'मुल्लाओं देश छोड़ो, तानाशाह की कब्र खुदेगी...', ईरान में शुरू हुआ अमेरिका-इजरायल का फाइनल गेम?

ईरान में एक बार फिर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं. गिरती अर्थव्यवस्था, रियाल की ऐतिहासिक गिरावट और महंगाई से त्रस्त लोग धार्मिक शासन के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं. इस बीच अमेरिका, इजरायल की नीतियों की चर्चा भी तेज है.

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इजरायली पीएम नेतन्याहू ईरान पर हमले के लिए ट्रंप को मनाने की जद्दोजहद में जुटे हैं. (Photo- ITG) इजरायली पीएम नेतन्याहू ईरान पर हमले के लिए ट्रंप को मनाने की जद्दोजहद में जुटे हैं. (Photo- ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:54 AM IST

हाल ही में ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान ने चेतावनी दी थी कि अमेरिका, इजरायल और यूरोपीय देश ईरान में अशांति फैलने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि वे अपने हमलों को सही ठहरा सकें. अब हालात ऐसे बनते दिख रहे हैं कि देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. लोग सड़कों पर उतरकर सरकार और धार्मिक नेतृत्व के खिलाफ "मुल्लाओं को ईरान छोड़ना होगा" और "तानाशाही मुर्दाबाद" जैसे नारे लगा रहे हैं.

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सोशल मीडिया पर कई वीडियोज सामने आए हैं, जिनमें लोग एकजुट होकर इस्लामिक रिपब्लिक के खिलाफ आवाज उठाते दिख रहे हैं. उनका कहना है कि यह उन लोगों की आवाज है जो अब मौजूदा व्यवस्था से पूरी तरह थक चुके हैं.

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करीब 9.2 करोड़ आबादी वाले ईरान में हालात लगातार बिगड़ रहे हैं. देश गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है. ईरानी मुद्रा रियाल डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच चुकी है. इससे खाने-पीने की चीजें, दवाइयां और रोजमर्रा का सामान आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गया है. इसी आर्थिक दबाव ने लोगों के गुस्से को और भड़का दिया है.

तीन साल में ईरान में सबसे बड़ा प्रदर्शन

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यह बीते तीन सालों में ईरान का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन माना जा रहा है. इससे पहले 2022-23 में महसा अमीनी की मौत के बाद पूरे देश में आंदोलन हुआ था, जिसे सरकार ने सख्ती से दबा दिया था. इस बार भी तेहरान, मशहद, शिराज और इस्फहान जैसे शहरों में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें हुई हैं. पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया.

आर्थिक हालात इतने खराब हो गए कि सेंट्रल बैंक प्रमुख मोहम्मद रजा फरजीन को इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद व्यापारी, दुकानदार और छोटे कारोबारी भी खुलकर विरोध में आ गए हैं. लोगों का कहना है कि महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्ट व्यवस्था ने जीना मुश्किल कर दिया है.

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अमेरिकी प्रतिबंधों से जुड़ा है मौजूदा हालात

विशेषज्ञ मानते हैं कि ईरान की मौजूदा हालत अमेरिका के प्रतिबंधों से जुड़ी है. डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में 2015 के परमाणु समझौते से बाहर निकलने और "मैक्सिमम प्रेशर" नीति अपनाने से ईरान की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा. अब ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद दबाव और बढ़ गया है. इजरायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की ट्रंप से मुलाकात और ईरान पर फिर हमले की आशंका ने तनाव और गहरा दिया है.

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राष्ट्रपति पेजेशकियान भले ही जनता की रोजी-रोटी की चिंता की बात कर रहे हों, लेकिन सड़कों पर उमड़ा जनसैलाब साफ संकेत दे रहा है कि ईरान में संकट अब सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक बदलाव की ओर बढ़ सकता है.

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