भारतीय रुपये की लगातार गिरावट ने एक्सपर्ट्स के बीच एक बहस छेड़ दी है कि आखिर ये कितना गिरेगा. SBI रिसर्च ने अपनी नई रिपोर्ट में एक बड़ा दावा किया है. एसबीआई ने 'इन रूपी वी ट्रस्ट' में कहा है कि भारतीय रुपया अभी डीवैल्यूवेशन के तीसरे चरण से गुजर रही है, जो रुपया और अमेरिकी डॉलर दोनों में एक साथ कमजोरी का दौर है.
एसबीआई ने कहा कि रुपये में गिरावट घरेलू व्यापक आर्थिक तनाव और वैश्विक अनिश्चितता, विशेष रूप से भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार व्यवधानों के कारण हो रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्कोव रिजीम-स्विचिंग मॉडल का उपयोग करते हुए, एसबीआई रिसर्च का अनुमान है कि रुपया लगभग छह महीने तक दबाव में रह सकता है. लेकिन इसके बाद इसमें शानदार तेजी आएगी. इसके बाद इसमें करीब 6.5 फीसदी की उछाल आ सकती है और संभावित तौर से 2026 में यह वापस 87 रुपये प्रति डॉलर की ओर बढ़ सकता है.
आरबीआई के एक्शन से उछला रुपया
भारतीय रुपया मंगलवार को 91 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया और सर्वकालिक निम्न स्तर पर पहुंच गया, लेकिन अगले दिन इसमें तेजी से सुधार हुआ. बुधवार को मुद्रा 90.3475 प्रति अमेरिकी डॉलर पर कारोबार कर रही थी, जो इसके पिछले बंद भाव 91.0275 से 1 फीसदी से ज्यादा की उछाल है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के मजबूत हस्तक्षेप ने 17 दिसंबर को रुपये में सात महीनों में सबसे मजबूत तेजी आई, जिससे अमेरिकी डॉलर के मुकाबले लंबे समय से चली आ लगातार गिरावट पर ब्रेक लग गई.
सरकारी बैंकों द्वारा डॉलर की लगातार बिक्री के बाद शुरुआती कारोबार में घरेलू मुद्रा में उछाल आया है. माना जा रहा है कि सरकारी बैंक ने केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के बाद ऐसा फैसला किया है. इस हस्तक्षेप से अस्थिरता को कम करने और बाजार की भावना को स्थिर करने में मदद मिली. रुपये में 1.03% की वृद्धि हुई, जो 23 मई, 2025 के बाद से एक दिन में सबसे बड़ी तेजी है.
रुपये में गिरावट क्यों?
एक्सपर्ट्स के अनुसार रुपये को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा संरचनात्मक परिवर्तन 2014 से पहले की अवधि की तुलना में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में आई भारी गिरावट है. 2007 से 2014 के बीच, नेट पोर्टफोलियो निवेश औसतन 162.8 अरब डॉलर प्रति वर्ष था, जिससे करेंसी को मजबूती मिली थी. हालांकि, 2015 से 2025 तक, औसत निवेश घटकर 87.7 अरब डॉलर रह गया है, जिससे वैश्विक झटकों को झेलने की क्षमता कम हो गई है. अकेले 2025 में, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का निवेश 10 अरब डॉलर से अधिक हो गया, जिससे रुपये पर लगातार दबाव बना रहा.
एसबीआई रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में भू-राजनीतिक तनाव और टैरिफ को भी रुपये में गिरावट की वजह बताई है.रिपोर्ट के मुताबिक, टैरिफ ऐलान के बाद से ही रुपये में 5.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है.
डॉलर की डिमांड
रिपोर्ट में विदेशी मुद्रा बाजार के व्यापारी क्षेत्र में डॉलर की बढ़ती मांग पर भी प्रकाश डाला गया है. जुलाई 2025 से, अनिश्चितता के बीच आयातकों और निर्यातकों द्वारा हेजिंग बढ़ाने के कारण फॉरवर्ड बाजार में अतिरिक्त मांग में तेजी से वृद्धि हुई है. व्यापारी बाजार में कुल अतिरिक्त मांग 145 अरब डॉलर तक पहुंच गई, जिसके चलते भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को हस्तक्षेप करना पड़ा.
क्या 2026 में रुपया 87 पर होगा?
इस गिरावट के बाद भी एसबीआई रिसर्च रुपया पर पॉजिटिव बना हुआ है. इसके मार्कोव-स्विचिंग विश्लेषण से पता चलता है कि रुपया लगभग छह महीने बाद मौजूदा गिरावट के दौर से बाहर निकल सकता है. ऐतिहासिक रुझान बताते हैं कि एक बार ऐसा होने पर मुद्रा में उल्लेखनीय सुधार होता है. इसी आधार पर, रिपोर्ट भू-राजनीतिक जोखिमों में कमी और पूंजी प्रवाह में स्थिरता आने की स्थिति में, 2026 में लगभग 6.5% की संभावित वृद्धि का अनुमान है, जो 87 लेवल पर रुपया को पहुंचा देगा.