भूख और बीमारी से तड़प रहे बच्चों की खातिर एक मां ने अपने गहने बेच दिए. ऐसा बताया जा रहा है कि लॉकडाउन में तमिलनाडु से लौटे प्रवासी परिवार को गांव में न मुफ्त राशन मिला और न ही कोई काम. परिवार अपना किसी तरह से गुजरा करता रहा. आखिर में इनके पास न खाने और न दवा के लिए पैसे बचे. जैसे ही यह मामला डीएम के संज्ञान में आया. वैसे ही पीड़ित परिवार का राशन कार्ड और रोजगार कार्ड बनवा दिया गया. इसके साथ ही परिवार को खाने के लिए राशन भी उपलब्ध करा दिया गया.
(Photo Aajtak)
प्रवासी अपने-अपने गृहराज्य जैसे-तैसे पहुंच तो गए, लेकिन उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खत्म नहीं हुआ है. उत्तर प्रदेश के कन्नौज में एक परिवार ने खाने और दवाई के लिए 1500 रुपये में गहने तक बेच डाले. लॉकडाउन में काम छिनने के बाद यह परिवार पिछले महीने ही तमिलनाडु से अपने गृह जिला कन्नौज लौटा था.
(Photo Aajtak)
कन्नौज जिले के फत्तेहपुर जसोदा निवासी श्रीराम शादी के कुछ समय बाद पत्नी गुड्डी देवी को लेकर तमिलनाडु के किड्डलोर चला गया था. वह करीब 30 साल से कुल्फी बेचने का काम कर रहा था. इससे पति, पत्नी और नौ बच्चों का गुजारा चल रहा था. लॉकडाउन की वजह से काम बंद हो गया और मकान मालिक ने जबरन घर खाली करा दिया. फिर 21 मई को श्रीराम पत्नी और बच्चों को लेकर ट्रेन से गांव लौट आया.
(Photo Aajtak)
श्रीराम के पास खेती के लिए न जमीन न राशनकार्ड था. उसने बताया कि यहां आने के बाद राशन और रोजगार दोनों में दिक्क्त आई. काम न होने से परिवार के सामने भोजन तक का संकट खड़ा हो गया. बच्चे भूख और बीमारी से तड़पने लगे और कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो पत्नी गुड्डी देवी ने अपने जेवर (पैरों में पहने जाने वाली तोड़िया) बेचने को दे दीं.
(Photo Aajtak)
जिलाधिकारी राकेश कुमार मिश्रा ने बताया कि ग्राम फतेहपुर जसोदा मे एक परिवार है, जो भूख से बेहाल था. जैसे ही हमें इसकी जानकारी मिली हमने वीडीओ और सप्लाई इंस्पेक्टर को भेजा और जांच करने के बाद पता चला कि यह परिवार 15 दिन पहले तमिलनाडु से यहां आया था, जिसकी माली हालत बहुत खराब थी. फिर हमने तत्काल एक्शन लेते हुए उन्हें राशनकार्ड, जॉब कार्ड के साथ खाने-पीने की सभी जरूरी वस्तुएं उपलब्ध करा दीं. इसके अलावा कुछ अधिकारियों को निलंबित भी कर दिया गया.
(Photo Aajtak)