यूपी में हाहाकार मचा है. राज्य के इस कोने से लेकर उस कोने तक जिधर देखो जुर्म ने बेखौफ अपने पांव पसार रखे हैं. राज्य की गद्दी पर जो लोग बैठे हैं वो मुजरिमों के दिलों में कानून का खौफ बिठाने की बजाए बस लफ्फाजी किए जा रहे हैं. ऊपर से नीचे तक गद्दीनशीन नेता ऊलजुलूल बयान देकर राज्य की ऐसी तस्वीर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं मानो कुछ हुआ ही नहीं है. उनका तो यहां तक कहना है कि यूपी में जुर्म अगर बढ़ रहा है तो इसके लिए मीडिया जिम्मेदार है.
यूपी मे बच्ची के साथ रेप
यूपी में लड़की के साथ रेप
यूपी में महिला के साथ रेप
यूपी में मजिस्ट्रेट के साथ रेप की कोशिश
यूपी में घर में रेप
यूपी में मैदान में रेप
यूपी में अस्पताल में रेप
यूपी में सरकारी घर के अंदर रेप की कोशिश
यूपी में रेप के बाद लड़की को तेजाब पिलाया
यूपी मे रेप के बाद जिंदा जलाने की कोशिश
कमाल है यूपी पुलिस और कमाल है यूपी सरकार. सूबे में बदामशों की हिम्मत देखिए कि अलीगढ़ में सीधे मजिस्ट्रेट के घर में घुस कर उनके साथ रेप की कोशिश की गई. इलाहाबद में अस्पताल के अंदर ही आबरू लूटी गई. ग्रेटर नोएडा में एनटीपीसी कंपाउंड के अंदर एक महिला को गैंगरेप का शिकार बनाया गया तो गौंडा में छठी क्लास की बच्ची को उठा कर दूसरे जिले में ले जाया गया और फिर उसके साथ भी जबरदस्ती की गई.
सिर्फ पिछले 48 घंटे में यूपी के अलग-अलग इलाकों में रेप और रेप की कोशिश के 14 मामले सामने आ चुके हैं, जबकि यूपी के नेता कह रहे है कि सारे अपराध मीडिया की वजह से हो रहे हैं. बेहयाई की ऑक्सीजन से सांसें लेती हुई पुलिस. सत्ता के घमंड में सस्ती हरकतें करती सरकार और सत्ता से दूर रहने की छटपटाहट के बीच रेप जैसे मुद्दों को भी व्यापार बनाने वाले विपक्षी नेता.
वाकई अब तो शर्म भी नहीं आती. बस अफसोस होता है कि रेप जैसे शर्मनाक जुर्म को रोकने की बजाए सत्ता पर काबिज लोग रेप की ऊलजुलूल वजहें तलाशते हैं, जबकि देश की बेटी की लाश आम के पेड़ पर लटकती रहती है. विपक्ष बलात्कार को मुद्दा बना कर दो-चार दिन के लिए अपनी राजनीतिक दुकान चमकाती है और फिर सब गायब. सब कुछ भुला कर सब अपने-अपने सियासयी महलों में दुबक जाते हैं. इस इंतजार में कि अगला बलात्कार हो तो वो फिर अपने महलों से बाहर निकलें.
वह गुस्सा कौन भुला पाया है?
16 दिसंबर के बाद का गुस्सा किसे याद नहीं है. तब कितनी बड़ी-बड़ी बातें की गई थीं. कैसे-कैसे कड़े कानून के सपने दिखाए गए थे. देश के उबाल के साथ-साथ तब पहली बार अपने नेताओं पर यकीन करने को जी चाहा था. लेकिन क्या हुआ उन बातों, वादों और सपनों का? तब दिल्ली की तपिश ने पूरे देश को तपा दिया था. ये एक एसा आंदोलन था जिसकी आवाज को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था, क्योंकि ये आंदोलन किसी नेता, संगठन या पार्टी का नहीं बल्कि आम हिंदुस्तानियों का था.
दिल्ली से बदायूं तक
दिल्ली के बाद या यह कहें कि दिल्ली से लेकर बदायूं तक हमने कई बार देश की आबरू को लुटते देखा है. एक गांव में आम के पेड़ से लटकी दो बहनों की लाशें ये बताने के लिए काफी हैं कि 16 दिसंबर के बाद का हिंदुस्तान कैसा है? ये आजाद हिंदुस्तान की ही तस्वीर है. शायद कुछ-कुछ वैसी ही जैसी विदेशी पर्यटक हिंदुस्तान आकर हिंदुस्तान में ढूंढते हैं. गरीबी, मुफ्लिसी, भूखमरी, लाचारी, बेइज्जती, नंगापन.
दो साल ढाई महीने पहले लखनऊ की गद्दी पर जब अखिलेश यादव काबिज हुए तो लगा था कि बाकी चीजों के साथ-साथ यूपी में जुर्म की सूरत भी बदलेगी. सूरत बदली भी, पर अच्छी होने की बजाए और बिगड़ गई. यूपी में सत्ता की तस्वीर भले ही बदल जाए, लेकिन सत्ता पर काबिज लोग यूपी की तकदीर बदलने नहीं देते. वैसे तस्वीर बदले भी तो कैसे? खाली बातों से भला कभी कुछ बदला है?
आंकड़ों में यूपी का जुर्म
अखिलेश के राज्य के पहले साल में ही तीन हजार से ज्यादा मर्डर, हजार के करीब रेप, हजार से ज्यादा किडनैपिंग और चार हजार से ज्यादा लूट के मामले हुए, जबकि दूसरे साल में जनवरी 2013 से जनवरी 2014 के बीच राज्य में बलात्कार, बलात्कार की कोशिश और महिलाओं से जुड़े दूसरे अपराध के 9500 मामले दर्ज हुए. यानी महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध के मामलों में पिछले साल के मुकाबले 50 फीसदी का इजाफा हुआ है.
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकडों के मुताबिक यूपी में हर रोल औसतन रेप के 10 मामले होते हैं. एक और चौंकाने वाला सच यह है कि यूपी में 60 से 65 फीसदी रेप के मामले अमूमन सुबह-सुबह या शाम को तब होते हैं, जब महिलाएं खुले में शौच के लिए जाती हैं. बदायूं में दोनों बहनों के साथ भी रेप तभी हुआ था जब दोनों शाम को खुले में शौच के लिए जा रही थीं.
जाहिर है यूपी में राज किसका है? जनता बेहाल है. पुलिस लाचार और दरिंदों का लगातार अत्याचार. वैसे बलात्कारी मानसिकता एक प्रदेश या देश नहीं बल्कि पूरी दुनिया की सबसे पुरानी मुसीबत है. खासतौर पर हमारा समाज जिस सोच के साथ अपने मर्दों की परवरिश कर रहा है उसमें दरिंदगी का ये आलम है कि एक साल की मासूम से लेकर 90 साल तक की बुजुर्ग औरत बलात्कार की शिकार हो रही हैं.
हम और हमारा नजरिया
अगर ये हो रहा है तो इसकी वजह औरतों के लिए हमारा बीमार नजरिया है. वो नजरिया जो मां के पैर में जन्नत देखता है. बहन की हिफाजत की राखी बंधवाता है, लेकिन बेटी को मार डालता है. औरत को इस्तेमाल की चीज समझता है. लिहाजा जरूरत नजरिया बदलने की है. और साथ ही जरूरत है बदलने की नेताओं की सियासत. वर्ना ऐसे बदायूं ना जाने कितने शहर और कस्बे में मिलते रहेंगे.