कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित ई-कॉमर्स नियमों में हस्तक्षेप करने के लिए नीति आयोग की कड़े शब्दों में निंदा की है. शुक्रवार को उन्होंने कहा कि नीति आयोग ने जिस प्रकार से ई-कॉमर्स व्यापार में उपभोक्ता मंत्रालय द्वारा नियमों के प्रारूप पर जिन शब्दों का प्रयोग किया है, वह स्पष्ट रूप से नीति आयोग पर विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के दबाव और प्रभाव का नतीजा लगता है.
ऐसा प्रतीत होता है कि नीति आयोग देश के ई-कॉमर्स क्षेत्र में बहुप्रतीक्षित सुधार को पटरी से उतारने के लिए कटिबद्ध है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के आह्वान को लेकर गंभीर नहीं है. यह अत्यंत खेद की बात है कि अपने अस्तित्व के 8 वर्षों के बाद भी, नीति आयोग अपनी औपनिवेशिक मानसिकता से उबर नहीं पाया है.
कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने नीति आयोग पर कड़ा प्रहार किया और कहा, "यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले सात वर्षों में नीति आयोग ने अपनी स्थापना के बाद से भारत के 8 करोड़ व्यापारियों का समर्थन करने के लिए कुछ भी नहीं किया है और अब जब सरकार देश के व्यापारियों को ई-कॉमर्स में एक मजबूत ज़मीन देने का प्रयास कर रही है, जिससे ई-कॉमर्स क्षेत्र में समान अवसर प्रदान किया जा सके तो नीति आयोग बिना किसी औचित्य के बीच में आकर अपने मनमाने रुख से इस प्रक्रिया को पटरी से उतारने की कोशिश कर रहा है"
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कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया ने कहा, "नीती आयोग के इस तरह का कठोर और उदासीन रवैया बहुत चौंकाने वाला है. नीति आयोग पिछले आठ वर्षों से मूक दर्शक बन कर विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा भारत के ई-कॉमर्स व्यापार के चीर हरण को देख रहा था. जब विदेशी ई-कॉमर्स दिग्गजों ने एफडीआई नीति के हर नियम को दरकिनार कर दिया है और देश के खुदरा और ई-कॉमर्स परिदृश्य का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया और नष्ट कर दिया तो ऐसे में अचानक नीति आयोग अब नींद से जाग गया और सरकार के ई-कॉमर्स में सुधार लाने के क़दमों का खुला विरोध शुरू कर दिया.
नीति आयोग का काम नीति बनाना है, बेहतर है कि नीति आयोग अपना काम दक्षता से करे और इस तरह से सुधारों को पटरी से उतारने की कोशिश न करे. प्रस्तावित ई-कॉमर्स नियम ई-कॉमर्स क्षेत्र में समान स्तर का व्यापार करने का अवसर देगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे भारत के उपभोक्ताओं को लाभ होगा. नीति आयोग को इस मुद्दे पर तार्किक बात करनी चाहिए और इस मुद्दे को प्रक्रिया में उलझाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.
दोनों नेताओं ने दोहराया कि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय को उपभोक्ता संरक्षण ई-कॉमर्स नियमों के मसौदे को जल्द से जल्द लागू करना चाहिए. क्योंकि वे उपभोक्ताओं के साथ-साथ देश के व्यापारियों के सर्वोत्तम हित में है. क्योंकि यह ना केवल सर्वोत्तम गुणवत्ता और कीमत सुनिश्चित करेगा बल्कि उपभोक्ताओं के साथ-साथ 8 करोड़ भारतीय व्यापारियों के लिए सतत विकास का एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र भी बनाएगा जो अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं और प्रधान मंत्री मोदी के 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण का एक अभिन्न अंग है.