मरियप्पन थंगवेलु: अखबार बेचने से लेकर खेल रत्न तक का ऐसा रहा सफर

रियो पैरालंपिक में पुरुषों की ऊंची कूद में स्वर्ण पदक जीतने वाले थंगवेलु इस साल देश के शीर्ष सम्मान के लिए चुने गए पांच खिलाड़ियों में शामिल हैं. इस एथलीट को 29 अगस्त को वर्चुअल समारोह में इस सम्मान से नवाजा जाएगा.

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Mariyappan Thangavelu (REUTERS) Mariyappan Thangavelu (REUTERS)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 7:40 AM IST
  • थंगवेलु खेल रत्न के लिए चुने गए पांच खिलाड़ियों में शामिल
  • 29 अगस्त को वर्चुअल समारोह में इस सम्मान से नवाजा जाएगा
  • उन्हें अब भी विश्वास नहीं होता कि यहां तक का सफर तय कर लिया

पैरालंपिक स्वर्ण पदकधारी मरियप्पन थंगवेलु के लिए अखबार बेचने वाले हॉकर से लेकर खेल रत्न तक का सफर काफी चुनौतीपूर्ण रहा है और जब वह खेलों में से आने से पहले की जिंदगी के बारे में सोचते हैं तो अब भी उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

रियो पैरालंपिक में पुरुषों की ऊंची कूद में स्वर्ण पदक जीतने वाले थंगवेलु इस साल देश के शीर्ष सम्मान के लिए चुने गए पांच खिलाड़ियों में शामिल हैं. कोविड-19 महामारी के चलते 25 साल के इस एथलीट को 29 अगस्त को वर्चुअल समारोह में इस सम्मान से नवाजा जाएगा.

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थंगवेलु को अब भी विश्वास नहीं होता कि यहां तक का सफर तय कर लिया है. पांच साल की उम्र में एक बस उनके दाएं पैर को घुटने के नीचे से कुचलकर चली गई थी.

उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘2012 से 2015 तक तीन वर्षों तक परिवार को चलाने के लिए मैंने अपनी मां की मदद के लिए सब कुछ किया जो मैं कर सकता था. मैं सुबह को अखबार हॉकर था और दिन में निर्माण स्थलों पर दिहाड़ी मजदूर.’

तमिलनाडु में सेलम जिले के थंगवेलु ने कहा, ‘समय कैसे बीत जाता है, मुझे सोचकर यह कल की बात लगती है. उन दिनों की याद करके मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यहां तक पहुंच जाऊंगा.’

जकार्ता में 2018 एशियाई पैरा खेलों में कांस्य पदक जीतने वाले थंगवेलु अगले साल टोक्यो पैरालंपिक की तैयारियों के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण के बेंगलुरू केंद्र में ट्रेनिंग कर रहे हैं. उनका छोटा भाई कानून की पढ़ाई कर रहा है और उनकी बहन की शादी हो गई है.

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थंगवेलु जब छोटे थे तो उनके पिता परिवार को छोड़कर चले गए थे, जिससे उनकी मां के ऊपर घर की जिम्मेदारी आ गई और फिर बाद में उन्होंने घर चलाने में मां की मदद करनी शुरू की. उन्होंने कहा, ‘इन तीन वर्षों में मैं अपने घर से दो से तीन किलोमीटर चलकर अखबार डालता था. इसके बाद मैं निर्माणाधीन जगहों पर जाता था.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे हर दिन 200 रुपये मिलते थे. मां की मदद के लिए मुझे यह करना पड़ता था, जो दैनिक मजदूर के तौर पर काम करने के अलावा सब्जियां बेचती थीं.’ उनके मौजूदा कोच आर सत्यनारायण ने थंगवेलु की काबिलियत देखी और वह उन्हें बेंगलुरू ले गए. थंगवेलु जब स्कूल में पढ़ते थे, तभी उन्हें खेलों के बारे में पता चला था.

2013 में सत्यनारायण ने राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उनकी प्रतिभा को देखा, तब वह 18 साल के थे. दो साल बाद थंगवेलु को बेंगलुरू लाया गया और फिर इतिहास बन गया. 2016 पैरालंपिक के बाद थंगवेलु ने अलग-अलग जगह से मिले पैसे से जमीन खरीदी. 2018 में उन्हें SAI ने ग्रुप ए पद का कोच बना दिया.

थंगवेलु ने कहा, ‘मेरा परिवार वित्तीय रूप से अब काफी बेहतर है. मैं अब SAI कोच हूं और टॉप्स योजना का हिस्सा भी हूं. जहां तक मेरी ट्रेनिंग का संबंध है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है.’

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थंगवेलु ने पिछले साल दुबई में आईपीसी विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की टी-42 ऊंची कूद स्पर्धा में तीसरा स्थान हासिल कर टोक्यो पैरालम्पिक के लिए क्वालिफाई किया. उनका लक्ष्य टोक्यो पैरालंपिक (24 अगस्त से पांच सितंबर 2021) में एक और स्वर्ण पदक जीतना और अपनी स्पर्धा में विश्व रिकॉर्ड बनाना है.
 

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