दिवाली नजदीक आ रही है और दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है. मकसद है- ग्रीन पटाखों की अनुमति लेना. 2019 से दिल्ली में सभी पटाखों पर बैन है, लेकिन मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता कहती हैं कि जनभावना को देखते हुए सीमित ग्रीन पटाखे चलाने की इजाजत मांगेंगी. विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन पटाखे पर्यावरण के लिए बेहतर हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर इस्तेमाल से भी प्रदूषण हो सकता है.
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ग्रीन पटाखे पर्यावरण-अनुकूल (इको-फ्रेंडली) पटाखे हैं, जो सामान्य पटाखों से कम प्रदूषण फैलाते हैं. इन्हें काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च-नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर-एनईईआरआई) ने विकसित किया है. ये पटाखे बिना हानिकारक रसायनों के बनते हैं. इनमें 30% कम धुआं, सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) निकलता है.
सीएसआईआर के अनुसार, ग्रीन पटाखों में बेरियम नाइट्रेट या स्ट्रॉन्शियम जैसे जहरीले मेटल नहीं होते. इसके बजाय, शेलक (एक प्राकृतिक बाइंडर) का इस्तेमाल होता है. ये पटाखे कम समय जलते हैं, इसलिए कम राख और धूल बनाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इन्हें मंजूरी दी, लेकिन 2023 में राज्यों को फैसला लेने की छूट दी.
सामान्य पटाखे प्रदूषण के बड़े कारण हैं. इनमें बैरियम नाइट्रेट जैसे रसायन होते हैं, जो हवा में जहर घोलते हैं. ये पटाखे 160 डेसिबल तक शोर पैदा करते हैं, जो कान और हृदय के लिए हानिकारक है. साथ ही, ये ज्यादा धुआं छोड़ते हैं, जो दिल्ली जैसे शहरों में स्मॉग बढ़ाता है.
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विशेषज्ञ कहते हैं कि ग्रीन पटाखे 'ग्रीनवॉशिंग' नहीं, बल्कि असली सुधार हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर इस्तेमाल से भी समस्या हो सकती है.
प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली में 2019 से सभी पटाखों पर पूर्ण बैन है. लेकिन 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रीन पटाखों पर राज्यों का फैसला हो. फिर भी, दिल्ली सरकार ने बैन जारी रखा. अब मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जनभावना (लोगों की इच्छा) का हवाला देकर कोर्ट जाएंगी. वे कहती हैं कि दिल्ली सरकार पर्यावरण और जनभावना का संतुलन बनाएगी.
अनुमति मिले तो सिर्फ प्रमाणित ग्रीन पटाखे रात 8 से 10 बजे तक चल सकेंगे. विशेषज्ञों ने आलोचना की – कहा कि यह 'ऑक्सीमोरॉन' (विरोधाभास) है, क्योंकि पटाखे फिर भी प्रदूषण फैलाते हैं.
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ग्रीन पटाखे सिर्फ प्रमाणित विक्रेताओं से मिलते हैं. इन पर 'ग्रीन क्रैकर' लेबल, सीएसआईआर-एनईईआरआई का सर्टिफिकेट और क्यूआर कोड होता है. स्कैन करने पर विवरण मिलता है.
आजतक साइंस डेस्क