Chhath Kharna 2025: छठ महापर्व का दूसरा दिन आज, जानें खरना की पूजन विधि और महत्व

Chhath Kharna: रविवार यानी कल छठ के महापर्व का दूसरा दिन है. छठ के दूसरे दिन खरना पूजा का विधान है और उसके बाद अगले दो दिन अलग-अलग समय पर सूर्य देवता को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाएगी.

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छठ पर्व में खरना का दिन अत्यंत विशेष माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत होती है. (Photo: ITG) छठ पर्व में खरना का दिन अत्यंत विशेष माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत होती है. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 6:32 AM IST

Chhath Kharna 2025: लोकआस्था के महापर्व छठ का शुभारंभ हो चुका है. हर ओर श्रद्धा और आस्था के रंग नजर आ रहे हैं. छठ के इस महापर्व का रविवार को यानी कल दूसरा दिन है. छठ के दूसरे दिन खरना पूजा का विधान है और उसके बाद अगले दो दिन अलग-अलग समय पर सूर्य देवता को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाएगी. आइए आपको खरना का महत्व और पूजन विधि बताते हैं.

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खरना का महत्व
छठ पर्व में खरना का दिन अत्यंत विशेष माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत होती है. यह दिन शारीरिक और मानसिक पवित्रता प्राप्त करने का प्रतीक माना गया है. खरना के दौरान व्रती अपने मन, विचार और कर्म को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं ताकि आने वाले कठोर व्रत के लिए पूर्ण तैयार हो सकें. इस दिन बनाए गए प्रसाद को परिवार और अन्य लोगों के साथ साझा किया जाता है.

खरना का प्रसाद
खरना में गुड़ की खीर बनाने की परंपरा है. यह प्रसाद चावल, दूध और गुड़ से बनाया जाता है. इसके साथ, गेहूं के आटे की रोटी या पूरी भी बनाई जाती है. पहले यह प्रसाद सूर्यदेव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है. उसके बाद व्रती इसे ग्रहण करते हैं. इसी प्रसाद का सेवन करने के बाद ही 36 घंटे का कठोर निर्जला उपवास शुरू हो जाता है.

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खरना की पूजा विधि
खरना में प्रातःकाल में सूर्योदय से पहले स्नान कर आत्मिक शुद्धि का संकल्प लें और सूर्य देव व छठी मैया का ध्यान करते हुए दिनभर निर्जला व्रत रखें. इसके बाद शाम की पूजा से पहले पूजन स्थल की सफाई करें. सूर्यास्त के बाद प्रसाद तैयार करें. इस दिन आमतौर पर गुड़ की खीर या दूध-चावल से निर्मित खीर बनाई जाती है. इसके साथ आटे की रोटी या पूरी भी बनाई जाती है. इस प्रसाद में केला भी शामिल किया जाता है. प्रसाद तैयार होने के बाद सूर्य देव और छठी माता की विधिवत पूजा करें. फिर मंत्र जप करते हुए पहले सूर्य देव और फिर छठी मैया को भोग लगाएं.

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