आखिर क्यों भोले हैं भोलेनाथ? जानें ये अनोखा रहस्य

भगवान शिव को जहां एक तरफ भोलेनाथ कहा जाता है तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें सृष्टि का विनाशक भी कहा जाता है. जो श्मशान में बसते हैं और जिनके शरीर पर भस्म लिपटी रहती है, जिनके साथ भूत-प्रेत रहते हैं, ऐसे देव को भोलेनाथ क्यों कहा जाता है?

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भगवान शिव भगवान शिव

प्रज्ञा बाजपेयी

  • नई दिल्ली,
  • 12 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 4:44 PM IST

भगवान शिव के वैसे तो कई नाम हैं लेकिन उनके भक्त उन्हें भोलेनाथ ही पुकारना पसंद करते हैं. भोलेनाथ ऐसे देव जिन्हें प्रसन्न करना बहुत ही आसान है. इस शब्द का दार्शनिक मतलब है- भोले यानी बच्चे जैसी मासूमियत, नाथ मतलब भगवान, मालिक

भगवान शिव को जहां एक तरफ भोलेनाथ कहा जाता है तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें सृष्टि का विनाशक भी कहा जाता है. जो श्मशान में बसते हैं और जिनके शरीर पर भस्म लिपटी रहती है, जिनके साथ भूत-प्रेत रहते हैं, ऐसे देव को भोलेनाथ क्यों कहा जाता है? लेकिन इन सबके बावजूद शिव भोले ही हैं. उनके अंदर ना अहं है ना ही चालाकी. उन्हें अपनी शक्ति पर बिल्कुल भी अभिमान नहीं है इसीलिए वह भोलेनाथ हैं.

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उन्हें भोलेनाथ कहे जाने के पीछे एक कहानी भी है. एक असुर था जो हजारों वर्षों से तपस्या कर रहा था. भगवान शिव की उपासना में दिन-रात लीन. भगवान शिव भलीभांति जानते थे कि वह एक राक्षस है और उसे वरदान देना अच्छा नहीं होगा. फिर भी वह प्रकट हुए और असुर से वरदान मांगने के लिए कहा. उस असुर का नाम भस्मासुर था. भस्मासुर ने भगवान शिव से वरदान मांगा कि वह जो कुछ भी छुए, तुरंत भस्म हो जाए. शिव ने तुरंत उसे यह वरदान दे दिया. अब भस्मासुर वरदान की परीक्षा लेना चाहता था. भस्मासुर को लगा कि अगर वह भगवान शिव को ही भस्म कर दे तो फिर उससे ज्यादा श्रेष्ठ कोई नहीं रह जाएगा.

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ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव अपने भक्त को खाली हाथ नहीं लौटाते हैं इसीलिए भोले अपनी जान बचाकर भागने लगे. तब भगवान विष्णु ने एक चाल चली और मोहिनी का भेष धारण किया. भगवान विष्णु मोहिनी के रूप में असुर को मोहित करने के लिए नृत्य करने लगे और भस्मासुर का हाथ चालाकी से उसके सिर पर ही रखवा दिया. इस तरह से भस्मासुर नाम के राक्षस से मुक्ति मिली. इसीलिए तो भगवान शिव को भोलेनाथ कहा जाता है जिनसे वरदान पाना सबसे आसान है.

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भगवान शिव उन लोगों पर प्रसन्न हो जाते हैं जो अपना काम मेहनत से करते हैं. उन्हें मनाने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत नहीं पड़ती है. उनके भक्त जो भी वरदान मांगते हैं, वह देते हैं. चाहे इंसान हो या राक्षस हो, वह सबकी मनोकामना पूरी करते हैं. तारकासुर नाम के राक्षस ने कठोर तपस्या की थी. भगवान शिव उस पर भी प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा. तब तारकासुर ने शिव से वरदान मांगा कि भगवान शिव के पुत्र के अलावा कोई उसे मार नहीं सकेगा. भोलेनाथ ने बिना सोचे उसे वरदान दे दिया.

भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा के लिए सब कुछ करते हैं. उन्होंने अपने कंठ में विष एकत्रित कर लिया. सागर मंथन से निकले विष को भगवान शिव ने पी लिया और उनका कंठ नीला पड़ गया तभी से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा.

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वह उदारता के प्रतीक हैं. भोला यानी जो सब कुछ आसानी से भूल जाते हैं. जो लोग भूलने में विश्वास रखते हैं, उनके नाथ हैं भोलेनाथ. भगवान शिव को किसी भी तरह की राजनीति नहीं आती है. वह औघड़ है और अपनी मर्जी से सब कुछ करते हैं. वह किसी के आदेश पर नहीं चलते हैं. उन्हें यह भी याद नहीं रहता है कि मां पार्वती ने उनसे क्या करने के लिए कहा और क्या नहीं. उन्हें सांसारिक चीजों का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं है, वह तो ध्यानमग्न रहते हैं. इन्हीं सब वजहों से वह भोलेनाथ हैं.

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