कुदरत...कितने रंगों से भरी हुई, रहस्यमय उथल-पुथल का केंद्र और उससे भी अधिक उत्सुकता जगाने वाली घटनाएं. प्रकृति अपने भीतर न जाने कितना कुछ समेटे हुए है, जिन्हें इंसानी दो आंखों से देखा जा पाना तो नामुमकिन ही है. गीता में श्रीकृष्ण भी तो अर्जुन से यही कह रहे हैं, 'न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा, दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्।।' यानी अर्जुन! मेरे विराट स्वरूप को तुम इन दो आंखों से नहीं देख सकते, इसलिए मैं तुम्हें दिव्य दृष्टि देता हूं, अब इन आंखों से मुझे देखो.
प्रकृति की जुबानी सुनाती कलाकृतियां
प्रकृति जो खुद ब्रह्म का ही एक स्वरूप बन जाती है, उसके विविध रंगों को सामने रखने का जिम्मा उठाते हैं रंग भरी कूचीयों को थामने वाले हाथ. बीते दिनों इंडिया इंटरनेशन सेंटर की आर्ट गैलरी ऐसी ही कला की साक्षी बनी, जहां कुदरत के तमाम रंगों को कलाकार ने अपनी नजरों से परख कर, उन्हें संवार कर फिर हमाने सामने परोसा था. इस तरह प्रकृति को देख पाने की कितनी ही सहज अभिव्यक्ति हो सकती है, सुप्रिया सात्थे (Supriya Sathe) की कलाकृतियां प्रकृति दर्शन की सुंदर बानगी हैं.
कैनवस पर जंगल कि विविधता
नई दिल्ली IIC के कमलादेवी कॉम्प्लेक्स में कलाकार सुप्रिया सात्थे की एकल प्रदर्शनी “ए ल्युनेटिक इन द वुड्स” ने प्रकृति के ऐसे ही विहंगम दृश्य रचे. इस प्रदर्शनी में सुप्रिया की 48 ऐक्रेलिक पेंटिग्स शामिल रहीं, और इन कृतियों में धरती के शांत नीरव जंगल, पेड़ों पर फैली खूबसूरत चांदनी, कहीं दूर आकाश में तमाम ग्रह-उपग्रहों का सुंदर सामंजस्य और उनकी दुनिया का काल्पनिक रेखाचित्र, एक-साथ नजर आता है. पशुओं के भीतर बसी नितांत शांति, जंगल के भरे-पूरे सघन घनत्व के बीच भी जमा अकेलापन तो कहीं इस अकेलेपन में भी उत्सवी आनंद. एक-एक तस्वीर के देखिए और ठहरकर सोचिए कि क्या जीवन वाकई इतनी विविधताओं से भरा हुआ है?

जीवन में झलकते कुदरत के रंग
यह विविधता सिर्फ पेंटिंग के भीतर नहीं हैं, इन्हें निहारते हुए जब आप आगे बढ़ते हैं तो ये हमारे भीतरी आनंद को उकेर कर सामने ले आती हैं. एक्रेलिक पेंटिंग भले ही सुंदर रंगों के साथ कैनवस बिखेरे गए योजनाबद्ध धब्बे की तरह हैं, हो सकता है कि कलाकार आपको वृक्ष, ताल, पक्षियों का संगीत और दूर कहीं शांत जंगल के बाहर किसी वृक्ष की छाया में बसी अस्थायी गृहस्थी का चित्र उकेरे, लेकिन देखने वाले की आंखों में एक निजी स्वतंत्रता भी होती है कि वह उसमें अपनी ही कल्पना निहार सकता है, अपने तरीके से व्याख्या कर सकता है और अपने ही अनुसार छवि भी गढ़ सकता है. और इसी खूबसूरत बिंदु पर आकर सुप्रिया की सजाई कलाकृतियों का खूबसूरत नाम 'A Lunatic in the Woods' (जंगल में एक मतवाला) सार्थक हो जाता है. यही कलाकार और कलाकृति का सबसे ऊंचा आयाम है.
क्या कहती हैं सुप्रिया सात्थे
सुप्रिया की अपनी बात में भी उनकी कलाकृतियों का ये भाव जाहिर होता है. वह कहती हैं , '48 तस्वीरों का यह संग्रह वास्तव में देखने की हमारी सहूलियत और देख पाने की क्षमता के बारे में है. उस अद्भुत शांति और सौंदर्य को देखने की क्षमता जो हमारे आस-पास हमारे डेली रुटीन वाली जिंदगी में मौजूद हैं. बशर्ते हम रुककर उन्हें सचमुच देखें.' जैसे आप घर से बाहर निकलें और निहारें क्यारियों में खिले सुंदर सदाबहार के फूलों को जो बड़ी ही नजाकत के साथ हवा के रुहानी झोंकें में झूलते नजर आते हैं. या हम देखकर महसूस कर सकें उस एक दृश्य को जब उड़ती हुई कोई चिड़िया किसी तार पर यूं ही बैठ जाती है या फिर चीटियों की कतार से हमारा सामना हो जाता है. इन सबको देख पाना, इस देख पाने की आजादी को महसूस कर पाना और प्रकृति की इस अनोखी रंगत को समझ पाना ही हमारी उत्सुकता और मतवाला पन है. यही है वो, जो हममें-हमारी जिंदगी में रंग भरता है.

ऐक्रेलिक पेंटिंग्स में बनाई पहचान
1985 में जन्मी और गुरुग्राम की सुप्रिया सात्थे ऐक्रेलिक पेंटिंग्स में अपनी खास पहचान बना चुकी हैं. उनके चित्र गहरे रंगों, बनावट और कल्पनाशील परिदृश्यों के लिए जाने जाते हैं. समुद्र, पर्वत और वन—प्रकृति के इन शांत और सुकून देने वाले अनुभवों से ही उन्हें प्रेरणा मिलती है. सुप्रिया की कृतियां भारत, ब्रिटेन और अमेरिका की अनेक प्रतिष्ठित आर्ट गैलरी में प्रदर्शित हो चुकी हैं, जिनमें ललित कला अकादमी, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नेहरू सेंटर (लंदन) और आर्टेरी फाइन आर्ट्स (शिकागो) प्रमुख हैं. “ए ल्युनेटिक इन द वुड्स” उनकी नवीनतम प्रस्तुति रही जो धरती और आकाश, वास्तविकता और कल्पना के बीच एक सेतु जैसी बनाती नजर आती है.