ऑपरेशन सिंदूर के बाद केंद्र सरकार की तरफ से कई देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे जा रहे हैं. ये प्रतिनिधिमंडल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों सहित भारत के सहयोगी देशों का दौरा करेगा. और, आतंकवाद के खिलाफ भारत के जीरो टॉलरेंस वाले रुख को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सामने रखेगा.
अलग अलग पार्टियों के 7 सांसदों के नेतृत्व में अलग अलग देशों के लिए प्रतिनिधिमंडल बनाये गये हैं. 10 दिनों की यात्रा पर भेजे जा रहे ये प्रतिनिधिमंडल विदेशों में बताएंगे कि आतंकवाद के खिलाफ भारत का दृष्टिकोण क्या है? और ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन क्यों और कैसे लिया गया?
अव्वल तो ये सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल बीजेपी की सहयोगी जेडीयू के अलावा डीएमके, शरद पवार वाली एनसीपी और एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना के सांसदों के नेतृत्व में भी बनाये गये हैं, लेकिन बवाल कांग्रेस मचा रही है, क्योंकि केंद्र की बीजेपी सरकार ने शशि थरूर को शामिल कर लिया है. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए हर तरीके से फिट शशि थरूर अपने बागी तेवर के कारण हमेशा ही कांग्रेस नेताओं के निशाने पर रहते हैं. हाल फिलहाल शशि थरूर के मुंह से ऑपरेशन सिंदूर की तारीफ और मोदी से मुलाकात भी कांग्रेस को खटकती रही है.
कांग्रेस की आपत्ति ये है कि सरकार ने उसकी तरफ से जिन चार सांसदों के नाम भेजे गये थे, सरकार ने किसी को भी प्रतिनिधिमंडल में शामिल नहीं किया, और अपने मन से शशि थरूर को एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व सौंप दिया है. लेकिन, सवाल तो ये भी उठता है कि कांग्रेस ने ऐसे काम के लिए शशि थरूर के नाम की सिफारिश क्यों नहीं की?
बीजेपी-कांग्रेस के झगड़े में शशि थरूर को फायदा ही फायदा
ये तो साफ है ही कि कांग्रेस ने शशि थरूर के नाम की सिफारिश क्यों नहीं की, और ये भी साफ है कि बीजेपी ने कांग्रेस की सिफारिश के बगैर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शशि थरूर को क्यों लिया? और, ध्यान देने वाली बात ये है कि शशि थरूर ने फटाफट बीजेपी सरकार के ऑफर पर गर्व का इजहार कर दिया.
चाहिये तो ये था कि शशि थरूर कांग्रेस नेतृत्व से अनुमति लेते, लेकिन वो भला ऐसा क्यों करें. अनुमति के लिए रिक्वेस्ट भेजते तो वो भी खारिज हो जाता. विदेश राज्य मंत्री पद से इस्तीफा देने से लेकर कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने तक शशि थरूर को कैसा ट्रीटमेंट मिला, सब जानते हैं. वो तो झेल ही रहे हैं. निशाने पर तो वो बीजेपी के भी रहे ही हैं, लेकिन अभी तो मोलभाव का बेहतरीन मौका मिला है. फायदा उठा रहे हैं, राजनीति भी तो इसी को कहते हैं.
प्रतिनिधिमंडल में शामिल किये जाने पर शशि थरूर की प्रतिक्रिया थी, सम्मानित महसूस कर रहा हूं. और लगे हाथ केंद्र की बीजेपी सरकार के प्रति आभार भी प्रकट कर रहे थे. सोशल साइट X पर लिखा भी, भारत सरकार के निमंत्रण से सम्मानित महसूस कर रहा हूं... जब राष्ट्रीय हित की बात होगी, और मेरी सेवाओं की जरूरत होगी... तो मैं पीछे नहीं रहूंगा.
पहलगाम की घटना में खुफिया चूक पर सरकार का बचाव, ऑपरेशन सिंदूर और सीजफायर का स्वागत भला कांग्रेस को कैसे पसंद आये, जब राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे संसद का विशेष सत्र बुलाये जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख चुके हों - और सरकार की तिरंगा यात्रा के मुकाबले जय हिंद रैली निकालने जा रहे हों.
जब कांग्रेस बात बात पर सफाई मांगने लगती हो, सोशल मीडिया पर एक पोस्ट पर बवाल इतना बढ़ जाता हो कि मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़े, और ऐन उसी वक्त सत्ताधारी बीजेपी तवज्जो दे रही हो. भरी संसद में प्रधानमंत्री मोदी विदेश नीति के मुद्दे पर राहुल गांधी सहित पूरी कांग्रेस को निशाना बनाते वक्त बोलें कि शशि थरूर उनकी बातों के दायरे से बाहर हैं. कांग्रेस को बुरा तो लगेगा ही - और शशि थरूर के लिए यही तो सबसे बड़ा फायदा है.
कांग्रेस के 4 नेताओं की लिस्ट में शशि थरूर का नाम क्यों नहीं?
शशि थरूर ने करीब तीन दशक तक संयुक्त राष्ट्र में अलग अलग पदों पर काम किया है. भारतीय राजनीति में तो 15 साल ही हुए हैं. सेक्रेट्री जनरल का चुनाव हार जाने के बाद वो भारत लौट आये, और देश की राजनीति में कुछ करने का फैसला किया. शशि थरूर की कूटनीतिक समझ बेहतरीन है, और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अच्छी अंग्रेजी में वो अपनी बात रखते हैं, जिसे लोग सुनते भी हैं - लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी ने थरूर की खासियत की वजह से ही प्रतिनिधिमंडल के लिए चुना है.
जो राय कांग्रेस नेतृत्व का शशि थरूर के के बारे हैं, जरूरी नहीं कि बीजेपी में होते तो ऐसा नहीं होता. लेकिन, वो राजनीति के जिस मोड़ पर खड़े हैं, महत्व तो बढ़ ही गया है. बीजेपी के आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय ने शशि थरूर के बारे में X पर लिखा है, शशि थरूर की वाक्पटुता, संयुक्त में उनके लंबे अनुभव और विदेश नीति पर उनकी गहरी समझ से कोई इनकार नहीं कर सकता, तो कांग्रेस... विशेष रूप से राहुल गांधी ने उन्हें क्यों नहीं चुना? क्या ये असुरक्षा की भावना है?
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश कहते हैं, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और विपक्ष के नेता राहुल गांधी से बात की थी... विदेश भेजे जाने वाले डेलिगेशन के लिए 4 सांसदों के नाम मांगे थे... कांग्रेस ने आनंद शर्मा, गौरव गोगोई, डॉक्टर सैयद नसीर हुसैन और राजा बरार के नाम दिये थे. लेकिन केंद्र सरकार को कोई भी नाम पसंद नहीं आया, और शशि थरूर का प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर लिया गया. हालांकि, संसदीय कार्य मंत्री किरन रिजीजू ने स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी से नाम नहीं मांगे गए थे.
इधर, कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ नेताओं ने शशि थरूर को लेकर कहा था कि ये निजी विचार जाहिर करने का वक्त नहीं है, बल्कि पार्टी के आधिकारिक रुख को के साथ बने रहने की जरूरत है. कांग्रेस एक लोकतांत्रिक पार्टी है, लोग अपनी राय रखते रहते हैं. शशि थरूर ने लक्ष्मण रेखा पार कर ली है. जयराम रमेश का कहना है, आगे क्या होगा, मैं नहीं कह सकता... हमने अपना फर्ज निभाया, हमें उम्मीद थी कि सरकार सही इरादे से नाम मांग रही है.
कांग्रेस की तरफ से जो चार नाम सुझाये गये हैं, एक नाम शशि थरूर हो सकता था. चार में से एक नाम आनंद शर्मा का है. वो भी यूपीए सरकार में शशि थरूर से पहले विदेश राज्य मंत्री रह चुके हैं. आनंद शर्मा तीन साल तक मंत्री रहे, जबकि शशि थरूर से एक साल से कम में ही 'कैटल क्लास' विवाद के चलते इस्तीफा मांग लिया गया था.
मान लेते हैं कि गौरव गोगोई लोकसभा में कांग्रेस के डिप्टी लीडर हैं, राहुल गांधी के बाद. गौरव गोगोई का मामला शशि थरूर का उलटा है. गौरव गोगोई पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा लंबे अर्से से हमलावर हैं, और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी से उनकी पत्नी का नाम जोड़कर टार्गेट करते रहते हैं.
लेकिन शशि थरूर को दरकिनार कर डॉक्टर सैयद नसीर हुसैन का नाम सूची में शामिल किया जाना थोड़ा अजीब लगता है. थोड़ी देर के लिए दोनो नेताओं के राजनीतिक अनुभव और शिक्षा को अलग रख कर देखें, तो विकीपीडिया के मुताबिक, नसीर हुसैन ने इंटरनेशनल स्टडीज में एम. फिल और पीएचडी कर रखी है. शशि थरूर ने इंटरनेशनल रिलेशन और लॉ एंड डिप्लोमेसी में मास्टर डिग्री हासिल की है, और इंटरनेशनल रिलेशन में पीएचडी की है. बेशक शिक्षा मिलती जुलती है, लेकिन राजनीतिक अनुभव में तो कोई तुलना ही नहीं है - और अभी तो शशि थरूर विदेशी मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष भी हैं. हालांकि, कहा तो यह भी जा रहा है कि नसीर के नाम पर इसलिए भी विचार नहीं किया गया, क्योंकि उनकी रैली में 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगे थे. इसी तरह कांग्रेस ने सांसद राजा ब्रार का नाम दिया था, लेकिन उनका नाम भी खालिस्तानी गायकों के समर्थन को लेकर उठे विवाद के कारण दरकिनार कर दिया गया.
मुश्किल ये है कि सब कुछ जानते हुए भी कांग्रेस शशि थरूर के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले पा रही है, और वो उसके गले की फांस बने हुए हैं. अगले ही साल केरल में विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं, जिससे अब वायनाड का सांसद होने के कारण कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की भी प्रतिष्ठा जुड़ चुकी है.
मृगांक शेखर