क्या हैं GLOF और LLOF जो पहाड़ों पर तबाही ला रहे... क्या रोकने का कोई उपाय है?

GLOF ग्लेशियर झीलों का फटना है, जो बड़े पैमाने पर तबाही लाता है, जैसे केदारनाथ (2013). जबकि LLOF भूस्खलन से बनी झीलों का टूटना है, जैसे किन्नौर (2023). दोनों प्राकृतिक हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियां इन्हें बढ़ा रही हैं. समय रहते सही कदम उठाए गए, तो इन आपदाओं को कम किया जा सकता है.

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2023 में शिमला और मंडी LLOF की कई घटनाएं हुई थी. (File Photo: PTI) 2023 में शिमला और मंडी LLOF की कई घटनाएं हुई थी. (File Photo: PTI)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 12:05 PM IST

हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियरों से जुड़ी आपदाएं अक्सर सुर्खियों में रहती हैं. इनमें GLOF और LLOF जैसे शब्द सुनने को मिलते हैं, जो ग्लेशियरों और झीलों से जुड़े खतरों को दर्शाते हैं. लेकिन क्या ये एक ही हैं, या इनमें अंतर है? आइए, समझते हैं कि ये क्या हैं? इनके बीच क्या अंतर है? भारत में कब-कब ऐसी घटनाएं हुईं? 

GLOF और LLOF क्या हैं?

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GLOF (Glacial Lake Outburst Flood)  

मतलब: यह तब होता है जब ग्लेशियरों से बनी झीलों का प्राकृतिक बांध (जैसे मिट्टी, बर्फ या चट्टान) अचानक टूट जाता है. उसमें जमा पानी तेजी से नीचे की ओर बहता है. इससे भयानक बाढ़ आती है.
कैसे होता है?: ग्लेशियर पिघलने से झील बनती है. अगर बारिश, भूकंप या मोरैन ढांचे की कमजोरी से बांध टूटे, तो पानी का सैलाब आता है.
खतरा: यह बाढ़ दूर-दूर तक तबाही मचा सकती है. नदियों को प्रभावित करती है. सड़कें-घर नष्ट कर देती है.

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LLOF (Landslide Lake Outburst Flood)  

मतलब: यह तब होता है जब भूस्खलन (लैंडस्लाइड) से नदी या घाटी में अस्थायी झील बनती है. उसका बांध टूटने से पानी अचानक बह निकलता है.
कैसे होता है?: पहाड़ों का फिसलना नदी को रोक देता है, जिससे पानी जमा हो जाता है. अगर बांध कमजोर हो या भारी बारिश हो, तो यह टूट जाता है.
खतरा: यह बाढ़ स्थानीय स्तर पर ज्यादा नुकसान करती है, लेकिन गति और मलबे के साथ होती है.

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  • वैज्ञानिक तथ्य: इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के अनुसार, GLOF से प्रति घटना 10-100 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड पानी बह सकता है, जबकि LLOF में यह 1-10 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड होता है.
  • उदाहरण अंतर: GLOF में केदारनाथ (2013) जैसे बड़े नुकसान हुए, जबकि LLOF में छोटे स्थानीय प्रभाव देखे गए, जैसे 2021 की चमोली घटना.

भारत में GLOF और LLOF घटनाएं: कब-कब हुईं?

हिमालयी क्षेत्र भारत के लिए खासा संवेदनशील है. आइए, कुछ प्रमुख घटनाओं पर नजर डालते हैं...

GLOF घटनाएं

केदारनाथ आपदा (16-17 जून 2013)

कहां: उत्तराखंड, केदारनाथ.  
क्या हुआ: चोराबारी ग्लेशियर की झील टूटी, जिससे 5,700 से ज्यादा लोग मरे और 1,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तबाह हुआ.  
वजह: भारी बारिश (350 मिमी) और ग्लेशियर पिघलने से बांध कमजोर हुआ.  
तथ्य: इसरो के अध्ययन के मुताबिक, 20-22 किमी क्षेत्र में मलबा फैला.

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सुंदरधूंगा ग्लेशियर (1970)

कहां: उत्तराखंड, कुमाऊं क्षेत्र.  
क्या हुआ: ग्लेशियल झील फटने से अलकनंदा नदी में बाढ़ आई, कई गांव प्रभावित हुए.  
वजह: बर्फ पिघलने और भूकंप का संयुक्त असर.  
तथ्य: 10-15 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड पानी बहा.

चमोली आपदा (7 फरवरी 2021)

कहां: उत्तराखंड, ऋषिगंगा घाटी.  
क्या हुआ: ग्लेशियर टूटने से 200 लोग मरे और तपोवन बांध नष्ट हुआ.  
वजह: ग्लेशियल झील का अचानक टूटना, संभवतः भूकंप और बारिश से.  
तथ्य: 15 मिलियन क्यूबिक मीटर मलबा बहा, जिसकी गति 20 मीटर प्रति सेकंड थी.

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LLOF घटनाएं

उत्तरकाशी भूस्खलन (1991)  

कहां: उत्तराखंड, उत्तरकाशी.  
क्या हुआ: भूस्खलन से यमुना नदी अवरुद्ध हुई, फिर बांध टूटने से बाढ़ आई.  
वजह: 6.6 तीव्रता का भूकंप और भारी बारिश.  
तथ्य: 1-2 किमी क्षेत्र प्रभावित हुआ, 768 लोग मरे.

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किन्नौर भूस्खलन (2023)  

कहां: हिमाचल प्रदेश, किन्नौर.  
क्या हुआ: सतलुज नदी पर भूस्खलन से अस्थायी झील बनी, फिर बाढ़ आई.  
वजह: मॉनसून की बारिश (150 मिमी) और ढीली मिट्टी.  
तथ्य: 5-10 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड पानी बहा, 25 लोग प्रभावित.

हिमाचल मंडी (जुलाई 2023)

कहां: हिमाचल प्रदेश, मंडी.  
क्या हुआ: भूस्खलन से नाला रुकने और टूटने से 500 हेक्टेयर जमीन बर्बाद हुई.  
वजह: क्लाउडबर्स्ट (100 मिमी प्रति घंटा).  
तथ्य: 10-15 घर नष्ट हुए.

वैज्ञानिक शोध: क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

  • ICIMOD (2023): हिंदूकुश-हिमालय में 2,000 से ज्यादा ग्लेशियल झीलें हैं, जिनमें 200 हाई रिस्क वाली हैं. GLOF का खतरा 10-15% सालाना बढ़ रहा है.
  • ISRO Landslide Atlas (2023): भारत में 147 जिले भूस्खलन से प्रभावित हैं, जहां LLOF की संभावना बढ़ रही है.
  • IPCC (2021): जलवायु परिवर्तन से ग्लेशियर 0.5-1% सालाना सिकुड़ रहे हैं, जो GLOF को बढ़ावा दे रहा है.
  • Wadia Institute: हिमालय की 70% ढलानें भूकंपीय और जलवायु जोखिम से संवेदनशील हैं.

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भविष्य का खतरा और समाधान

भविष्य का खतरा: 2050 तक 30-40% ग्लेशियर पिघलने से GLOF और LLOF की घटनाएं दोगुनी हो सकती हैं. हिमालय के 1-1.2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र फ्रेजाइल हैं.

समाधान

  • ग्लेशियल झीलों की निगरानी (सैटेलाइट और सेंसर).
  • भूस्खलन संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण पर रोक.
  • जंगल संरक्षण और जल निकासी सुधार.
  • स्थानीय लोगों को आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग.
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