scorecardresearch
 

अमेरिका में TCS के खिलाफ निकाले गए कर्मचारी ने कराया केस दर्ज, कहा- कंपनी में भारतीयों की ज्यादा पूछ

TCS पर मुकदमा दर्ज करने वाले शॉन काट्ज ने कहा है कि उसको 9 साल तक कंपनी में लगातार काम करने के बावजूद तरक्की नहीं मिली. ये हाल तब है जबकि वो कई साल तक प्रमोशन पाने की सभी योग्यताओं से लैस था.

Advertisement
X
कंपनी पर पक्षपात का आरोप
कंपनी पर पक्षपात का आरोप

भारत की दिग्गज IT कंपनी TCS पर अमेरिका में एक पूर्व कर्मचारी ने क्लास एक्शन लॉ सूट दायर किया है. इस कर्मचारी ने आरोप लगाया है कि TCS कर्मचारियों के साथ उनके देश के हिसाब से भेदभाव करती है. शॉन काट्ज नाम के इस कर्मचारी ने आरोप लगाया है कि TCS गैर दक्षिण एशियाई और गैर भारतीय उम्मीदवारों और कर्मचारियों के साथ भेदभाव करती है. TCS के खिलाफ ये मुकदमा 7 दिसंबर को न्यू जर्सी की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में दायर किया गया है.

9 साल की नौकरी के बाद लगाया आरोप
शॉन काट्ज ने TCS में 9 साल तक काम किया है. इसके बाद काट्ज को नौकरी से निकाल दिया गया था. नौकरी से निकाले जाने के बाद काट्ज ने अपनी याचिका में आरोप लगाते हुए कहा है कि सॉफ्टवेयर एक्सपोर्टर कंपनी TCS का एक व्यवस्थित तरीका है जिसके तहत वो गैर दक्षिण एशियाई और गैर भारतीय कर्मचारियों से भेदभाव करती है. काट्ज ने आरोप लगाया है कि इस तरीके से TCS हायरिंग, स्टाफिंग, बेंचिंग, बर्खास्तगी और प्रमोशन के फैसले करती है. काट्ज ने आगे कहा है कि TCS की ये नीति कंपनी में ऊपर से लेकर नीचे तक लागू की गई है.

9 साल तक तरक्की ना मिलने का आरोप
TCS पर मुकदमा दर्ज करने वाले शॉन काट्ज ने कहा है कि उसको 9 साल तक कंपनी में लगातार काम करने के बावजूद तरक्की नहीं मिली. ये हाल तब है जबकि वो कई साल तक प्रमोशन पाने की सभी योग्यताओं से लैस था. यही नहीं उसके प्रमोशन के लिए मैनेजर्स के साथ ही क्लाइंट कंपनियों ने भी सिफारिश की थी. इसके बावजूद उसे बेंच पर भेज दिया गया और बाद में नौकरी से ही निकाल दिया गया. काट्ज ने आरोप लगाया है कि बेंच पर रहने के दौरान कंपनी ने उसे ज़रुरी मदद नहीं दी.

Advertisement

TCS में सबसे कम गैर भारतीय कर्मचारी!
शॉन काट्ज ने याचिका में कहा है कि जहां अमेरिकी आईटी सेक्टर में महज 12 से 13 फीसदी दक्षिण एशियाई कर्मचारी हैं वहीं TCS में 70 फीसदी कर्मचारी दक्षिण एशियाई हैं. इनमें भी सबसे ज्यादा तादाद अमेरिका में वर्क वीज़ा पर काम करने वाले भारतीयों की है. इस अनुपात पर सवाल उठाते हुए काट्ज ने आरोप लगाया है कि TCS गैर दक्षिण एशियाई और गैर भारतीय कर्मचारियों के साथ भेदभाव करती है. ऐसे में शिकायत में कहा गया है कि TCS का ये भेदभावपूर्ण रवैया व्यवस्थित तरीके से चला आ रहा है जिससे गैर एशियाई और गैर भारतीय कर्मचारी सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. आरोप है कि कंपनी हायरिंग के साथ ही प्रमोशन और बर्खास्तगी तक में भेदभाव करती है.

TCS पर भेदभाव का दूसरा मुकदमा
TCS पर ये दूसरी बार किसी कर्मचारी ने गैर दक्षिण एशियाई कर्मचारियों के साथ इस तरह से भेदभाव का आरोप लगाया है. इसके पहले 2015 में जब कंपनी पर इस तरह के आरोप लगे थे तो उस मुकदमे में TCS को जीत हासिल हुई थी. तब अदालत ने फैसले में कहा था कि इस तरह के भेदभाव के आरोप में कोई सच्चाई नहीं है. TCS पर अमेरिकी कर्मचारियों के साथ भेदभाव के आरोपों को निराधार बताते हुए कोर्ट ने 2018 में केस खारिज कर दिया था.

Advertisement

हायरिंग में भेदभाव का आरोप
याचिका में कहा गया है कि प्रक्रिया के तहत किसी नए प्रोजेक्ट के मिलने पर TCS को नए और मौजूदा कर्मचारियों के द्वारा कर्मचारियों की जरुरत को पूरा करना होता है. कंपनी के मौजूदा कर्मचारी ज्यादातर वो लोग हैं जो एक प्रोजेक्ट खत्म करने के बाद बेंच पर होते हैं. इन्हें कंपनी नए प्रोजेक्ट्स की जानकारी देती है और ये भी किसी नए कर्मचारी की तरह इंटरव्यू और दूसरी प्रक्रिया से गुजरकर नए प्रोजेक्ट के लिए चुने जाते हैं. इन्हें ओपन पोजीशंस कहा जाता है. लेकिन अगर कोई कर्मचारी लंबे समय तक बेंच पर रहता है तो फिर उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है. शॉन काट्ज का आरोप है कि TCS की इंटर्नल टीम और और थर्ड पार्टी टीम को निर्देश दिए गए हैं कि वो भारतीय उम्मीदवारों को आकर्षित करें. यही वजह है कि TCS में ज्यादा संख्या में भारतीय और दक्षिण एशियाई कर्मचारी हैं. वहीं ओपन पोजीशंस में गैर दक्षिण एशियाई और गैर भारतीय कर्मचारियों की अनदेखी की जाती है जिससे इनको कंपनी में आगे नौकरी नहीं मिलती और ये लंबे समय तक बेंच पर रहने से बर्खास्तगी का शिकार हो जाते हैं.

क्या होता है क्लास एक्शन लॉ सूट?
शॉन काट्ज ने TCS पर जो मुकदमा दर्ज किया है वो क्लास एक्शन लॉ सूट के दायरे में आता है. दरअसल, क्लास एक्शन लॉ सूट एक बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करने के मकसद से अदालत में लाया गया मामला है जिसमें पूरे समूह को एकसमान नुकसान हुआ होता है. ये ‘प्रतिनिधि मुकदमेबाज़ी’ की अवधारणा से ली गई है, जिसमें एक ताकतवर विरोधी के खिलाफ आम व्यक्ति के लिये न्याय सुनिश्चित किया जाता है. ऐसे मामलों में आरोपी आमतौर पर कॉर्पोरेट संस्थाएं या सरकारें होती हैं. आमतौर पर क्लास एक्शन सूट में भुगतान किया गया नुकसान व्यक्तिगत स्तर पर छोटा हो सकता है. इस मामले में शॉन काट्ज ने कहा है कि उसके जैसे कितने कर्मचारी TCS से पीड़ित हैं उनका पता कंपनी की पड़ताल से ही लगाया जा सकता है.

Advertisement

 

Advertisement
Advertisement