देव के उठने या यूं कह लें कि भगवान विष्णु के जागते ही लगन का दौर शुरू हो गया है. बैंड बाजे बज रहे हैं, मंगलगीत गाए जा रहे हैं और रीति-रिवाजों के साथ विवाह संपन्न हो रहे हैं. इस तरह बीते चार महीनों से शादी-ब्याह के जो आयोजन रुके हुए थे, वह धड़ल्ले से जारी हैं. हालांकि अब हिंदू विवाह रीति में बहुत से रिवाज ऐसे हैं जो भुला दिए जा रहे हैं और समय के अभाव और जल्दी-जल्दी कार्यक्रम निपटाने के चक्कर में उनका पालन भी नहीं हो पा रहा है.
इन तमाम रिवाजों में से एक है नक्षत्र दर्शन... जब विवाह संपन्न हो जाता है और वर-वधु फेरे लेने के बाद कन्या के घर में बने कोहबर में जाते हैं तो वहां की रस्म पूरी करने के बाद कन्या के घर की कोई बुजुर्ग महिला वर-वधु को नक्षत्र दर्शन कराती हैं. नक्षत्र दर्शन में तीन नक्षत्र प्रमुख हैं, पहला तो स्वाति नक्षत्र, दूसरा अरुंधति नक्षत्र और तीसरा ध्रुव तारा दर्शन
ये तीनों ही नक्षत्र वैवाहिक जीवन के लिए आशीर्वाद हैं और वर-कन्या को सुदृढ़, अटल और मजबूत वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं. ये तीनों ही नक्षत्र वर-कन्या को एक-दूसरे के प्रति विश्वास की प्रेरणा देते हैं.
जहां उत्तर भारत में स्वाति नक्षत्र और ध्रुव तारा दर्शन का बहुत महत्व है, तो वहीं दक्षिण भारत में अरुंधति नक्षत्र के दर्शन का बहुत महत्व है और यहां विवाह, जिसे मंगल कल्याणम् कहते हैं, उसके बाद नक्षत्र दर्शन एक जरूरी रीति मानी गई है. दक्षिण भारतीय इस परंपरा को बचाए हुए हैं.

स्वाति नक्षत्र दर्शन का महत्व
विवाह में स्वाति नक्षत्र दर्शन के दो मुख्य प्रभाव होते हैं. यह अनुकूलता और संतुलन को दर्शाता है. यह लचीलापन और स्वतंत्र स्वभाव के कारण रिश्ते में चुनौतियों का सामना करने का संकेत देता है. इस नक्षत्र का दर्शन वर-कन्या को सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है.
जरूरी नहीं है कि विवाह के समय स्वाति नक्षत्र की मौजूदगी हो ही, क्योंकि यह हर महीने अलग-अलग समय प्रकट होता है. इसलिए अगर विवाह के समय स्वाति नक्षत्र नहीं है तो वर-कन्या को ध्रुव तारे का दर्शन कराया जाता है.
ध्रुव तारे के दर्शन का महत्व
विवाह में ध्रुव तारे के दर्शन का भी बहुत महत्व है. यह पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में स्थिरता, स्थायित्व और शाश्वत प्रेम का प्रतीक है. जिस तरह ध्रुव तारा आकाश में स्थिर रहता है, उसी तरह यह नये जोड़े में विश्वास दिलाता है कि उनका प्रेम और सौभाग्य भी जीवन भर स्थिर बना रहेगा.
यह रस्म सात फेरों के बाद ही होती है, जो विवाह के संपन्न होने का संकेत है और यह नवविवाहित जोड़े को एक-दूसरे के प्रति जिम्मेदारियों को समझने और उन्हें निभाने के लिए प्रेरित करती है. उत्तर भारत में ध्रुव तारे के दर्शन का काफी चलन है, और लोग इसके बारे में ही जानते हैं. बिहार के मिथिला क्षेत्र में और उत्तर प्रदेश में भी कई अंचलों में ध्रुव तारे के दर्शन का बहुत महत्व है.
अरुंधति नक्षत्र के दर्शन का महत्व
अब जब दक्षिण की तरफ देखेंगे तो विवाह समारोहों के दौरान बहुत सारी तब्दीली देखने को मिलने लगती है. इन्हीं में एक है नक्षत्र दर्शन, जो एक जरूरी रस्म मानी गई है. कन्या के घरवाले वर-वधू को सप्तर्षि मंडल में शामिल और इसके साथ एक जुड़वा तारे को दिखाते हैं और यही अरुंधति नक्षत्र है.
जो तारा सप्तर्षि मंडल में शामिल है, उसका नाम वशिष्ठ है, जो ऋषि वशिष्ठ का प्रतीक है और इससे ही थोड़े ऊपर बिल्कुल सामने जो एक बिंदुमान तारा है वह है अरुंधति, जो ऋषि वशिष्ठ की पत्नी देवी अरुंधति का प्रतीक है. वशिष्ठ और देवी अरुंधति का यही अटल साथ और सनातन गठबंधन विवाह की स्थिरता का प्रतीक बन जाता है.
ऋषि वशिष्ठ और देवी अरुंधति एक आदर्श दंपती रहे हैं. जो वैवाहिक पूर्णता और ईमानदारी का प्रतीक हैं. यह रस्म सप्तपदी की रस्म के तुरंत बाद की जाती है.
अरुंधति नक्षत्र दर्शन का क्या कारण है?
सप्तर्षि मंडल में सात तारे हैं - क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरस, वशिष्ठ, और मरीचि. सप्तर्षि मंडल के सात तारों में छठवां तारा है वशिष्ठ जो ऋषि वशिष्ठ का प्रतीक है. इसी के निकट एक और तारा है, जिसका नाम अरुंधति है. ये दोनों एक-दूसरे के इतने निकट रहते हैं जैसे पति-पत्नी.
कल्याणम् (विवाह) के ठीक बाद पुरोहित नवविवाहित जोड़े को इस नक्षत्र की ओर देखने को कहते हैं, जो दांपत्य प्रेम और स्नेह का प्रतीक है. यह सिखाता है कि पति-पत्नी को हर काम में तालमेल रखना चाहिए. साथ ही, यह दर्शाता है कि पति को अपनी पत्नी के आसपास की हर घटना पर नजर रखनी चाहिए.
अरुंधति कौन थीं?
अरुंधति नक्षत्र का नाम एक लोककथा से लिया गया है. पुराणों के अनुसार, अरुंधति कश्यप की पुत्री, नारद और पर्वत की बहन थीं. उनका विवाह वशिष्ठ मुनि से हुआ और वे एक आदर्श वैवाहिक जीवन जी रही थीं. दोनों ही एक-दूसरे के प्रति समर्पित थे. अरुंधति पतिव्रताओं में से एक थीं और पत्नी के समर्पण और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती हैं.
वे अपने पति की सेवा में असाधारण थीं और एक सिद्ध नारी होकर अन्य महिलाओं के लिए अनुकरणीय बनीं. संस्कृत में 'अरुंधति' शब्द का अर्थ है 'सूर्य की किरणों सा तेज धारण करने वाली'.
अरुंधति नक्षत्र की पौराणिक कहानी
पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि, एक बार अग्निदेव कामातुर हो गए और सप्तर्षियों की पत्नियों की ओर बढ़ने लगे. उनके इस कृत्य को जानकर और अग्निदेव को दूषित होने बचाने के लिए उनकी पत्नी स्वाहा ने एक योजना बनाई. उन्होंने अपने तपोबल से हर ऋषि की पत्नी का तेज ग्रहण कर उनके जैसा स्वरूप बनाया और अग्निदेव के सामने प्रस्तुत हो गईं.
इस तरह अग्निदेव ने छह बार अपनी ही पत्नी स्वाहा के साथ ही सहवास किया. इस तरह ऋषि पत्नियों के शील की रक्षा हुई. लेकिन, जैसे ही अग्निदेव अरुंधति की ओर बढ़ने लगे, तब स्वाहा की योजना विफल होने लगी, क्योंकि अरुंधति इतनी पवित्र और पतिव्रता थीं कि कोई उनका झूठा नाम लेकर भी किसी पर पुरुष को स्पर्श नहीं कर सकता था.
इसलिए स्वाहा बहुत कोशिश के बाद भी अरुंधति देवी का रूप नहीं ग्रहण कर पा रही थीं. तब जब अग्निदेव उनकी ओर बढ़े तो देवी के सतीत्व के तेज के आगे उनकी ही अग्नि मंद पड़ने लगी और उनका अहंकार नष्ट हो गया. देवी अरुंधति का अपने पति के प्रति समर्पण और भक्ति अत्यंत पवित्र थी.
जब सातों ऋषियों को यह बात पता चली, तो उन्होंने अपनी पत्नियों की पवित्रता पर संदेह किया और उनसे अलग हो गए, लेकिन वशिष्ठ ऋषि ने अपनी पत्नी के विषय में ऐसा कुछ नहीं सोचा और उनका अरुंधति पर विश्वास कायम रहा. इसलिए, नव दंपती विवाह के ठीक बाद अरुंधति नक्षत्र के दर्शन करते हैं.
अरुंधति नक्षत्र के पीछे एक खगोलीय सत्य भी है. वशिष्ठ और अरुंधति के खगोलीय नाम क्रमशः मिज़ार और अल्कोर हैं. सप्तर्षि मंडल में ये एक-दूसरे के निकट स्थित हैं. इसे बिग डिपर के नाम से भी जाना जाता है. टेलीस्कोप से इन तारों को देखने पर अल्कोर को मिज़ार के पास एक छोटी बिंदु के रूप में देखा जाता है. इन्हें कभी-कभी 'घोड़ा और सवार' कहा जाता है. मिज़ार और अल्कोर (वशिष्ठ और अरुंधति) डबल यानी जुड़ुवां तारा हैं.
महान वैज्ञानिक गैलीलियो ने इसे खोजा और दावा किया कि दोनों तारे एक साथ एक गति से घूम रहे हैं. वे ब्रह्मांड में एक साथ कक्षा घूमते हैं. इसलिए, यह जुड़वां तारा पति-पत्नी के बंधन का प्रतीक हैं. यह दर्शाता है कि एक-दूसरे का समर्थन करके साझा लक्ष्य तक पहुंचना चाहिए, न कि एक-दूसरे पर हावी होकर. इस तरह नक्षत्र दर्शन की यह रस्म न केवल सांस्कृतिक महत्व रखती है, बल्कि विज्ञान और आध्यात्मिकता का सुंदर संगम भी है, जो नवविवाहित जोड़े को जीवन भर के पवित्र बंधन की याद दिलाती है.