अमेरिका ने H-1B वीजा के बदले हुए नियम लागू कर दिया है. इस बदलाव का सबसे ज्यादा असर भारत पर पड़ने वाला है, क्योंकि H-1B वीजा के कुल आवेदकों में करीब 71 फीसदी भारतीय प्रोफेशनल्स शामिल हैं. दरअसल, ट्रंप प्रशासन ने प्रोफेशनल के लिए H-1B वीजा आवेदन शुल्क को बढ़ाकर 1,00,000 डॉलर (लगभग ₹88 लाख) कर दिया है. इसके अलावा, इसकी चयन प्रक्रिया में लॉटरी प्रणाली को खत्म करने के प्रस्ताव ने भी भारत की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि सबसे ज्यादा ये वीजा लेकर अमेरिका पहुंचने वाले ज्यादातर वीजाधारक भारतीय होते हैं.
लेकिन, जानकार मान रहे हैं कि H-1B वीजा के कड़े नियम होने से भारतीय टेक प्रोफेशनल के लिए चुनौतियों के साथ इसमें अवसर भी हैं. अमेरिका की बदली नीति के बाद अब भारतीय प्रोफेशनल दूसरे देश को भी विकल्प के तौर देख सकते हैं, तमाम ऐसे देश भी हैं, जिनके लिए ये एक सुनहरा मौका है कि वो अच्छे टेक प्रोफेशनल्स को अपने साथ जोड़ सकें. खासकर यूके, यूरोप और कनाडा का नाम सामने आ रहा है, साथ ही चीन भी रेस में पीछे नहीं है. लेकिन क्या अमेरिका का ये विकल्प सही में आईटी पेशेवरों के लिए बन पाएगा, ये बड़ा सवाल है?
क्या यूरोप और ब्रिटेन भारतीयों के लिए बनेगा 'नया अमेरिका'?
जिस तरह अमेरिका की ओर से H-1B वीजा की फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी की गई है, इस पर पूरी दुनिया की नजर है. सभी देशों को पता है कि सबसे ज्यादा H-1B होल्डर्स भारतीय प्रोफेशनल होते हैं. अब कुछ देश इसका फायदा उठाना चाहते हैं. इस अवसर का फायदा उठाने की चाह में UK ने Global Talent Taskforce सक्रिय किया है. इसके अंतर्गत विचार किया जा रहा है कि विश्व के टॉप-5 विश्वविद्यालयों की पढ़ाई कर चुके या प्रतिष्ठित पुरस्कार जीत चुके लोगों के लिए वीजा शुल्क को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए.
लेकिन, UK की अपनी चुनौतियां हैं, और उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है. जुलाई 2025 से पोस्ट-स्टडी वर्क वीजा की अवधि 2 वर्ष से घटाकर 18 महीने कर दी गई है. इसके अलावा, अंग्रेजी भाषा की आवश्यकताएं कड़ी की गई हैं, पर्मानेंट रेजिडेंसी के लिए आवश्यकता 10 वर्ष कर दी गई है, और 'Health & Care Worker' वीजा नए आवेदकों के लिए निरस्त कर दिया गया है.
इस वजह से UK के लिए वर्क वीजा के आवेदन में भारी गिरावट दर्ज की गई है. 2023 में भारतियों को दिए गए वर्क वीजा 162,655 थे, जो 2024 में लगभग 81,463 रह गए, यानी करीब 50% की कटौती देखी गई. इन नीतिगत बदलावों के चलते ही 'Skilled Worker' कैटेगरी में आवेदन जुलाई 2025 में करीब 4,900 रह गए, जबकि पिछले वर्ष यह करीब 6,000 था.
अधिक कठोर नियमों के कारण शॉर्ट-टर्म स्टडी वीजा अस्वीकृतियों की दर 45% से बढ़कर 68% तक पहुंच गई, जबकि Skilled Worker वीजा कैंसिलेंशन दर 3% से बढ़कर 21% हो गई, ब्रिटेन ने न्यूनतम वेतन सीमा (Salary Threshold) को £41,700 (करीब Rs 50 लाख) तक बढ़ा दिया है, जिससे कई भारतीय पेशेवरों को पात्रता से बाहर कर देता है.
जर्मनी
जर्मनी ने भी भारतीय पेशेवरों को आमंत्रित किया है, लेकिन उसके हालिया कदम से भी भारतीय टेक प्रोफेशनल को दिक्कतें आने वाली हैं. क्योंकि पहले तीन वर्ष में नागरिकता देने वाले 'fast-track' सिस्टम को अब खत्म कर दिया गया है. अब न्यूनतम 5 वर्ष की अवधि पूरी करनी होगी. हालांकि जर्मन राजदूत फिलिप एकरमन एक वीडियो में कहते दिखे, 'जर्मनी में औसत भारतीय औसत जर्मन की तुलना में अधिक कमाता है'. यानी वो विदेशी प्रोफेशनल को आकर्षित करना चाहते हैं. हालांकि, नए नियमों से यह स्पष्ट है कि जर्मनी अब आसान रास्ता नहीं बना रहा है.
कनाडा
भले की भारतीय प्रोफेशनल में कनाडा नया विकल्प साबित हो सकता है. लेकिन चुनौतियां यहां भी कम हैं. क्योंकि साल 2025 के पहले छह महीनों (जनवरी–जून) में वर्क परमिट जारी करने में करीब 50% की गिरावट दर्ज की गई है. छात्र और Temporary Workers के लिए 'Integrity Checks' (जांच) को और सख्ती दी गई है.
हालांकि, इस बीच कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कैनी ने Temporary Foreign Worker Program (TFWP) को पुनर्संगठित करने की घोषणा की है, अब इसे विशेष क्षेत्रों और प्रांतों तक सीमित किया जाएगा.
चीन
इसके अलावा अगर चीन की बात करें तो ट्रंप की नीति ने वैश्विक स्तर पर संवेदनशीलता बढ़ा दी है. चीन 1 अक्टूबर 2025 से नया K-वीजा लागू करने जा रहा है. चीन का K-वीजा भारतीय STEM पेशेवरों के लिए एक आकर्षक नई संभावना है, विशेषकर उन लोगों के लिए जिनके पास अच्छा शैक्षिक बैकग्राउंड है, शोध या शिक्षण का अनुभव है, या वे उद्यमिता/स्टार्ट-अप आदि क्षेत्रों में काम करना चाहते हैं.
अगर अमेरिकी H-1B वीजा शुल्क बहुत अधिक हो गया है या नीति कठिन हो गई है, तो चीन का यह नया वीजा विकल्प हो सकता है, खासकर STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) में काम करने या रिसर्च करने वालों के लिए. जो लोग टीचिंग और रिसर्च में हैं, वे भी आवेदन कर सकते हैं.
यह चीन की बड़ी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है. पिछले कुछ वर्षों में चीन ने विदेशियों के लिए वीजा नियम आसान किए हैं. वैसे अब तक चीन 75 देशों के साथ वीजा-फ्री समझौते कर चुका है. 2025 की पहली छमाही में 3.8 करोड़ विदेशी चीन गए, जिनमें से 1.36 करोड़ लोग वीज-फ्री एंट्री से आए. आसान शब्दों में कहें तो K-वीजा चीन का नया कदम है, ताकि ज्यादा से ज्यादा विदेशी पढ़ाई, रिसर्च और बिजनेस के लिए चीन पहुंचे.