
मनोवैज्ञानिक निमेश देसाई बताते हैं कि जब भी घर पर ऐसे मामलों पर चर्चा हो तो सही शब्दों का इस्तेमाल होना जरूरी है. बच्चों पर इसका गलत असर ना पड़े, इस बात का ध्यान रखना जरूरी हो जाता है. इस बात पर भी जोर दिया गया है कि बच्चों को हिंसा के प्रति संवेदनशील बनना चाहिए.