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एक झटके में नौकर को मिली मालिक की 600 करोड़ की जायदाद

आपने लोगों को खुश होकर अपने नौकरों को बख्शीश देते तो देखा होगा, लेकिन कोई मालिक अपने नौकर की खिदमत से इस कदर खुश हो जाए कि उसे बख्शीश में छह सौ करोड़ की दौलत दे दे, ऐसा ना तो देखा होगा और ना ही सुना होगा. राजकोट में एक नौकर को अपने मालिक से बख्शीश में छह सौ करोड़ की ऐसी वसीयत मिली कि खुद मालिक के रिश्तेदारों ने ही नौकर को अगवा तक कर लिया.

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आपने लोगों को खुश होकर अपने नौकरों को बख्शीश देते तो देखा होगा, लेकिन कोई मालिक अपने नौकर की खिदमत से इस कदर खुश हो जाए कि उसे बख्शीश में छह सौ करोड़ की दौलत दे दे, ऐसा ना तो देखा होगा और ना ही सुना होगा. राजकोट में एक नौकर को अपने मालिक से बख्शीश में छह सौ करोड़ की ऐसी वसीयत मिली कि खुद मालिक के रिश्तेदारों ने ही नौकर को अगवा तक कर लिया.

इस नौकर की एक रोज ऐसे तकदीर ने करवट बदली कि देखते ही देखते अब ये शख्स छह सौ करोड़ का मालिक बन गया. किसी फिल्मी कहानी से मिलते तकदीर के इस करिश्मे पर अब खुद इस शख्स के साथ-साथ इन्हें जाननेवाला हर कोई हैरान है, लेकिन राजकोट के इस शख्स ने ये कमाल ना तो कोई लॉटरी जीतकर किया और ना ही किसी रहस्यमयी खजाने पर हाथ मारकर. बल्कि ये मुमकिन हुआ है एक ऐसी वसीयत की बदौलत, जिसके सामने आते ही कल तक मुफलिसी में जीनेवाला ये शख्स आज इलाके के सबसे अमीर लोगों में शुमार किया जाने लगा है.

कनक जयपाल उर्फ विनुभाई राजकोट के एक जमींदार और जाने-माने सियासतदान गजराज सिंह जडेजा के यहां एक मामूली नौकर हुआ करते थे. एक ऐसा नौकर, जिसके दिन की शुरुआत अपने मालिक की तिमारदारी से होती और मालिक के तिमारदारी से ही खत्म होती, लेकिन उनके मालिक गजराज सिंह जडेजा ने अपनी आंखें क्या बंद की, विनुभाई की तकदीर ही खुल गई. गजराज सिंह जडेजा ने जाते-जाते अपने छह सौ करोड़ की पूरी दौलत अपने इस चहेते नौकर विनुभाई के नाम कर दी, लेकिन एक नौकर को इतनी बड़ी दौलत का वारिस बनाने की ये कहानी जितनी दिलचस्प है, इसके पहले और बाद की कहानी भी उतनी ही चौंकानेवाली, क्योंकि विनुभाई को अगर इस दौलत से ऐशो-आराम मिला, तो मुसीबत भी मुफ्त में मिल गई.

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इसे 40 सालों की वफादारी का इनाम कहें या फिर अपने ही रिश्तेदारों से मिली रुसवाई का नतीजा, राजकोट के जमींदार गजराज सिंह जडेजा ने जब विनुभाई के नाम ये वसीयत लिखी, तो इसकी भनक खुद उस शख्स को भी नहीं थी, जिसके नाम ये वसीयत लिखी जा रही थी. जमींदार की मौत के तीन महीने बाद जैसे ही ये राज सामने आया दौलत के साथ-साथ नौकर की शामत भी आ गई.

इस वसीयत के मुताबिक गजराज सिंह की इस आलीशान हवेली के साथ-साथ तमाम जमीन-जायदाद, हीरे-जवाहरात और रुपए-पैसों का मालिक कोई और नहीं, बल्कि वही विनुभाई थे, जो पिछले 40 सालों तक उनके साथ रह कर हर पल उनकी सेवा करते रहे. एक नौकर की वफादारी और मालिक के दरियादिली की इस अनोखी कहानी में तब एक बड़ा ट्विस्ट आ गया, जब चंद रोज पहले गजराज सिंह के रिश्तेदारों ने अचानक उनकी इस हवेली पर धावा बोल दिया.

दरअसल, गजराज सिंह के जाने के बाद इस हवेली में विनुभाई ही अपने परिवार के साथ रह रहे थे... लेकिन इसी बीच गजराज सिंह के भतीजे और दूसरे रिश्तेदारों को जब अपने चाचा के वसीयत की खबर मिली, तो उन्होंने अपना आपा खो दिया और विनुभाई को सब सिखा कर छह सौ करोड़ की दौलत हड़पने के लिए इस हवेली पर धावा बोल दिया.

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विनुभाई और उनके घरवालों की माने तो उनके मालिक के भतीजों ने इसके बाद ना सिर्फ उनके साथ मारपीट कर कई दस्तावेजों पर दस्तखत करवा लिए और उन्हें घंटों बंधक भी बनाए रखा. जब पुलिस को इस बात की खबर मिली और वर्दीवालों ने इस हवेली में दबिश दी, तब जाकर विनुभाई और उनके घरवालों को बंधक रहने से आजादी मिल पाई.

खेती और प्रॉपर्टी के कारोबार से 37 सालों में महज़ कुछ हज़ार रुपयों से छह सौ करोड़ की प्रॉपर्टी बनानेवाले गजराज सिंह ने शादी नहीं की थी, लेकिन उनके जीते-जी विनुभाई ने उनका जितना ख्याल रखा, उससे वो अपने इस नौकर के ही मुरीद बन कर रह गए. दूसरी ओर, अपने रिश्तेदारों और खासकर भतीजों के साथ गजराज सिंह के रिश्ते कोई बहुत अच्छे नहीं रहे. लिहाजा, 1993 में जब उन्हें पैरालिसिस का अटैक हुआ, तो गजराज सिंह ने अपने दिमाग में चल रही इस बात को कागजों पर उतारने का फैसला कर लिया और फिर एक रोज अपने वकीलों को बुलवा कर वो काम कर दिया, जिसके बारे में आम तौर किसी के लिए सोचना भी मुमकिन नहीं होता.

लोग बताते हैं कि कामकाज के सिलसिले में गजराज सिंह सालों पहले जब-जब राजकोट आते थे, तो एक हवेली में ठहरा करते थे और उन दिनों इसी हवेली में मासूम विनु गजराज सिंह की सेवा किया करता था और बस, उन्हीं दिनों से विनु ने गजराज सिंह का दिल कुछ ऐसा जीता कि उन्होंने उसे अपने साथ रख लिया.

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इसके बाद गजराज सिंह ने ही उसकी शादी करवाई और उसके बच्चों की परवरिश और पढ़ाई खर्चा उठाया और तो और गजराज सिंह के पैसों से ही विनुभाई के तीन बच्चों ने हिंदुस्तान से लेकर इंग्लैंड तक जाकर तालीम ली और अब गजराज सिंह के जाने के बाद विनुभाई और उनका पूरा परिवार ही उनका असली वारिस बन चुका है.

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