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क्यों पाला बदलने के लिए RJD से ज्यादा कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे नीतीश कुमार?

बिहार में तीन दिनों के सियासी ड्रामे के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए में शामिल हो गए. उन्होंने महागठबंधन छोड़ने के लिए आरजेडी की जगह कांग्रेस को ज्यादा जिम्मेदार बताया जिसके पीछे कई ऐसे कारण हैं जिसने लोकसभा चुनाव से पहले बिहार और देश के राजनीति समीकरण को ही बदल कर रख दिया है.

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नीतीश ने पाला बदलने के लिए कांग्रेस को ठहराया जिम्मेदार
नीतीश ने पाला बदलने के लिए कांग्रेस को ठहराया जिम्मेदार

बिहार में तीन दिनों से जारी सियासी ड्रामे का अंत हो गया और एक बार फिर नीतीश कुमार एनडीए के खेमे में शामिल हो गए हैं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार के पाला बदलकर एनडीए में शामिल होने के फैसले को इंडिया ब्लॉक के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है. नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने भी इस कदम के लिए लालू की पार्टी आरजेडी को कम और कांग्रेस को ज्यादा जिम्मेदार ठहराया है. 

नीतीश ने कांग्रेस को क्यों जिम्मेदार ठहराया

राजभवन से बाहर आने के बाद जब नीतीश कुमार से महागठबंधन से बाहर जाने का कारण पूछा गया तो उन्होंने प्रत्यक्ष तौर पर आरजेडी पर हमला बोलने की बजाय कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया.

उन्होंने कहा, इस्तीफा देने की नौबत इसलिए आई क्योंकि सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था. हमने कुछ बोलना छोड़ दिया था, सबकी राय आ रही थी, पार्टी की राय थी चारों तरफ से कहा जा रहा था जिसके बाद हमने ये फैसला लिया.

नीतीश कुमार ने इंडिया ब्लॉक को लेकर कहा कि हमने विपक्ष को एकजुट करने में बहुत मेहनत की लेकिन उधर (कांग्रेस) से कुछ हो ही नहीं रहा था. जो गठबंधन बनाया था उसमें भी इधर आकर स्थिति ठीक नहीं लग रही थी. जिस तरह का दावा किया जा रहा था एक पार्टी की तरफ से वो हमलोगों को खराब लग रहा था.

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अब ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नीतीश या जेडीयू ने गठबंधन टूटने के बाद आरजेडी या लालू परिवार पर सीधा हमला बोलने की जगह कांग्रेस को इसके लिए क्यों जिम्मेदार ठहराया. इस रणनीति के पीछे कई अहम कारण हैं.

17 महीने में गिर गई महागठबंधन सरकार

बिहार में साल 2020 में विधानसभा चुनाव होने के बाद अगस्त 2022 में नीतीश कुमार एनडीए का दामन छोड़करआरजेडी,कांग्रेस और लेफ्ट वाले महागठबंधन में शामिल हो गए थे. इसके बाद तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने और राज्य सरकार काम करने लगी. बीते 17 महीने से नीतीश कुमार आराम से राज्य की सत्ता चला रहे थे और इंडिया ब्लॉक को वास्तविक रूप में देने में भी अहम भूमिका निभाई.

महागठबंधन के साथ बीते 17 महीनों के नेतृत्व में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव या आरजेडी कोट के मंत्री ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसको लेकर कोई बवाल या बखेड़ा हो और नीतीश कुमार के लिए असहज स्थिति बने.

महागठबंधन के शासन काल में नीतीश सरकार ने 2 लाख से ज्यादा नौकरियां ही दी जिसमें तेजस्वी की छवि चमकी. अब ऐसे में आरजेडी के साथ 16 महीने सरकार चला चुके नीतीश कुमार गठबंधन तोड़ने के लिए खराब कानून-व्यवस्था या जंगलराज जैसे शब्दावली का प्रयोग नहीं कर सकते थे क्योंकि गृह मंत्रालय और शासन दोनों ही उनके अधीन था. ऐसे में अगर वो इसका ठीकरा आरजेडी पर फोड़ते तो उन्हीं पर सवाल खड़े हो जाते.

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कांग्रेस पर हमले का ये है सबसे बड़ा कारण

आरजेडी पर नीतीश कुमार के ज्यादा हमलावर नहीं होने का दूसरा सबसे बड़ा कारण ये भी है कि एनडीए नीतीश कुमार के जरिए बिहार और देश के लोगों को ये संदेश देना चाहती है कि इंडिया गठबंधन में आपसी नेतृत्व की लड़ाई है और इन्हें देश की नहीं बल्कि अपने-अपने हितों की चिंता है.

चूंकि नीतीश कुमार इंडिया ब्लॉक को अस्तित्व में लाने वाले प्रमुख नेताओं में से एक रहे हैं ऐसे में लोगों के बीच यह संदेश जा सकता है कि जब इसे बनाने वाले नेता ही गठबंधन को छोड़ रहे हैं तो इस गठजोड़ का कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है और लोग एनडीए को ही विकल्प के तौर पर देंखेंगे.

यही वजह है कि महागठबंधन टूटने और नीतीश कुमार के एनडीए के पाले में शामिल होने के बाद जेडीयू महासचिव और मुख्यमंत्री के करीबी केसी त्यागी ने इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कई कारण भी गिनाए. 

क्षेत्रीय दलों को खत्म करना चाहती थी कांग्रेस: जेडीयू

केसी त्यागी ने कहा, कांग्रेस का कॉकस (एक धड़ा) इंडिया गठबंधन के नेतृत्व को हड़पना चाहता था. 19 दिसंबर को अशोका होटल में जो बैठक हुई थी उसमें एक साजिश के तहत इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए खड़गे का नाम सुझाया गया था. इससे पहले मुंबई की बैठक में सर्वसम्मति से तय हुआ था कि किसी का चेहरा आगे किए बगैर ये इंडिया गठबंधन काम करेगा.

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उन्होंने कहा, केजरीवाल के आवास पर जब ममता बनर्जी गई थी तो उन्होंने बाहर आकर प्रेस से कहा था कि किसी का नाम प्रस्तावित नहीं होगा लेकिन कांग्रेस के उसी कॉकस (धड़ा) के द्वारा एक साजिश के तहत ममता बनर्जी के जरिए उनका नाम सुझाया गया. खड़गे ने बाद में उसे खुद ही अस्वीकार कर दिया.

उन्होंने कहा, दरअसल जितने गैर कांग्रेसी क्षेत्रीय दल हैं चाहे बसपा हो, सपा हो, आरजेडी हो, जेडीयू हो चाहे ममता बनर्जी की पार्टी हो चाहे शरद पवार की पार्टी हो, इन सब दलों ने कांग्रेस से लड़कर राजनीति में अपना स्थान बनाया है. कांग्रेस पार्टी अपने सर्वाइल के दौर से गुजर रही है.

पिछले दो चुनाव में नेता प्रतिपक्ष के लायक भी उनके पास सांसद नहीं थे. लिहाजा वो क्षेत्रीय दलों के नेतृत्व को समाप्त करना चाहते हैं जो इनको विकास में रोड़ा हैं. उन्होंने व्यवस्थित तरीके से इस लड़ाई को लंबा खींचने का काम किया जो टिकट बंटवारे को लेकर था.

के सी त्यागी ने इस मौके पर राहुल गांधी की न्याय यात्रा पर भी खूब हमला बोला. उन्होंने कहा कि राहुल की न्याय यात्रा को लेकर कांग्रेस इस तरह का माहौल बना रही है जैसे कि बाकी सहयोगी दल उसके कार्यकर्ता हों. हमको बिहार में उनकी रैली में कब कहां मौजूद रहना है ये हुक्म दिया जा रहा था. यही रवैया बंगाल में ममता बनर्जी को लेकर कांग्रेस का था, जबकि कांग्रेस तमाम दलों के लिए अछूत बन चुकी थी. 

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एनडीए के लिए मजबूत मंच तैयार करना मकसद

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला एनडीए और कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के बीच ही होना है. उससे पहले नीतीश और उनकी पार्टी जिस तरह कांग्रेस पर हमलावर है वो इन चुनावों के लिए एनडीए का मजबूत मंच तैयार कर रहा है.

आरजेडी पर नीतीश सवाल उठाते तो सवाल उनपर भी उठते कि आरजेडी का अतीत जानते हुए और उसके साथ एक बार सरकार चलाने के अनुभव अच्छे न रहने के बावजूद उन्होंने कैसे दूसरी बार तेजस्वी की पार्टी की हाथ मिलाया. इसलिए नीतीश और जेडीयू का पूरा जोर इस पाला बदल के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराने पर है.
 

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