8 साल 9 महीने 11 दिन... देश में उम्र कैद की सजा कुल मिलाकर अब बस इतनी ही है. फिर चाहे आपने तीन-तीन कत्ल क्यों ना किए हों? यकीन ना हो तो यूपी के बाहुबली नेता उदयभान करवरिया को देख लीजिए. बीजेपी के टिकट पर दो-दो बार विधायक भी रह चुके हैं. इन पर अपने ही जैसे एक विधायक, उसके ड्राइवर और एक राहगीर को एके-47 से छलनी कर देने का इल्ज़ाम था. यानी सर पर कुल तीन-तीन कत्ल के इल्जाम. अदालत ने तीन कत्ल के लिए बाकायदा इन्हें और इनके रिश्तेदारों को सिर्फ पांच साल पहले ही उम्र कैद की सजा सुनाई थी.
सजा सुनाए जाने से तीन साल पहले ये पकड़े गए और जेल चले गए थे. 30 जुलाई 2023 तक इनके जेल में बिताए दिन की कुल गिनती थी 8 साल 9 महीने 11 दिन. अब चूंकि उम्र कैद की सजा थी, तो काटनी पूरी उम्र जेल में ही थी. लेकिन यूपी सरकार ने कहा कि इनका आचरण बहुत अच्छा है. जेल में भी शरीफों की तरह रहे. जेल ने खुद इनकी शराफत का सर्टिफिकेट दिया. डीएम साहब ने भी रिपोर्ट दे दी कि इनको जेल से आजाद करने में कोई दिक्कत नहीं है. फिर क्या था? यूपी सरकार ने इनकी रिहाई का फरमान राज्यपाल के पास भेजा.
अब राज्यपाल भी क्या करते, रिहाई के फरमान पर दस्तखत कर दिया. लिहाजा, अब बस जेल का दरवाजा खुलना है और उदयभान करवरिया उम्र कैद की सजा में से अपनी सारी उम्र बचा कर जेल से बाहर आ जाएंगे. तो हुई ना आठ साल नौ महीने और ग्यारह दिन की उम्र कैद.
अभी साल भर भी तो नहीं हुआ है जब यूपी के एक और विधायक अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी की उम्र कैद में से भी एक लंबी उम्र यूपी सरकार ने चुरा ली थी. इन दोनों को भी उम्र कैद की सजा हुई थी. मधुमिता मर्डर केस में. ये दोनों तो और भी कमाल के निकले. उम्र कैद का एक बड़ा हिस्सा जेल की बजाय अस्पताल में काटी और फिर यूपी सरकार ने एक फरमान से उम्र कैद की इनकी उम्र ही छोटी कर दी. कायदे से कत्ल के मामले में या तो मौत की सजा मिलती है या फिर उम्र कैद. उससे कम तो कोई सजा है ही नहीं. पर उम्र कैद आठ साल नौ महीने और ग्यारह दिन की हो, शायद इसकी कोई दूसरी मिसाल भी न हो.

बात 90 के दशक की है. तब प्रयागराज में एक विधायक हुआ करते थे, जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित. बालू के ठेके को लेकर जवाहर पंडित की दुश्मनी करवरिया परिवार से थी. 13 अगस्त 1996 को जवाहर पंडित को दिन दहाड़े प्रयागराज में गोलियों से छलनी कर दिया गया था. वारदात को वक्त वो अपनी गाड़ी में ड्राइवर के साथ जा रहे थे. तभी करवरिया बंधुओं ने एके-47 से उन पर गोलियां दाग दी. प्रयागराज में एके-47 का इस्तेमाल तब पहली बार हुआ था.
इस गोलीबारी में जवाहर पंडित और उनके ड्राइवर के साथ-साथ एक राहगीर की भी मौत हो गई थी. एफआईआर में उदयभान, उनके भाई कपिल मुनि, चाचा सूरजभान और उनके साथी रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू का नाम दर्ज था. पर उनकी गिरफ्तारी नहीं हुई. उल्टे हत्याकांड के 6 साल बाद 2002 में उदयभान को इलाहाबाद की बारा सीट से बीजेपी ने टिकट दे दिया. चुनाव जीत कर वो विधायक बन गया. 2007 में उसने दूसरी बार यहां से चुनाव जीता. 2012 में राज्य में सपा की सरकार आई, तब जवाहर पंडित मर्डर केस का मामला फिर से उछला. मुकदमे पर स्टे हटने के बाद दो महीने तक उदयभान फरार रहे.
1 जनवरी 2014 को उसने सरेंडर कर दिया. इसके बाद में उसके भाई भी जेल चले गए. अक्टूबर 2018 में बाकायदा उत्तर प्रदेश सरकार ने सेशन कोर्ट में करवरिया बंधुओं के खिलाफ केस वापसी की अर्जी डाल दी थी. दलील दी थी कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है. सरकार के इस फैसले के खिलाफ जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गई. तब इलाहाबाद हाई कोर्ट को इस मामले में दखल देना पड़ा. हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि करवरिया बंधुओं के खिलाफ सेशन कोर्ट में मुकदमा जारी रहेगा. 4 नंबर 2019 को प्रयागराज के सेशन कोर्ट ने इस मामले में सजा सुना दी.

कोर्ट ने उदयभान को उसके भाइयों सूरजभान, कपिलमुनि और चाचा रामचंद्र को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई. तब से उदयभान अपने भाइयों के साथ प्रयागराज के ही नैनी जेल में बंद था. यानी कायदे से उम्र कैद की सजा के ऐलान के बाद उसे जेल में सजा काटते हुए पांच साल ही हुए. बाकी के चार साल अदालती फैसले से पहले के हैं. इसके बावजूद तीन-तीन कत्ल के गुनहगार उदयभान को इतनी जल्दी यूपी सरकार ने रिहा करने का फैसला ले लिया. जाहिर है उदयभान के बाद उसी जवाहर पंडित मर्डर केस में उम्र कैद की सजा पाने वाले उसके बाकी भाइयों की रिहाई का भी रास्ता साफ हो जाएगा.
सभी एक ही जुर्म में शामिल थे. लेकिन उदयभान की ये रिहाई एक तरह से कानून का मजाक भी है.
एक आंकड़े के मुताबिक यूपी के जेलों में इस वक्त 12 हजार से ज्यादा ऐसे कैदी हैं, जिन्हें उम्र कैद की सजा मिली है. इनमें से कई तो ऐसे हैं, जो 20-25 सालों से जेल में हैं. कइयों की उम्र 70 बरस से ज्यादा है. इन सबके भी जेल में अच्छे व्यवहार हैं. लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है. क्योंकि ये किसी पार्टी के नेता नहीं हैं. लेकिन जिस तरह से पहले अमरमणि और उसकी पत्नी, बिहार में बाहुबली आनंद मोहन और अब उदयभान को वक्त से पहले सरकारें रिहाई दे रही हैं. उससे ये सवाल जरूर खड़ा होता है कि क्या उम्र कैद की सजा महज मजाक है. क्या उम्र कैद की सजा सिर्फ 8 साल 9 महीने और 11 दिन होती है