हमास-इजरायल जंग पर ट्रंप ने ब्रेक तो लगा दिया... लेकिन नेतन्याहू पर कब तक प्रेशर बनाए रख पाएंगे US राष्ट्रपति?

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू के साथ काम करना अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए हमेशा मुश्किल रहा है. ट्रंप ने इस महीने नेतान्याहू को शांति समझौते के लिए मनाने में कामयाबी हासिल की, जबकि हमास को सभी इज़रायली बंधकों को लौटाने के लिए अन्य मध्य पूर्वी देशों को राजी किया.

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ट्रंप को अपनी योजना के अगले चरणों में नेतान्याहू के समर्थन की जरूरत होगी. (Photo-AP) ट्रंप को अपनी योजना के अगले चरणों में नेतान्याहू के समर्थन की जरूरत होगी. (Photo-AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 11:33 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सोमवार को एक बड़ी कूटनीतिक जीत मिली है. मिस्र में हुए सीजफायर और बंधक-रिहाई समझौते पर हस्ताक्षर के लिए कई वर्ल्ड लीडर्स इकट्ठा हुए. विश्लेषकों और राजनयिकों का कहना है कि अगर स्थायी शांति कायम करनी है, तो ट्रंप को इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू पर दबाव बनाए रखना होगा. ट्रंप को अपनी योजना के अगले चरणों में नेतान्याहू के समर्थन की जरूरत होगी.

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इज़रायल और हमास के बीच ट्रंप की 20-सूत्रीय योजना के कई पहलुओं को लेकर अभी भी गहरे मतभेद बने हुए हैं. इज़रायल अगले साल के चुनावों की तैयारी कर रहा है, जिसके चलते नेतान्याहू अपनी दक्षिणपंथी गठबंधन को एकजुट रखने की कोशिश में अपना रुख बदल सकते हैं.

नेतान्याहू के प्रभावशाली गठबंधन सहयोगी इतामार बेन-गवीर और बेजेलेल स्मोट्रिच दोनों ने सीजफायर समझौते की आलोचना की है. राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री बेन-गवीर ने तो विरोध में सरकार छोड़ने की धमकी भी दी है.

राजनैतिक अस्तित्व की लड़ाई

इज़रायली विदेश नीति थिंक टैंक मितविम के अध्यक्ष निमरोद गोरन ने कहा, "हम एक राजनीतिक वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, जहां सब कुछ चुनाव अभियानों से जुड़ा है, और नेतान्याहू की रणनीति दबाव के आगे झुकने से बदलकर अपने राजनीतिक अस्तित्व को सुनिश्चित करने की कोशिश में बदल सकती है." जानकारों का मानना है कि ट्रंप के पीस प्लान की ताकत ही उसकी कमजोरी भी है.

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समझौते के केंद्र में मौजूद दस्तावेज़ में बहुत कुछ अपरिभाषित छोड़ दिया गया है. किसी भी पक्ष ने हर शर्त के बारीक प्रिंट पर सहमति नहीं जताई है. इस अस्पष्टता की वजह से ही दोनों पक्षों ने हस्ताक्षर किए, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि सबसे मुश्किल कूटनीतिक कार्य अभी शुरू हो रहा है. ट्रंप के पीस प्लान की एक संभावित अड़चन यह है कि हमास निहत्था हो जाए और गाजा के भविष्य के प्रशासन में उसकी कोई भूमिका न निभाए.

हमास की भूमिका पर गतिरोध

हमास ने मोटे तौर पर ट्रंप की योजना पर सहमति जताई है लेकिन समूह की आधिकारिक प्रतिक्रिया में इन विशिष्ट शर्तों का कोई उल्लेख नहीं था. हमास नेताओं ने इशारा किया है कि वे जंग के बाद के गाजा पर शासन करने में अपनी भूमिका देखते हैं. 

यह भी पढ़ें: 'मैंने कराया भारत-पाक सीजफायर...', इजरायल की संसद में ट्रंप ने दोहराया अपना दावा

ट्रंप का रुख और नेतान्याहू की मजबूरी

एक सीनियर अमेरिकी अधिकारी ने सुझाव दिया कि ट्रंप ने अन्य महत्वपूर्ण मामलों पर इज़रायल का जोरदार समर्थन करके नेतान्याहू पर प्रभाव हासिल किया है. ट्रंप के पहले प्रशासन ने यरूशलेम को इज़रायल की राजधानी और विवादित गोलान हाइट्स को देश का हिस्सा माना था. इज़रायली पोलस्टर मिशेल बराक ने कहा कि जब तक ट्रंप व्हाइट हाउस में हैं, नेतान्याहू के पास अमेरिका के साथ तालमेल बिठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

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चुनाव और फिलिस्तीनी स्टेट का मुद्दा

अगले साल के चुनाव नेतान्याहू की राजनीति को बदल सकते हैं. विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि निरस्त्रीकरण को लेकर फिलिस्तीनी समूह द्वारा देरी करने से गठबंधन के दक्षिणपंथी तत्व नेतान्याहू पर गाजा में सैन्य अभियान फिर से शुरू करने के लिए दबाव डाल सकते हैं. पीस प्लान में एक और मुद्दा है, भविष्य के फिलिस्तीनी स्टेट की संभावना को स्वीकार करना. हमास के 2023 के हमले के बाद ज्यादातर इज़रायली फिलिस्तीन स्टेट को स्वीकार नहीं करेंगे.

 
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