राजधानी दिल्ली में भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत को समर्पित विशेष संध्या को आयोजन किया गया. यह सिर्फ सुर-लय और ताल को समर्पित आयोजन नहीं था, बल्कि यह शास्त्रीय परंपरा को नमन करने, उसे सम्मानित करने और सच्चे श्रद्धासुमन के अर्पण का कार्यक्रम था. मौका था गुरु कुंदनलाल गंगानी फाउंडेशन द्वारा कार्यक्रम 'श्रद्धांजलि परंपरा को' जिसमें जयपुर घराने की अमर परंपरा और गुरुजी के योगदान को ससम्मान स्मरण किया गया.
इस दौरान पहली बार, पंडित कुंदनलाल गंगानी पुरस्कार दिया गया. जिसे इस वर्ष पद्म विभूषण उस्ताद अमजद अली खान को दिया गया. पुरस्कार ग्रहण करते हुए उन्होंने कहा, 'गुरु कुंदनलाल गंगानीजी की परंपरा ने कथक को जिस ऊंचाई पर पहुंचाया, वह आज भी विश्वभर में अप्रतीम है.”

भारतीय शास्त्रीय परंपरा का दीप स्तंभ हैं गुरु कुंदनलाल गंगानी
कार्यक्रम में नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद पॉल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे. उन्होंने गुरु कुंदनलाल गंगानी को भारतीय शास्त्रीय परंपरा का दीप स्तंभ बताया और उनके योगदान को नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत कहा. संध्या में अनेक प्रतिष्ठित कलाकारों ने गुरुजी को अपनी कला के माध्यम से श्रद्धांजलि दी. पं. राजेन्द्र गंगानी ने कथक नृत्य से गुरु के प्रति भावनात्मक अभिव्यक्ति दी, जिसमें लय और भाव की उत्कृष्टता झलकती रही. वहीं, पं. फतेह सिंह गंगानी की तबला प्रस्तुति की थाप में उनके गुरुजी की सीख और आत्मीयता का स्पर्श दिखाई दिया.
उस्ताद अमान अली बंगश ने दी भावपूर्ण प्रस्तुति
उस्ताद अमान अली बंगश ने सरोद पर भावपूर्ण रचना प्रस्तुत की, जिसमें उनके साथ शुभ महाराज और निशित गंगानी ने तबले पर संगत की. कलाकारों ने मंच से अपने अनुभव भी साझा किए. पं. राजेन्द्र गंगानी ने इसे “पूजा के समान” बताया, जबकि पं. फतेह सिंह गंगानी ने कहा, “हर ताल में गुरुजी की प्रेरणा है.” उस्ताद अमान अली बंगश ने कहा, “गुरुजी की सादगी और गहराई आज भी प्रेरणा देती है.”

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में संगीत-प्रेमियों, कलाकारों, छात्रों और शिष्यों की मौजूदगी रही. यह आयोजन न केवल एक सांस्कृतिक संध्या था, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा, कला और स्मृति का समर्पित उत्सव भी रहा. गुरु कुंदनलाल गंगानी फाउंडेशन भारतीय शास्त्रीय कलाओं के संवर्धन के लिए कार्य कर रहा है, जो युवा पीढ़ियों को इस समृद्ध परंपरा से जोड़ने का माध्यम बनता जा रहा है. ‘श्रद्धांजलि परंपरा को’ केवल स्मरण नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा बनकर उभरा.