Dussehra 2021: दशहरा पर क्यों होता है शस्त्र पूजन, जानें किस तरह शुरू हुई ये परंपरा

Dussehra 2021: दशहरा बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत का पर्व है. मान्यता है इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी. दशहरे के इस पर्व को विजय दशमी के नाम से भी जानते हैं. साथ ही मान्यता ये भी है कि मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का इसी दिन वध किया था. दशहरा के दिन शस्त्र पूजन करने की परंपरा सदियों पुरानी है.

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 दशहरा पर क्यों होता है शस्त्र पूजन ? दशहरा पर क्यों होता है शस्त्र पूजन ?

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 3:32 PM IST
  • दशहरे के दिन शस्त्र पूजन की परंपरा सदियों पुरानी
  • युद्ध के लिए क्षत्रिय करते थे दशहरे का इंतजार

Dussehra 2021: दशहरा (Dussehra) अश्विन माह की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. इस बार 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को देशभर में ये पर्व मनाया जाएगा. इस दिन विशेष रूप से शस्त्र पूजन (Shashtra Puja Dussehra) का विधान है. दशहरा को विजय दशमी भी कहते हैं. इस दिन मां दुर्गा और भगवान श्रीराम का पूजन होता है. मान्यता है कि इस दिन किए जाने वाले कामों का शुभ फल अवश्य प्राप्त होता है. यह भी कहा जाता है कि शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा करनी चाहिए. आइये जानते हैं इस परंपरा से जुड़ा इतिहास और क्यों होता है शस्त्र पूजन.

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दशहरा का महत्व
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि दशहरा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नाम के असुर का वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी. इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया था. इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है. प्राचीन समय से इस दिन सनातन धर्म में शस्त्र पूजन की परंपरा चली आ रही है. इस दिन लोग शस्त्र पूजन के साथ ही वाहन पूजन भी करतें हैं. वहीं आज के दिन से किसी भी नए कार्य की शुरुआत करना भी शुभ माना जाता है. 

इसलिए शुरू हुई ये परंपरा 
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि दशहरा किस भी कार्य के लिए शुभ है. प्राचीन समय में क्षत्रिय दशहरे का इंतजार युद्ध पर जाने के लिए किया करते थे. मान्यता थी कि इस दिन जिस तरह भगवान श्रीराम ने असत्य को परास्त कर विजय हासिल की थी और मां दुर्गा ने महिषासुर नाम की बुराई का अंत किया था, उसी प्रकार दशहरे के दिन जो भी युद्ध शुरू होता है, उसमें उनकी जीत निश्चित होती थी. युद्ध पर जाने से पहले शस्त्र पूजन होता था. तभी से ये परंपरा शुरू हुई. वहीं इस दिन को ब्राह्मण विद्या ग्रहण करने के लिए भी चुनते थे. 

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शमी के वृक्ष की पूजा से मिलता शुभ फल
मान्यता है कि यदि इस दिन शमी के वृक्ष की पूजा कर किसी भी नए कार्य जैसे दुकान, व्यवसाय आदि की शुरुआत की जाए, तो उसमें भी निश्चित ही सफलता मिलती है. पुराणों के अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने जा रहें थे तो उन्होंने शमी के वृक्ष के सामने अपना शीश झुकाया था और लंका पर विजय की कामना की थी. 

 

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