
हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) द्वारा प्रकाशित आंकड़े बिहार की कानून और व्यवस्था की स्थिति की अलग ही कहानी कहते हैं. ये मिश्रित आंकड़े दिखाते हैं कि बिहार में हत्या की घटनाओं की संख्या थोड़ी घट गई है, लेकिन वहीं कुल अपराध दर बढ़ी है.
साल 2001 में बिहार में कुल 3,643 हत्याएं दर्ज की गईं. दो साल बाद यह संख्या बढ़कर 3,771 हो गई. हालांकि, मध्य 2000 के दशक में ये घटकर 2007 तक 3,034 हो गई.

बता दें कि अगले दशक में आंकड़े उतार-चढ़ाव भरे रहे, 2012 में यह 3,566 पर पहुंच गई और 2019 तक अधिकांश वर्षों में 3,000 से ऊपर रही. 2020, यानी महामारी के साल में, 3,150 हत्याएं हुईं, इसके बाद क्रमशः 2021 में 2,799, 2022 में 2,930 और 2023 में 2,862 हत्याएं दर्ज हुईं.
2023 में हत्याओं में यह मामूली गिरावट सत्ताधारी गठबंधन के आत्मविश्वास को बढ़ा सकती है, खासकर अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले.
बिहार में लोग क्यों मारे जाते हैं
2023 के आंकड़े बताते हैं कि रोजमर्रा के झगड़े अक्सर खतरनाक रूप ले लेते हैं. लगभग हर चार में से एक हत्या (703 मामले) व्यक्तिगत दुश्मनी या बैर के कारण हुई. संपत्ति या जमीन के विवादों के चलते 500 हत्याएं हुईं, जबकि पारिवारिक झगड़ों में 345 लोगों की जान गई.
अन्य प्रमुख कारणों में प्रेम संबंध (259), आर्थिक लाभ (238) और पैसों के विवाद (160) शामिल हैं. दहेज के कारण होने वाली मौतें, हालांकि पिछली दशकों की तुलना में कम हुईं, फिर भी 91 लोगों की जान ले गईं.

दिलचस्प बात यह है कि 2023 में राजनीतिक कारणों से होने वाली हत्याएं बहुत कम रहीं, केवल दो मामले दर्ज हुए. जातिवाद (9), जादू-टोना (7) और सांप्रदायिक या धार्मिक कारण (1) से जुड़ी हत्याएं भी अन्य कारणों की तुलना में बहुत कम थीं.
राज्य में क्या है अपराध दर
जहां हत्या की संख्या सबसे गंभीर अपराध को दर्शाती है, वहीं कुल अपराध दर राहत का संकेत नहीं देती. बिहार में प्रति लाख आबादी अपराध दर 2013 में 183.7 थी, जो 2014 में बढ़कर 191.3 और 2015 में 189.5 रही. 2016 में अचानक तेज़ उछाल आया और दर 281.9 तक पहुंच गई. इसके बाद कुछ सालों में यह कम हुई, लेकिन ऊँचे स्तर पर बनी रही. 2019 में यह 224 थी, जबकि कोविड-19 महामारी के दौरान 2020 में यह 211.3 पर आ गई.
इसके बाद कुल प्रवृत्ति फिर से ऊपर की ओर बढ़ी: 2021 में 228, 2022 में 277.1 और 2023 में 277.5 रही. वृद्धि मामूली रही है. इतिहास में अपराध के आंकड़े बिहार के राजनीतिक चर्चा का हिस्सा रहे हैं. जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता है, राजनीतिक पार्टियां अपनी प्रचार रणनीतियों को मजबूत करने के लिए कुछ चुने हुए अपराध आंकड़ों का हवाला दे सकती हैं.