ट्रंप-जिनपिंग दोनों से गलबहियां...पाक को भारी ने पड़ जाएं शहबाज-मुनीर की जोड़ी के ये पैंतरे

पाकिस्तान अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है. इसके साथ ही वो अपने कथित सदाबहार दोस्त चीन से भी फायदा उठा रहा है. एक्सपर्ट्स चेता रहे हैं कि दोनों वर्ल्ड पावर्स को लुभाने की पाकिस्तान की पैंतरेबाजी खतरनाक साबित हो सकती है.

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पाकिस्तीन अमेरिका और चीन दोनों से फायदा उठाने की कोशिश में है (Photo: AI Generated) पाकिस्तीन अमेरिका और चीन दोनों से फायदा उठाने की कोशिश में है (Photo: AI Generated)

सुशीम मुकुल

  • नई दिल्ली,
  • 24 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST

चीन का 'आयरन फ्रेंड' कहलाने वाला पाकिस्तान अब खुलकर अमेरिका की गोद में बैठा नजर आ रहा है. यह बात अब सरेआम दिख रही है और इसके काफी सबूत भी मौजूद हैं. पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर का व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ लंच करना, ट्रंप को पाकिस्तान आने का न्योता देना, बलूचिस्तान में अमेरिकी कंपनियों को क्रिप्टो, तेल और खनिजों तक पहुंच देने का प्रस्ताव रखना, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और मुनीर का भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर में ट्रंप की भूमिका की तारीफ करना, यहां तक कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट करना- ये सब इस बदलाव के बड़े संकेत हैं.

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लेकिन पाकिस्तान की पुरानी आदतें नहीं बदलीं. वह अभी भी दोनों ताकतों- अमेरिका और चीन के साथ दोहरी चाल चल रहा है.

विश्लेषकों का मानना है कि यह दोहरा खेल पाकिस्तान को 21वीं सदी के नए ग्लोबल ऑर्डर में एक जंग का मैदान बना सकता है.

पाकिस्तान की दोमुंही नीति

लेकिन पाकिस्तान चीन और अमेरिका दोनों को एक साथ साधने के अपने रुख को छिपा भी नहीं रहा है. पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ ने हाल ही में साफ शब्दों में कहा कि CPEC 2 (चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर का दूसरा चरण) पाकिस्तान की चीन से आर्थिक मदद हासिल करने की अंतिम कोशिश बची रह गई है.

लेकिन चीन अब पाकिस्तान को सिर्फ एक ऐसे देश की तरह देखता है जो उसके पैसों पर पल रहा है. असली सवाल यह है कि चीन कब तक शरीफ और मुनीर की अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ बढ़ती नजदीकियों को बर्दाश्त करेगा.

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जहां अमेरिका पाकिस्तान के चीन से दशकों पुराने संबंधों को नजरअंदाज कर सकता है, वहीं चीन के लिए यह 'दोगलापन' बेहद खतरनाक है. चीन पाकिस्तान का सबसे बड़ा निवेशक और हथियार आपूर्तिकर्ता है.

द ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) की फेलो अंतरा घोषाल सिंह ने जुलाई में लिखे अपने एक लेख में कहा था, 'चीन के विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तानी फौजियों ने भले ही चीन के लड़ाकू विमानों से अपने आसमान की रक्षा की हो, लेकिन इसका श्रेय अंत में अमेरिका को दे दिया गया. यह चीन के लिए बेहद असहज स्थिति है.'

अमेरिका-चीन के जंग का अखाड़ा बनेगा अफगानिस्तान 

भारतीय सेना में मेजर रहे नई दिल्ली स्थित IDSA के फेलो मेजर जनरल मंदीप सिंह (रिटायर्ड) कहते हैं, 'पाकिस्तान दो मुश्किलों के बीच फंसा हुआ है. अमेरिका अब अफगानिस्तान में दोबारा लौटना चाहता है और इसके लिए वो पाकिस्तान का इस्तेमाल करेगा. वहीं, चीन अफगानिस्तान में अमेरिकी वापसी को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा.'

चीन ने 2021 में अमेरिका के बगराम एयरबेस छोड़ने के बाद वहां के खनिज संसाधनों पर नजर गड़ाई थी और CPEC का एक हिस्सा अफगानिस्तान में भी ले जाने की प्लानिंग कर रहा है. अब अगर ट्रंप बगराम एयरबेस को दोबारा कंट्रोल करने में सफल हो जाते हैं तो यह चीन और अमेरिका के बीच सीधे टकराव का कारण बन सकता है. ऐसे में पाकिस्तान दो वर्ल्ड पावर्स के बीच बुरी तरह फंस जाएगा.

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ट्रंप-मुनीर की बढ़ती दोस्ती और नोबेल नॉमिनेशन

भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद जनरल असीम मुनीर ने जून में व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ डिनर किया. यह कुछ ही महीनों में उनकी दूसरी हाई-लेवल अमेरिकी यात्रा थी. इसके तुरंत बाद पाकिस्तान ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट कर दिया. पाकिस्तान ने तर्क दिया कि ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच चार दिन तक चले मिनी-वार को रोका और सीजफायर कराया.

आर्थिक रूप से पाकिस्तान ने अमेरिका को बलूचिस्तान के रेयर अर्थ मिनरल्स, तांबा, लिथियम, तेल और ब्लॉकचेन में निवेश के मौके दिए हैं. यह प्रस्ताव ट्रंप के परिवार से जुड़े वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल के साथ पार्टनरशिप के रूप में पेश किया गया, जिससे पाकिस्तान को क्रिप्टो हब के रूप में उभरने में मदद मिल सके.

पाकिस्तान के हालिया कदम और संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान होने वाली ट्रंप-शरीफ बैठक यह संकेत देती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ा पाकिस्तान अपनी इस स्थिति को खत्म करने के लिए दूसरों को लुभाने की कूटनीति अपना रहा है.

लेकिन यह रुख चीन के हितों से सीधा टकराता है. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन पाकिस्तान को अपना 'आयरन ब्रदर' मानता है और उसने CPEC में 62 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है. अमेरिका के साथ पाकिस्तान की नजदीकी CPEC को कमजोर कर सकती है.

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पाकिस्तान से चीन की नाराजगी

इसके साथ ही जब पाकिस्तान ने अपनी हालिया उपलब्धियों का श्रेय अमेरिका को दिया तो चीनी विश्लेषकों ने इसकी काफी आलोचना की. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में घोषणा की कि कृषि, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) और खनिज संसाधनों पर केंद्रित CPEC 2 पाकिस्तान के लिए चीन की मदद पाने का आखिरी मौका है.

यह बयान पाकिस्तान की बेचैनी और मजबूरी दिखाता है. लेकिन इसके चलते चीन नाराज हो सकता है, जो पाकिस्तान को अरब सागर तक BRI (Belt and Road Initiative) की पहुंच के लिए अपने अधीन काम करने वाले साझेदार की तरह देखता है. अफगानिस्तान का मुद्दा इस टकराव को और बढ़ाता है.

अमेरिका के 2021 में अफगानिस्तान से बाहर निकलने के बाद चीन की नजर वहां के खनिज संसाधनों पर थी. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने न सिर्फ अफगानिस्तान में CPEC के विस्तार की योजना बनाई, बल्कि उन्होंने अफगानिस्तान तालिबान के साथ कनेक्टिविटी और आतंकवाद-रोधी समझौते भी किए.

रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रिटायर्ड) मंदीप सिंह चेतावनी देते हैं कि 'अब डोनाल्ड ट्रंप की बगराम एयरबेस पर फिर से कंट्रोल की प्लानिंग चीन के लिए खतरे की घंटी है. यह एयरबेस चीन के परमाणु ठिकानों के बेहद करीब है और वहां अमेरिकी मौजूदगी चीन के क्षेत्रीय वर्चस्व की महत्वाकांक्षा को सीधी चुनौती दे सकती है. वो कहते हैं कि बगराम को लेकर चीन और अमेरिका की खींचतान बड़े टकराव का कारण बन सकता है.

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चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाने में पाकिस्तान का फायदा

फिलहाल, यह सही है कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता तनाव तुरंत किसी बड़े टकराव में नहीं बदलेगा. कुछ पश्चिमी और पाकिस्तानी विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों की पाकिस्तान से अपेक्षाएं अलग-अलग हैं.

पूर्व पाकिस्तानी राजदूत मलीहा लोधी ने जर्मन ब्रॉडकास्टर DW से बात करते हुए कहा, 'पाकिस्तान के अमेरिका और चीन से रिश्ते बिल्कुल अलग हैं. अमेरिका पाकिस्तान के कुछ हितों को पूरा करता है, लेकिन पाकिस्तान के भविष्य के लिए चीन बेहद अहम है.'

दक्षिण एशियाई भू-राजनीति के अमेरिकी विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन कहते हैं, 'ट्रंप प्रशासन ने पाकिस्तान का काम आसान कर दिया है. यह काफी हैरान करने वाला रहा है कि ट्रंप की टीम पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने और व्यापार आगे ले जाने के लिए उत्सुक है. ये रिश्ते चीन के साथ पाकिस्तान के संबंधों से काफी अलग हैं. यही संतुलन की कुंजी है. असल फायदा इस बात में है कि अमेरिका और चीन की पाकिस्तान से उम्मीदें अलग-अलग हैं.'

पाकिस्तान को खतरे में डाल देगी उसकी पैंतरेबाजी

हालांकि, लंबी अवधि में पाकिस्तान की यह पैंतरेबाजी उसे खतरे में डाल सकती है. अमेरिका की नजर बलूचिस्तान के रेयर अर्थ मिनरल्स पर है, जिनके भंडार बहुत बड़े नहीं हैं, जबकि चीन CPEC के जरिए पाकिस्तान से ऊर्जा सुरक्षा, इंफ्रास्ट्रक्चर और बिजनेस चाहता है.

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बलूचिस्तान में चीन के बनाए गए इंफ्रास्ट्रक्चर और वहां मौजूद चीनी नागरिकों, यहां तक कि पाकिस्तानी सरकारी कर्मचारियों तक को, बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और अन्य अलगाववादी संगठनों ने बार-बार निशाना बनाया है.

अमेरिका की तरफ पाकिस्तान का झुकाव चीन के लिए खतरा

ORF की फेलो अंतरा घोषाल सिंह के अनुसार, कई चीनी विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिका के प्रति पाकिस्तान की अचानक बढ़ी गर्मजोशी चीन के लिए कई तरह के खतरे पैदा कर रही है. कुछ विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि पाकिस्तान में इन दो महाशक्तियों का टकराव युद्ध का कारण बन सकता है.

चीनी विशेषज्ञों को सबसे ज्यादा चिंता है कि अमेरिका 62 अरब डॉलर के CPEC, खासतौर पर ग्वादर पोर्ट, में घुसपैठ कर सकता है. ग्वादर पोर्ट को चीन CPEC प्रोजेक्ट की लाइफलाइन मानता है.

कुछ चीनी विश्लेषकों को शक है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर के साथ सीक्रेट बातचीत में ट्रंप ने मई में हुए भारत-पाकिस्तान के छोटे युद्ध से जुड़े संवेदनशील चीनी सैन्य खुफिया डॉक्यूमेंट मांगे होंगे.

चिंता इस बात की भी है कि अमेरिका, पाकिस्तान को ईरान से दूर करने की कोशिश कर रहा है, जिससे चीन की मध्य पूर्व नीति को बड़ा झटका लग सकता है.

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साथ ही पाकिस्तान-अमेरिका की क्रिप्टोकरेंसी पार्टनरशिप भी चीन के लिए समस्या है, क्योंकि यह RMB (चीन की मुद्रा युआन) की सेटलमेंट भूमिका को कमजोर कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान में चीन का वास्तविक आर्थिक निवेश कम हो सकता है.

चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का यह रवैया चीन के लिए 'पीठ में छुरा घोंपने' जैसा है और इससे दोनों देशों के बीच मौजूद गहरे रणनीतिक भरोसे की नींव हिल सकती है.

'दोनों तरफ खेल रहा पाकिस्तान'

भू-राजनीतिक विश्लेषक एसएल कांथन के मुताबिक, पाकिस्तान अमेरिका और चीन दोनों से छूट और रियायतें लेने के लिए लगातार बीच का रास्ता अपनाएगा, लेकिन जिस दिन अमेरिका और चीन के बीच निर्णायक युद्ध होगा, उस दिन उसे एक तरफ चुनना ही पड़ेगा.

उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर किए गए एक पोस्ट में कहा, 'पाकिस्तान चीन के प्रभाव क्षेत्र से निकलने की तैयारी कर रहा है. लेकिन जब तक निर्णायक क्षण नहीं आता यानी अमेरिका-चीन युद्ध की कगार पर नहीं आ जाते, तब तक पाकिस्तान दोनों महाशक्तियों से फायदा उठाता रहेगा और उनके बीच बैठकर सौदेबाजी करता रहेगा.'

वहीं, पाकिस्तानी सेना के पूर्व अधिकारी और अब पत्रकार आदिल राजा ने चेतावनी दी, 'यह सोचना बेहद भोलापान होगा कि चीन अमेरिका को अपने बैकयार्ड यानी पाकिस्तान में आराम से गेम खेलने देगा.'

इस्लामाबाद का यह दोहरा खेल- यानी एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ चीन, अंत में एक ऐसे विस्फोटक संघर्ष में बदल सकता है जो पाकिस्तान के लिए बिल्कुल फायदेमंद नहीं होगा. 

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